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आधे आधे पूरे हैं हम

शादी का रिश्ता एक गाड़ी जैसा होता है जो पति और पत्नी दोनों का एक दूजे का सम्मान करने और एक दूसरे की मदद करने से पूरा होता हैं।  

शादी का रिश्ता एक गाड़ी जैसा होता है जो पति और पत्नी दोनों का एक दूजे का सम्मान करने और एक दूसरे की मदद करने से पूरा होता हैं।  

अरे! ये क्या कर रहे हो पुनीत बेटा, तुम क्यों सुबह- सुबह रसोई में चाय बना रहे हो। सौम्या बहू कहाँ है?” पिछली रात अपने बहू-बेटे के पास आयी मिसेज़ वर्मा ने रौबदार आवाज़ में पूछा।

“माँ, सौम्या ऑफिस के लिए तैयार हो रही है उसकी कैब जल्दी आ जाती है, तो सुबह के चाय नाश्ते की तैयारी अक्सर मैं ही कर देता हूँ।”

“पुनीत बेटा! अब तुम्हारी शादी हो गई है, अब यह सब काम तुम्हारा नहीं बल्कि सौम्या का है। पहले बात कुछ और थी जब ट्रांसफर के बाद घर से दूर दूसरे शहर में तुम्हें अकेले मजबूरन यह सारे काम खुद से देखने पड़ते थे| लेकिन अब शादी के बाद भी तुम यह सारे काम करोगे तो मुझे गवारा नहीं हैं । तुम यंही रुको  मैं अभी सौम्या से बात करती हूं कि एक औरत के लिए शादी के बाद सबसे ज्यादा जरूरी व महत्त्वपूर्ण है अपनी गृहस्थी पर ध्यान देना।”

“लेकिन माँ! सौम्या भी तो नौकरी करती है। वो भी एक अच्छे प्रतिष्ठित पद पर। यह बात हम सब शादी के पहले से ही जानते थे कि वह शादी के बाद भी नौकरी करेंगी, तब हमें खासकर की तुम्हें कोई आपत्ति नहीं थी तो फिर आज सिर्फ तुम्हारे बेटे द्वारा रसोई में एक कप चाय बना देने पर  तुम्हारी बहु के नौकरी करने पर आपत्ति क्यों? क्या फ़र्क पड़ता है माँ अगर मैं सौम्या के लिए कुछ ऐसा कर देता हूं जिससे उसका पूरा दिन अच्छा निकलता है।

“फर्क पड़ता है, बिल्कुल पड़ता है। गुस्से में तिलमिलाकर माँ बोली। अब सौम्या तुम्हारी बीवी है और लड़कियों के जीवन में शादी के बाद बहुत बदलाव आ जाते हैं जिन्हें उन्हें जल्दी ही स्वीकार कर लेने चाहिए ताकि आगे चलकर कोई दिक्कत न हो। सौम्या को अगर नौकरी करनी है तो करें लेकिन अपने हर फर्ज़ को बखूबी निभाते हुए।”  

“माँ! मेरी प्यारी सी माँ, तुम शांत हो जाओ। पुनीत ने अपनी माँ को प्यार से अपने गले लगाया व उन्हें शांत कराते हुए बोला,  “सौम्या मेरी अर्धांगिनी है। जिस दिन उसका हाथ थामा था ना उसी दिन मुझे जीने का एक और बेहद ही खूबसूरत मकसद मिल गया था। या यह कहूँ तो गलत नहीं होगा कि अगर हम दोनों एक दूजे की एक- एक आँख  बंद भी कर दे तब भी हमारी खुली आँखें मिलकर एक ही मंजिल को तय करेंगी, जो है प्यार की मंजिल। इसे ही इस बेहद करीबी रिश्ते के बीच बसा प्यार कहते हैं जो इस रिश्ते को खूबसूरत व मजबूत बनाता है।”

पुनीत की बातें सुनकर उसकी माँ निःशब्द सी थी क्योंकि वह अतीत की यादों में गोता लगा रही थी कि अगर पुनीत के पापा का प्यार व साथ न होता तो आज वह भी एक रिटायर्ड टीचर न होती।

अपनी भीगी पलकों को छुपाते हुए उन्होंने पुनीत को अपने गले से लगा लिया व पुनीत को अपने लिए भी एक कप चाय बनाने का ऑर्डर देकर खुद लग गई सौम्या का नाश्ता तैयार करने के लिए।

पहले यहाँ प्रकाशित हुआ।

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