कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
हां उड़ना है इसे, तो क्यों परेशानी है? दे दो बस मुट्ठी भर आसमां, क्या उस पर भी सिर्फ तुम्हारी ही जागीर है? ना समझो कि ये बस एक शरीर है!
शीशे में कैद सी देखो एक तस्वीर है! क्यों गुमसुम सी उससे, उसकी ही तकदीर है?
जकड़न है क्या ये ज़ंजीर की? या उलझे से कुछ रिश्तों की ताबीर है?
कभी इसमें घुली, कभी उसमे मिली शक्कर की जैसी इसकी भी तासीर है।
छटपटाती है पाने को ये बहुत कुछ, ना समझो कि ये बस एक शरीर है।
इक सच्चा प्यार, कुछ सच्चे रिश्ते, बस यही तो इसकी सबसे बड़ी जागीर है।
तन और धन बेमानी हैं इसके लिए, शौक इसके बड़े हैं क्यूंकि, ये मन की फकीर है।
कैद अगर जज़्बातों की हो तो मत खोलो इसे, बस बंधन सपनों पर ना हो, उसी के लिए ये अधीर है।
हां उड़ना है इसे, तो क्यों परेशानी है? दे दो बस मुट्ठी भर आसमां, क्या उस पर भी सिर्फ तुम्हारी ही जागीर है?
देखो बदल रहा है वक़्त, हवा का रुख भी है बदला, हां फैसले नए लेने को अब ये भी गंभीर है।
मूल चित्र : Pexel
read more...
Please enter your email address