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एक को मनाओ तो दूजा रूठ जाता है – हम एक साथ सब को खुश नहीं रख सकते!

सभी पढ़ी-लिखी बहू की उम्मीद करते हैं, कमाऊ बहू ढूँढ़ते हैं, मगर कर्तव्य वह गाँव की अनपढ़ बहू जैसे निभाए। दिमागदार हो, पर अधिकार की जानकारी ना हो।

सभी पढ़ी-लिखी बहू की उम्मीद करते हैं, कमाऊ बहू ढूँढ़ते हैं, मगर कर्तव्य वह गाँव की अनपढ़ बहू जैसे निभाए। दिमागदार हो, पर अधिकार की जानकारी ना हो।

अवनी सीढ़ियों से जल्दी जल्दी उतर रही थी। कई दिनों से लिफ्ट खराब चल रही थी, घर पर मेहमान आने वाले थे। काफी सारी चीजें पकानी बची थीं, सुबह-सुबह भी वह काफी कुछ निपटा के आई थी। अवनी एक मल्टी नेशनल कंपनी में कार्यरत एक आधुनिक लड़की थी।

शाम को अवनी घर पहुंचती है, बिना कपड़े बदले वह सबके लिए चाय बनाती है और रसोई में बचे काम निपटाने लगती है और खाना बन जाने पर अपने ऑफिस का बचा काम निपटाती है। मेहमान आने पर एक आम लड़की के समान, सारे मेहमानों की आवभगत अच्छे से करती है। अपनी सेवा से सभी को खुश रखने का प्रयास करती है।

पर उसका पति अपनी सुविधा अनुसार, आधुनिक और परंपरागत तौर-तरीकों को बदलता रहता है। जब उसका उल्लू सीधा हो रहा हो, तब मां-बाप के पक्ष में बोलता है और जब बात उस तक पहुंच जाती है तो वह आधुनिक तौर-तरीकों को तरजीह देने लगता है। अवनी यह सब समझते हुए भी अपनी जिंदगी में कोई ड्रामा नहीं चाहती थी, इसलिए जी तोड़ मेहनत कर सब कुछ व्यवस्थित रखती हैं।

अवनी सारे परिवार को खुश करने के जुगत में लगी रहती थी, मगर ये कभी नहीं हो सकता कि एक साथ सारे खुश हों। वो कहते हैं ना आप किसी के लिए कितना ही कर दें, वह कभी खुश नहीं होता। बल्कि, केवल एक गलती का इंतजार करता ही रहता है और वह दिन आ भी गया।

ससुर जी की दाँढ़ निकाली जानी थी। सभी फिर अवनी से उम्मीद करने लगे, मगर ऑफ़िस में ज़रूरी मीटिंग के कारण वह इस बार उनके अपेक्षाओं में खरी नहीं उतर पाई। ननद का फेयर-वेल मेकअप नहीं कर पाई क्योंकि उसे भी एक पार्टी में जाना था। ऐसे ही तनाव बढ़ते जा रहे थे, सभी उसे इस्तेमाल ना कर पाने की खीझ अपने तरीके से उस पर उतार रहे थे। बस फिर क्या था! उसके अब तक के किये सारे काम भुला दिए गए, वह नाकारा, स्वार्थी, घमंडी साबित कर दी गई।

अवनी संभल ही नहीं पाई और पूरे परिवार के सारे अरमान पूरे करने वाली आज एकदम से दूध में मक्खी के समान हटा दी गई। आस भरी निगाहों से पति की ओर देखा पर कोई फायदा नहीं, वह भी वही कह रहे थे जो बाकी कह रहे थे। इतनी सर्वगुण संपन्न होकर भी घर में कोई उसको वह इज्जत नहीं देता था जिसकी वह हकदार थी। क्या केवल बहू होना ही इस बात के लिए परिवार को हकदार बना देता है कि वह उसकी कभी भी बेज्जती कर सकें। उसके माता-पिता का अपमान कर सकें।

