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रोज़-रोज़ सिगरेट के दाग से जलते रहने के बाद रीना ने दामोदर को सबक सीखने का निश्चय कर लिया। उस दिन जब दामोदर रीना की तरफ बढ़ा तो....
रोज़-रोज़ सिगरेट के दाग से जलते रहने के बाद रीना ने दामोदर को सबक सीखने का निश्चय कर लिया। उस दिन जब दामोदर रीना की तरफ बढ़ा तो….
“नहीं! नहीं! नहीं करूंगी किसी से बात! मत मारो! मुझे मत मारो! अच्छा कम से कम जलाओ तो मत! सुबह सब पूछते हैं! नहीं….आ….नहीं…..!”
“ये माँस जलने की बास अच्छी लगती है, मुझे….और ये सुंदरता किस के लिये सहेजना चाहती है? हें? बोल?” इसके साथ ही दामोदर ने जलती सिगरेट रीना के हाथ में घुसा दी।
रोज़ की तरह दामोदर प्रताड़ना देकर सो चुका था। रीना जानती थी कुछ लोग ऐसे ही कसैले स्वभाव के होते हैं, फिर दामोदर तो हीन भावना से ग्रसित इंसान था। उसे अपना चेचक दाग से भरा चेहरा, निकली हुई आँख और मोटी नाक पसंद नहीं थी। अपनी सुंदर पत्नी पर शक करने वाला सनकी आदमी था वो।
आज रीना ने तय कर लिया था कि अब और सहन नहीं किया जा सकता, ‘मुझे सबक सिखाना ही होगा।’
रात को कुंठित दामोदर को रीना पर हाथ उठाने की कोई वजह नहीं मिल रही थी। परेशान हो, वह शराब पीने लगा और फ़िज़ूल ही गाली-गलौज करने लगा। रीना पर वह हाथ उठाने ही वाला था कि रीना ने उसके हाथ से जलती सिगरेट लेकर उसके गले में रख दी!
अचानक हुए हमले से दामोदर संभल नहीं पाया। रीना ने फुर्ती से उसका हाथ पकड़ा और जलती सिगरेट से फिर से उसे दाग दिया। अब दामोदर भय से कांपने लगा।
रीना ने पूछा, “अपने माँस के जलने की बास कैसी लगी? अरे तुम बदसूरत हो तो, इसमे मेरा क्या दोष? चरित्र पर कीचड़ उछाल कर, मार कर भी संतुष्टि नहीं मिली तो मुझे कुरुप बनाने पर उतर आये? पूरा शरीर ही सिगरेट से दाग दिया?”
“लो अब! सूंघो अपने जले दाग को”, जलती सिगरेट लगते ही दामोदर दर्द से छटपटा गया। उसने रीना का हाथ रोकने की कई नाकाम कोशिशें की। दामोदर ने गिड़गिड़ाते हुए अपनी गलती स्वीकार की, मिन्नतें की, माफ़ी माँगी।
असुरक्षा और हीन भावना से ग्रस्त दामोदर को उसी हालत में छोड़ रीना, अपना बैग पैक करते हुए, अंधेरे के खत्म होने और सुबह की उजली किरण का इंतजार करने लगी।
मूल चित्र : Canva
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