कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
बहुत सी साड़ी देखने के बाद संजना को एक नीले रंग की साड़ी पसंद आई। वह कुछ कहती, उसके पहले ही साड़ी वाले ने कहा, "हां आंटी! यह साड़ी आप पर खूब जचेगी!"
बहुत सी साड़ी देखने के बाद संजना को एक नीले रंग की साड़ी पसंद आई। वह कुछ कहती, उसके पहले ही साड़ी वाले ने कहा, “हां आंटी! यह साड़ी आप पर खूब जचेगी!”
दिवाली में दो ही दिन रह गए थे। संजना जल्दी-जल्दी घर की सफाई निपटा देना चाह रही थी। उसे घर के लिए खरीदारी भी करनी थी। नए बेड शीट, बच्चों के लिए और अपने व राज के लिये नए कपड़े, पटाखे, मिठाइयां और कुछ सजावट का सामान। उसने सारे सामान की लिस्ट बना ली, भगवान का सामान, लक्ष्मी जी की मूर्ति, लई, बताशे वगैरह।
शाम के लिए फटाफट खाना बना के रख दिया और खुद तैयार होने लगी। तभी उसके पति राज भी आ गए और चिल्लाने लगे, “मुझे जल्दी बुला लिया और खुद अभी तक तैयार भी नहीं हुई।”
संजना ने पर्स उठाते हुए कहा, “सारे घर को मुझे ही देखना होता है, समझे? तुम्हें क्या है? बस गाड़ी स्टार्ट करना और जहां बोलो वहां रुक जाना। अब ये नहीं चलेगा। बाज़ार में मेरी हर सामान खरीदने में मदद करना।” राज ने मुस्करा कर हां में सिर हिला दिया।
दोनों मेन मार्केट पहुंच गए और एक साड़ी वाले के यहां गए। सेठ मेन काउंटर पर बैठे थे। और बहुत से आदमी साड़ी दिखा रहे थे। उन्हीं में से एक संजना को साड़ी दिखाने लगा। बहुत सी साड़ी देखने के बाद संजना को एक नीले रंग की साड़ी पसंद आई। वह कुछ कहती, उसके पहले ही साड़ी वाले ने कहा, “हां आंटी! यह साड़ी आप पर खूब जचेगी!”
35 साल की संजना ने उसे देखा। लगभग संजना की ही उम्र का वह व्यक्ति खुद को नौजवान समझ रहा था। संजना चिढ़ गई। उसने बाजू में देखा, राज मुस्कुरा रहे थे। उसने कहा, “मुझे यह साड़ी नहीं चाहिए कुछ दूसरी दिखाइए।”
“जी आंटी, अभी दिखाता हूं”, संजना को लग रहा था कि वह उठ करके दूसरी दुकान चली जाए, मगर कुछ सोच कर बैठी रही। मेन काउंटर में बैठे हुए सेठ को जाने क्या समझ में आया, संजना के सामने आया और बोला, “दीदी एक से एक लेटेस्ट डिजाइन आए हैं इस दिवाली में, मैं आपको सारे दिखाता हूं। देखकर ही आपका दिल खुश हो जाएगा।”
संजना को साड़ी का तो पता नहीं पर दीदी सुनकर बहुत अच्छा लगा। उसने बाजू में देखा, राज बस मुस्कुरा रहे थे। उसने बढ़िया-बढ़िया साड़ियां दिखाई, गुलाबी कलर की साड़ी को जैसे ही संजना ने खुद पर डाला, दुकानदार ने कहा, “दीदी आप जच रही हैं, क्या रंग निखर रहा है आपका! वाह लगता है यह साड़ी आपके लिए ही बनी है।”
संजना बहुत खुश हुई। उसने अगली चंपई रंग की साड़ी को अपने कंधे पर डाला। दुकानदार तुरंत बोला, “यह साड़ी आप पर बहुत खिल रही है। असली बात तो यह है दीदी, आप पर हर रंग खिलता है।” संजना ने मन ही बना लिया कि इस दुकान से कम से कम दो-तीन साड़ी ले जाएगी। उसने राज से पूछा, “सच में यह दोनों रख लूं?” राज ने हाँ में सिर हिलाया। उसने धीरे से वह नीली साड़ी भी उठा ली और कहा इन तीनों को पैक कर दीजिए।
पटाखों की दुकान में राज ने दो थैले भरकर पटाखे खरीदे और संजना की तरफ मुड़कर कहा, इतने ठीक हैं या और ले लूँ? इतने में ही दुकानदार ने कहा, “आंटी एक ज़बरदस्त पटाखा आया है चीन का, दिखाऊं क्या?” संजना ने मुंह सिकोड़कर कहा, “नहीं रहने दीजिए। इतने ही बहुत हैं।” तो दुकानदार ने एक पर्ची देते हुए राज से कहा, “भैया, तीन हजार हुए।” पर्स निकालते हुए राज ने संजना को देखा, वह कुढ़ी जा रही थी।