यह दुर्व्यवहार केवल अनपढ़ों तक सीमित है या बढ़कर के आज हाईली क्वालिफाइड लड़कियों तक भी पहुंच चुका है। अपने जितने भी अरमान हैं, उन्हें पूरा करने के लिए केवल बहू का इंतजार किया जाता है और यदि वह मेजरमेंट में ठीक नहीं पड़ती तो, उसको जब चाहे तब अपमानित किया जा सकता है। अब अवनी ने सबको खुश करने जी तोड़ मेहनत की ताकि पिछ्ली गलती माफ हो, पर नतीजा सिफ़र ही रहता।

धीरे-धीरे अवनी के आँखो से पर्दा हटने लगा। उसने महसूस किया जितना वो झुक रही है, सबकी उम्मीदें बढ़ती ही जा रही हैं। एक को खुश करती तो दूसरा नाराज़ हो जाता वह दिन पर दिन घुलने लगी। हर मुमकिन कोशिश कर रही थी। यहाँ ऑफिस में भी पकड़ कमज़ोर होती जा रही थी, सेहत भी गिरती जा रही थी।

बॉस ने उसे बुलाया और कड़े शब्दों मे कहा, “परफॉर्मर ऑफ़ द ईयर” का अवार्ड लगता है किसी और को जाने वाला है, तुम तो भूल ही जाओ।पता नहीं ये लड़कियाँ प्राथमिकताएं तय क्यों नहीं कर पातीं?”

अनमनी सी अवनी, लंच टाइम में एक पत्रिका पलट रही थी, एक जगह लिखा था, ‘कोई भी एक वक़्त में सभी को खुश नहीं रख सकता। इससे बेहतर है, नम्रता से अपने कर्तव्यों को निभाते हुए हर सम्भव तरह से सबकी मदद करने का प्रयास करें, पर केवल किसी को खुश रखने के लिए खुद की बलि ना दें।’

उसने फैसला किया, जितना उसका सामर्थ्य होगा उतना सहयोग करेगी, मर्यादित व्यवहार करेगी, मगर परिवार को खुश रखने की दृष्टि से अब कुछ नहीं करेगी। सबको अभी समझने का टाइम आ चुका है कि अपने, अपने  उत्तरदायित्व वैसे ही संभालना जैसे उसके आने से पहले संभाले जाते थे।

अवनी ने वैसा ही किया शुरुआत में। सभी ने बहुत दुर्व्यवहार किया मगर धीरे-धीरे सबको आदत पड़ गई खुद का काम खुद करने की। अवनी ने ना केवल अपने ऑफिस में बेस्ट परफॉर्मर का अवार्ड जीता, साथ में ससुराल के सारे उत्तरदायित्व मुस्कुराते हुए निभाए और अपने पिता के सेवानिवृत्ति के बाद उनके आजीविका के लिए घर की छत पर गर्ल्स हॉस्टल के लिये अपनी कमाई पूंजी से कमरे बनवा दिये।

आधुनिकता कपड़ों की नहीं विचारो की भी होनी चाहिये। एक स्वतंत्र विचार, आत्मनिर्भर अवनी ने नये आयाम प्रदान किए।

सभी पढ़ी-लिखी बहू की उम्मीद करते हैं, कमाऊ बहू ढूँढ़ते हैं, मगर कर्तव्य वह गाँव की अनपढ़ बहू जैसे निभाए। दिमागदार हो, पर अधिकार की जानकारी ना हो। एसे मानसिकता को खत्म करने का समय आ चुका है। कितनी डॉक्टर, इंजीनियर कलेक्टर लड़कियां बहू बनने के बाद अपने अधिकारों के लिए समझौता करते रहती हैं, पर अब और नहीं।

अब आप सभी यह सुनिश्चित करें कि अवनी की यह पहल रुकने ना पाए। आप अपने सशक्त सहयोग से इस पहल को आगे बढ़ाएं।

मूल चित्र : YouTube

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