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‘घर की बात घर में ही रहे’ के चलते अपने रिश्तों की बलि न चढ़ाएं

मुझे लगा वो मेरे पीछे आएंगे इसलिए मैंने मोबाइल कैमरा छुपा कर चला दिया, इतने दिनों से मेरे पास सबूत नहीं था इसलिए मैं बता भी नहीं रही थी।

मुझे लगा वो मेरे पीछे आएंगे इसलिए मैंने मोबाइल कैमरा छुपा कर चला दिया, इतने दिनों से मेरे पास सबूत नहीं था इसलिए मैं बता भी नहीं रही थी।

रचना की शादी सोलह साल की उम्र में ही उसके घर वालों ने कर दी थी क्योंकि रचना की दो बड़ी बहनों के  अलावा एक और छोटी बहन भी थी। उनका कोई भाई नहीं था और पापा की छोटी सी किराने की दुकान थी तो इतनी ही आमदनी हो पाती थी कि घर चल जाए। बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी और रचना भी बड़ी हो रही थी। दिखने में अपनी सब बहनों से ज्यादा खूबसूरत थी और अपनी उम्र से बड़ी दिखती थी तो रिश्ते आने लगे थे।

सुधीर का रिश्ता आया तो मम्मी-पापा ने हां करने में देर नहीं लगाई। इसकी एक वजह शायद उसका पैसे वाला होना था। सुधीर अपने भाई बहनों में सबसे बड़ा था। घर में उससे छोटे दो भाई एक बहन और मम्मी-पापा थे। गाँव में अच्छा खासा खेत और बाग था जहाँ से अनाज वगैरह आ जाता, जिससे साल भर अनाज खरीदने की ज़रूरत नहीं  पड़ती थी।

शहर में खुद का घर था, ऊपर का मंजिल किराये पर दे रखी थी जिससे किराया आ जाता था। नीचे एक कमरे में कपड़े की दुकान खोल रखी थी। कुल मिलाकर ठीक ठाक पैसा आ जाता था, कोई दिक्कत नहीं होती थी।

रचना में बचपना बहुत था, शादी तो हो गई मगर उसे ससुराल के बारे में ज्यादा पता नहीं था। शादी के कुछ दिनों बाद ही वो अपने छोटे छोटे देवर और ननद के साथ खेलने लगी तो सासु माँ ने पहले तो बहुत डाँटा, फिर प्यार से समझाया, “ये तुम्हारा ससुराल है, ऐसे किसी के साथ-साथ खेला नहीं जाता। तुम घूंघट में रहा करो। खाना बनाना नहीं आता तो भी रसोई में मेरे साथ रहा करो। मैं धीरे धीरे सब सिखा दूंगी।” रचना ने सारी बातें तो मान लिया मगर जब देवर ननद को खेलते हुए देखती तो खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाती और खेलने लग जाती।

वक़्त थोड़ा आगे बढ़ा रचना काफी समझदार हो गई थी घर की सारी ज़िम्मेदारी उसने उठा ली। सुबह से उठकर काम करना शुरू करती तो रात में ही लेटने का मौका मिलता। उसकी पहली बच्ची हुई तो बच्ची बहुत कमज़ोर थी, क्योंकि  रचना बहुत कमज़ोर थी। कम उम्र में ही वह माँ बन गई थी।

रचना अपने मायके आ गई। बच्ची की देखभाल उसकी माँ ने दिलोजान से की मगर फिर भी वो बच नही पाई। रचना तो एकदम पागल सी हो गई। माँ ने बहुत साथ दिया उसका बहुत ख्याल रखा, उसे समझाती रहतीं। उसे संभलने में बहुत टाइम लग गया। जब वो ससुराल वापस गई तो भी कभी-कभी वहाँ भी बीमार हो जाती इसलिए सासु माँ ने उसे फिर से मायके भेजने का फरमान सुना दिया।

उनका कहना था, “जब तक तुम ठीक ना हो जाना वापस ना आना।” सुधीर ने रोकना चाहा तो माँ ने कहा, “जब तक बहू ठीक नहीं हो जाती वही रहेगी चाहो तो तुम भी उसके साथ रह सकते हो।”

“माँ! ये भी कोई बात हुई काम करना हो तो यहाँ रहे, तबियत खराब हो गई तो मायके चली जाए?”

