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बच्चों की ऑनलाइन पोर्न देखने की आदत से मैंने माता-पिता को परेशान होते देखा है लेकिन इसमें आपकी प्रतिक्रिया इस स्तिथि को सँभालने में एक अहम भूमिका निभाएगी।
कुछ समय पहले मैंने एक लेख लिखा था जिसमें, मैने महिला हस्तमैथुन की वकालत की थी। मैं इस विषय से संबंधित गलत धारणाएँ समाप्त करना चाहती थी और महिलाओं को उनकी कामुकता एक्सप्लोर करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहती थी। अध्ययनों से पता चला कि है कि हस्तमैथुन आमतौर पर हानिरहित होता है, ये स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि से भी उचित हैं।
अब, बहुत से लोग अपनी स्वयं की यौन संतुष्टि के लिए मास्टरबेट करते हैं या बाहरी वस्तुएं यानि पोर्न पर भरोसा करते हैं। पोर्न, हालांकि, ये अब भी उन लोगों के बीच भी एक वर्जित विषय है, जो खुद को खुले दिमाग का और आधुनिक मानते हैं। पोर्न ब्राउज़ करने वाले टीनेजर्स को पकड़ते हुए कई माता-पिता अक्सर भयाकुल हो जाते हैं, उससे कहीं ज़्यादा, जब वे अपने टीन एजेर्स को धूम्रपान करते पकड़ते हैं, पर बहुतों को पता नहीं चलता कि कैसे रिएक्ट करें। वे बच्चे से घृणा करते हैं, शर्मिंदा होते हैं या क्रोधित, क्यूंकि इसके अलावा उन्हें कुछ भी नहीं सूझता।
लेकिन एक तरफ अगर मैं अपने बच्चों को उनकी सेक्सुआलिटी एक्सप्लोर करने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ, तो क्या उन्हें यह बोलना गलत नहीं होगा कि इंटरनेट के इस युग में पोर्न उनकी लिमिट से दूर है? वो पोर्न तक आसानी से कभी भी पहुंच सकते हैं, ये जानते हुए उन्हें रोकने का खास मतलब नहीं बनता। वैसे भी जब हम अपने बच्चों को कुछ करने से रोकते हैं, तो वे उतना ही उस चीज़ की ओर आकर्षित होते हैं। वे हमारी पीठ के पीछे कुछ भी कर सकते हैं। चाहे हम कितनी भी साइबर सिक्योरिटी लगा लें, टीनेजर्स हमारे कण्ट्रोल से बाहर अन्य कंप्यूटरों पर एक नया रास्ता खोज ही लेंगे।
मैं सेंसरशिप की बहुत बड़ी फैन नहीं हूं और ना ही मैं मानती कि पोर्न अपने आप में एक बुरी चीज़ है? जैसे सुपरमैन की फिल्म देखकर कभी भी, किसी भी बच्चे को कोई निराशा नहीं होती कि उसके पास सुपरमैन जैसी बॉडी नहीं है, उसी तरह बच्चों की ऑनलाइन पोर्न देख कर उसकी सेक्स की अनरिएलिस्टिक एक्सपेक्टेशन नहीं होनी चाहिए। लेकिन ऐसा होता नहीं है।
असल में, कुछ बच्चे केवल पोर्न के द्वारा ही सेक्स के बारे में सुनते हैं और उनके पास कोई है भी नहीं, जिनसे वे इसके बारे में बात कर सकें, सिवाय ऐसे मित्रों के, जो उनके ही समान अपरिपक्व जानकारी रखते हैं। इसलिए समस्या यह नहीं है कि वे पोर्न पढ़ते हैं या देखते हैं, बल्कि यह है कि इस पर सही द्रष्टिकोण देने वाला कोई नहीं है। मेरी राय में यह विषय इतना असहज नहीं होना चाहिए। हमें अपने बच्चों से पोर्न के बारे में बात करने और उन्हें इस विषय पर बहुत आवश्यक दृष्टिकोण देने की आवश्यकता है। यह भी हो सकता है कि जिज्ञासा को संतुष्ट करने के लिए उन्हें थोड़ा पोर्न देखने की अनुमति दे दी जाए, ताकि वर्जित वास्तु के प्रति लालच ही ना बचे और उनकी जिज्ञासा शांत हो सके।
