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कभी आपके मन में ये ख्याल आया - 'घर से अच्छा तो ऑफिस?' या दुनिया जो भी सोचे, 'रानी हूँ मैं इस घर की!' क्या आपको कभी कोई अफ़सोस हुआ?
कभी आपके मन में ये ख्याल आया – ‘घर से अच्छा तो ऑफिस?’ या दुनिया जो भी सोचे, ‘रानी हूँ मैं इस घर की!’ क्या आपको कभी कोई अफ़सोस हुआ?
किसी ने कहा है कि औरतों का कलम उठाना किसी क्रन्तिकारी आंदोलन से कम नहीं है। ऐसे युग में जहां ज़्यादा से ज़्यादा औरतें अपना कीमती दृष्टिकोण और अपनी व्यक्तिगत कहानियां सबके सामने बेहिचक रख रही है, आइये हम भी एक प्रयास करें अपनी आवाज़, अपनी कहानियां, अपनी सोच और अपने व्यक्तिगत अनुभव एक दूसरे के साथ साझा करने का इस कांटेस्ट के ज़रिये!
ज़िंदगी के किसी न किसी पड़ाव पर हम सब ने घर परिवार संभाला है या ये कहना गलत न होगा कि एक औरत, चाहे कोई माने या ना माने, हमेशा घर संभालने के लिए ज़िम्मेदार ठहराई गयी है। बदलते समय के साथ उसकी ज़िम्मेदारियाँ बढ़ती ही गयी हैं। तो क्या कभी आपने थोड़ा रुक कर अपने इस रोल को गहरायी से समझा है? क्या आपने कभी रुक कर खुद की पीठ थपथपाई? कभी आपके मन में ये ख्याल आया – ‘घर से अच्छा तो ऑफिस?’ या दुनिया जो भी सोचे, ‘रानी हूँ मैं इस घर की!’ क्या आपको कभी कोई अफ़सोस हुआ? आपको कभी किसी उपलब्धि की अनुभूति हुयी?
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अंतिम तिथि : 29फरवरी 2020, शाम 7 बजे
तो देर किस बात की? हमें और आपके सह पाठकों इंतज़ार रहेगा आपकी कहानियों का।
मूल चित्र : Canva
Editor at Women’s Web, Designer, Counselor & Art Therapy Practitioner. read more...
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