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मतदान पेटी तक पहुँची 10 में से 4 महिलाओं को बताया जाता है कि अपना बहुमूल्य वोट किस निशान को देना है। कईयों को तो ये भी नहीं मालूम कि जिस पर निशान लगा कर आईं है, उस प्रत्याशी का नाम क्या है?
हर भारतीय को संविधान ने कुछ कर्तव्य और अधिकार प्रदान किये है, मतदान का अधिकार उनमें से एक है। हमारे देश में 18 साल की उम्र में वोट देने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। भारत एक लोकतंत्रात्मक देश है, यहां पर जनता का मत बहुत महत्वपूर्ण होता है। सभी नौजवान उत्सुक रहते हैं कि अब वे अपने मनपसंद प्रतिनिधि को चुन सकेंगे, और अब वे भी महत्वपूर्ण हो गए हैं।
यहां पर ज्यादातर निर्णय पुरुषों के द्वारा लिए जाते हैं, महिलाएं केवल उन निर्णयों का पालन ही करती है। उसे घर के पुरुष सदस्यों के द्वारा निर्देशित कर दिया जाता है कि किस चिन्ह पर निशान लगाना है। मतदाताओं की भीड़ में यह महिलाएं भी खड़ी होती हैं, इनका माइंड पहले से सेट कर दिया जाता है।
हालांकि देश के सभी स्थानों में यह हालात नहीं है, फिर भी आमतौर पर देखा जाता है कि पुरुष वर्ग स्त्रियों को इस लायक ही नहीं समझता की वह स्वतंत्र रूप से कोई निर्णय ले सकें।
एक निर्णय बहुत ही व्यक्तिगत होता है, वह है अपने देश को सुरक्षित प्रत्याशी के हाथों में सौंपने का निर्णय। एक व्यक्ति की सोच, पसंद दूसरे व्यक्ति से काफी भिन्न हो सकती है।
स्त्रियों के निर्णय लेने की क्षमता अद्भुत होती है; अनपढ़ स्त्री भी अपने निर्णय बड़ी सूझबूझ से लेती है। वह बहुत जागरूक होती है, अपने कीमती वोट से देश की सत्ता बदल सकती है। स्त्री के निर्णय लेने की क्षमता को कम नहीं आंकना चाहिए ।
वह जिस कुशलता के साथ अपना घर अपने रिश्ते और कार्य क्षेत्र का संचालन करती है। वह जिस समझदारी के साथ अपने एवं अपनों के लिए निर्णय लेती है, उसी समझदारी के साथ वह अपने क्षेत्र अपने राज्य और अपने देश के प्रत्याशी को भी चुन सकती हैं।
शिक्षित नारी देश के विकास में 50% का योगदान दे सकती है, उसकी क्षमता को कम मत आँके। मैं चाहती हूं देश में आने वाले सत्र में होने वाले चुनावों में महिला की सक्रियता एवं भागीदारी स्पष्ट रूप से दिखाई दे, वह व्यक्तिगत रूप से यह महत्वपूर्ण निर्णय ले की सत्ता में किसे रहना चाहिए और किसे नहीं।
चित्र: McKay Savage from London, UK [CC BY]
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