राज ने कहा, “चलो कहीं बैठ कर चाय पिएंगे।” दोनों पास ही के रेस्टोरेंट में गए और दो समोसों के साथ चाय ऑर्डर की। राज ने कहा, “क्या बात है? मूड उखड़ा सा लगता है, समोसे तो तुम्हें बहुत पसंद हैं ना?” संजना ने कहा, “समोसा को छोड़िए, यह बताइए मैं कहां से आंटी दिखती हूं?” राज ने कहा, “नहीं यार, यू आर स्टिल यंग।” नेहा ने लगभग चीखते हुए कहा, “…स्टिल?…. कहना क्या चाह रहे हो राज? तुम तो खुश हो, तुमको सब लोग अभी भी भैया ही पुकारते हैं। मुझे देखो जिस दुकान में जाती हूं, ‘आंटी’… ‘आंटी’… परेशान हो चुकी हूं मैं। तुम्हारे लिए शायद यह इतना गंभीर विषय नहीं है, पर हम औरतों से पूछो, लोग जब हमें आंटी बोलते हैं तो क्या गुजरती है, तुम नहीं समझोगे।”
राज को संजना का उदास होना अच्छा नहीं लगा, उसने मनाते हुए कहा, “संजू इतनी परेशान मत रहा करो। यह आजकल का चलन है। किसी भी उम्र की औरत को लोग बिना सोचे समझे आंटी कहने लगते हैं। अब या तो तुम हर किसी को समझाओ या खुद समझ जाओ।” संजना ने सोचा, ‘यह दर्द तुम नहीं समझ पाओगे’ और उठकर कहा, “चलो पूजन का सामान भी खरीदना है।”
वह दोनों एक दुकान में जाकर रुके। संजना कुछ बोले उससे पहले राज ने कहा, “चलो अपनी दीदी को बढ़िया-बढ़िया कैंडल दिखाओ।” दुकानदार ठिठका, फिर कैंडल दिखाने लगा। संजना ने कुछ पसंद कर उससे और भी सामान मांगे। वह दिखाने लगा। वह हर बार ‘दीदी ये’, ‘दीदी वो’ कह रहा था। संजना को लगा जैसे वह कुछ ज्यादा ही ज़ोर देकर दीदी कह रहा है। वह थोड़ा हंसी और सारा सामान खरीद ली। उसने राज से कहा, “आप झालर वाले से बात कर लो मैं रंगोली लेती हूं।”
संजना रंगोली पसंद कर रही थी, तभी एक दुबली सी मरीयल सी महिला उसे लगभग हिलाते हुए बोली, “आंटी चिल्हर हैं आपके पास?” संजना अवाक रह गई। जो उसे आंटी कह रही थी वह स्वयं उसकी आंटी की उम्र की थी। संजना को लगा अब पानी सिर से ऊपर जा रहा है, उसने तपाक से उस महिला को कहा, “आंटी चिल्हर तो नहीं है मेरे पास।” वह महिला इतना बुरा मुंह बनाई जैसे कुछ कड़वा खा लिया हो। संजना को हंसी आ गई।
रंगोली खरीद कर वह राज के पास पहुंची। राज ने 5 दिनों के लिए झालर की बात की थी पर संजना ने कहा, “आज से ही लगवा दीजिए।” दुकानदार ने कहा, “कोई बात नहीं आंटी, जैसा आप कहें, लड़का पहुंच जाएगा लगाने।”
इस बार संजना संभल चुकी थी, उसने दुकानदार से कहा, “आप कल ही पैदा हुए हैं क्या?” दुकानदार समझा नहीं उसने कहा, “जी?” संजना ने कहा, “मैं आपकी आंटी हूं, तो आप क्या कल पैदा हुए हैं?” दुकानदार ने कहा, “सॉरी मैडम माफ कीजिए।” संजना ने कहा, “आगे से किसी भी महिला को आंटी कहने से पहले देख लीजिएगा कि वह आपसे कम से कम 25 से 30 वर्ष बड़ी हो। अच्छे दुकानदार को अपने सामान की अधिक बिक्री के लिए यह मेरा अनमोल सुझाव है।”
संजना को लगा उसने शायद कुछ ज्यादा ही बोल दिया है। टेंशन मेंं राज की तरफ देखा राज ने मोर्चा संभालते हुए कहा, “भाई शायद वह कहावत तुम ने नहीं सुनी कि मर्दों से उनकी कमाई और औरतों से उनकी उम्र नहीं पूछी जाती और तुम पूछना तो छोड़ो सीधा आँटी कह रहे हो?” दुकानदार ने माफी मांगी, कहा, “आगे से ध्यान रखूंगा और झालर कल ही लगवा दूंगा।”
बेडशीट की दुकान में बेडशीट देखते हुए संजना सोच में पड़ गई कि सही बात है, किस-किस को समझाते रहेंगे। उतने में दुकानदार ने कहा, “आंटी किस रेंज की बेडशीट दिखाऊं?”
तभी राज और संजना ने एक साथ एक स्वर में कहा, “आंटी मत कहो ना प्लीज!”
मूल चित्र : Canva
read more...
Please enter your email address