“ज्यादा ज्ञान देने की ज़रूरत नहीं है। मुझे जो कहना था मैंने कह दिया।”

“क्या हो गया भई? सच तो कह रहा है सुधीर। रचना कहीं नहीं जाएगी”, ससुर जी भी बोले थे।

सुधीर उसका पूरा ख्याल रखता काम में हाथ भी बटवा लेता। अगर कोई पड़ोसी वगैरह देख लेता तो मज़ाक उड़ाता कि सुधीर जोरू का गुलाम हो गया है।

एक दिन वो दुकान से वापस आया तो देखा रचना कमरे के कोने में ज़मीन पर बैठी बहुत रो रही थी और कांपे जा रही थी। सुधीर को लगा शायद उसकी तबियत खराब हो रही है इसलिए जल्दी से रचना को चादर ओढ़ा कर बेड पर बैठाया। पानी पिलाया फिर लेटने के लिए कहा मगर रचना उसके कंधे पर सर रख कर फिर रोने लगी।

“क्या हो गया? कोई बात है….. किसी ने कुछ कहा?” सुधीर ने बड़े प्यार से उसका चेहरा हाथ में लेकर पूछा। रचना ने जो बताया उसे सुनकर तो सुधीर के होश ही उड़ गए। वो एक दम से खड़ा हो गया, “तुम्हे ज़रूर कोई गलतफहमी हुई होगी। ऐसा नहीं हो सकता।”

मगर रचना ने फिर वही सब बताया तो सुधीर अपना सर पकड़ कर ज़मीन पर बैठ गया। मुठ्ठी बंद कर के पूरी ताकत से ज़मीन पर मारा उसके हाथ से खून निकल आया था। उसने अपने बाल नोच लिए, उसकी समझ में नहीं आ रहा था क्या करे रचना की बात पर कैसे यकीन करे। कैसे अपने पापा के ऊपर लगे इल्ज़ाम को सही मान ले।

“मेरे पापा अपनी बहू के ऊपर गलत नज़र रखते हैं, मैं कैसे मानू?” उसका तो दिमाग ही सुन्न पड़ गया था।

“मुझे पता था आपको यकीन नहीं होगा। पर ये पहली बार नहीं है। मैं हमेशा उनसे इसलिए दूर भागती थी। एक मिनट रुकिए!”

वो मोबाइल ले आई, “ये देखिए! जब मैं रसोई से वापस आ रही थी तो मैंने उन्हें घूरते हुए देखा था। पता नहीं क्यों मुझे लगा वो मेरे पीछे आएंगे क्योंकि घर में कोई नहीं है, आप भी दुकान गए थे इसलिए मैंने मोबाइल कैमरा छुपा दिया ताकि आपको दिखा सकूँ। इतने दिनों से मेरे पास सबूत नहीं था इसलिए मैं बता भी नहीं रही थी।”

“छी! मुझे तो घिन आ रही है उन्हें अपना पापा कहते हुए”, उसने वीडियो देखते हुए कहा जिसमें उसके पापा उसे छूने की कोशिश कर रहे थे। और रचना उन्हें हाथ जोड़कर चले जाने के लिए बोल रही थी।

“अपना सामान पैक करो तुरंत। हम माँ से बात करने के बाद तुरंत यहाँ से निकल जाएंगे। ”

कुछ घंटे बाद माँ वापस आई। जब सुधीर ने उन्हें बताया तो सबसे पहले उन्होंने उसे एक थप्पड़ कसकर उसके गाल पर मारा, मगर वीडियो देखने के बाद खामोशी से सर पकड़ कर बैठ गईं।

“माँ! हम अब इस घर में तो नहीं रह सकते, मगर जाने से पहले चाहते हैं कि उनको सजा मिले। मैं पुलिस को फोन करने जा रहा हूँ।”

“नहीं बेटा! माँ ने हाथ जोड़ लिया। इतना बड़ा अनर्थ ना करो, पुलिस को ना बुलाना वो तुम्हारे पापा हैं।”

“जानता हूँ माँ!  मगर रचना मेरी पत्नी है। उसके मान-सम्मान की रक्षा करना मेरा फर्ज है।”

“जानती हूँ बेटा! लेकिन सोचो अगर ये बात बाहर गई तो हमारी कितनी बदनामी होगी। तुम उनको बिल्कुल माफ ना करो। चाहो तो रचना को लेकर यहाँ से चले जाओ।”

“माँ पहले मैंने भी पहले यही सोचा था, मगर फिर बाद में ख्याल आया कि मेरे बाद मेरे छोटे भाई बहन हैं उनकी भी शादी होगी कल को और अगर उनके साथ भी यही हुआ तो? फिर आप यही बोलेंगी।”

“सुधीर! तू पुलिस को ना बुला मैं उनको अपनी तरह से सज़ा दूंगी। उनको अपना खाना-पीना, कपड़े, वगैरह सब कुछ खुद करना होगा। उनसे कोई मतलब नहीं रखेगा। पीछे वाला कमरा है ना वो वहीं रहेंगे। हममें से कोई उनसे बात नहीं करेगा। बस तू घर की बात बाहर ना कर बेटा। तेरी एक बहन भी है उसकी शादी नहीं होगी”, वो रोने लगीं थी।

सुधीर जानता था उसने जो फैसला लिया था उसमें ऐसी ही अड़चन आएंगी। अभी भी इतना बड़ा फैसला करने के लिए अपने ही पीछे हटने के लिए कहेंगे, उसने बहुत चाहा पापा को पुलिस के हवाले कर दे मगर माँ के आगे मजबूर हो गया। मगर उसने भी सोच लिया था वो रचना को यहाँ इनके साथ नहीं रहने देगा इसलिए उसी वक्त दोनों ने घर छोड़ दिया।

मूल चित्र : Canva

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