इसके अलावा, इस विषय के बारे में बात ना करके, और गलती से सामने आने पर इसे शर्मनाक करार करके, हम अपने बच्चों को और डरा रहे हैं और उन्हें उससे भी बड़े खतरे के प्रति सचेत करने से चूक रहे हैं – जो हैं पोर्न साइट्स के चैट फोरम। अगर सेंसिटिव और प्राइवेट जानकारी, आपत्तिजनक फ़ोटो और वीडियो, इंटरनेट पर अजनबियों के हाथों में पड़ जाएँ तो इससे बड़ा खतरा कुछ और नहीं हो सकता। ये चैट इंटरफेस आपकी जानकारी के बिना ही आपके वेबकैम को ऑटोमेटिकली चालू कर सकते हैं जो आपको फ़िल्मा सकते हैं। असुरक्षित साइट्स वायरस से भी भरे होते हैं जो आपके कंप्यूटर से आपके नॉलेज के बिना आपके डेटा को इकट्ठा करते हैं।
बच्चों की ऑनलाइन पोर्न देखने का एक और खतरा इसकी लत लग जाना है, खुली बातचीत करके, इससे भी बचा जा सकता है। बहुत सी पोर्न साइट्स महिलाओं को डीग्रेड करती हैं और उन्हें गिरा हुआ दिखाती हैं, लेकिन यहाँ पर फेमिनिस्ट पोर्न जैसे ऑप्शन भी होती हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि ज्यादातर पोर्न महिलाओं को बदनाम करता है और पितृसत्तात्मक समाज में रहने वाले बच्चों पर इसका विपरीत असर पड़ सकता है। इसलिए अपने बच्चों को इसे देखने या पढ़ने से रोकने के बदले, इसके प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण देना ज़रूरी है। पोर्न के बारे में जिज्ञासु होने पर शर्मिंदा होने के बजाय पोर्न में क्या गलत है, ये बताना कारगार साबित होगा।
किशोर बच्चों की यौन कल्पनाओं से पोर्न को अलग करना भी ज़रूरी है। हमें किशोरों को उनकी कल्पनाओं और वास्तविकता के बीच अंतर को समझाने में मदद करनी चाहिए। उन्हें बताएं कि दूसरे जेंडर के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए। वास्तविक जीवन एकदम अलग होता है। ठीक वैसे जैसे कि जब वे बच्चे होते हैं तो हम उन्हें समझाते हैं कि वे सुपरमैन की तरह छत से क्यों नहीं उड़ सकते?
सबसे ज़रूरी है बच्चों को अनैच्छिक आग्रह, भावना और सपनों को काबू करना जो हॉर्मोन्स द्वारा संचालित होते हैं इन्हें हम निश्चित रूप से कंट्रोल कर सकते हैं। इसमें उन्हें खुद को दोषी महसूस नहीं करने की कोई ज़रूरत नहीं है, उनको अपने, व्यवहार, कार्यों और इंटरैक्शन में सेल्फ कंट्रोल रखना सीखना होगा क्योंकि इससे अन्य लोग भी प्रभावित होते हैं।
उदाहरण के लिए, गुस्से में आप किसी के लिए कुछ बुरा करना चाहते हैं, लेकिन आपका खुद पर नियंत्रण है, और ये आप कतई नहीं हैं, क्यूंकि जब आप कुछ मिनटों के बाद शांत होते हैं तो आपको पता चलता है कि जो आपने सोचा था वह कितना गलत था। इसी तरह, इस उम्र में ये हॉर्मोन का नतीजा है कि ऐसे सपने और आग्रह होते हैं। यह ज़रूरी है कि बच्चों को खुद को दोषी महसूस न होने दें, स्पेशली जब तक कि वे खुद पर कण्ट्रोल रख सकते हों और जब तक कि यह उनकी सोच असामान्य ना हो। क्योंकि इस तरह का गिल्ट उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर सकता है कि वे बुरे हैं और इसलिए वे बुरे काम कर सकते हैं।
यदि हम अपने बच्चों को लैंगिक समानता को महत्व देना सिखाते हैं और बचपन से ही उन्हे अलग लिंग, धर्म, जातीयता या राष्ट्रीयता के बावजूद लोगों का सम्मान करना सिखाना चाहिए। लेकिन टीन्स उम्र ही ऐसी है कि बच्चे भ्रमित हो सकते हैं इसलिए बिना शर्म, दोष या अपराध के पोर्न जैसे संवेदनशील मुद्दों पर खुल कर बात करना सबसे अच्छा होता है।
मूल चित्र : Canva
Kanika G, a physicist by training and a mother of 2 girls, started writing to entertain her older daughter with stories, thus opening the flood gates on a suppressed passion. Today she has written over read more...
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