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क्या हुआ जो तू पैसे नहीं कमाती? तू बाकि काम संभालती है ना? तेरे पति के पैसे पर, उनकी कमाई पर तेरा क़ानूनी हक़ है। वे तुझे घर छोड़ने के लिए नहीं कह सकते।
रात ढल चुकी थी परन्तु तनु की आँखों से नींद कोसों दूर थी। रह रह कर उसे मोहित के शब्द याद आ रहे थे।
“तुम पैसे की अहमियत कब समझोगी? तुम्हें तो बस मेरे पैसों पर ऐश करने की आदत है। खुद कमाओ तो तुम्हें समझ आये कि पैसे कितनी मेहनत से कमाए जाते हैं।”
“मैं तो खुद के पैसे कमाती थी न। तुमने ही मेरी नौकरी छुड़वाई। तो अब क्यों मुझ पर आक्षेप लगा रहे हो,” तनु ने भी पलट कर जवाब दिया था।
“बच्चों की परवरिश करना भी तो तुम्हारी ही ज़िम्मेदारी थी, तुम नौकरी नहीं छोड़तीं तो क्या मैं छोड़ता? मुझ पर यह अहसान जताना बंद करो,” मोहित ने भी तर्क दिया था।
बातों ही बातों में बात बढ़ गई थी और मोहित ने चीख़ कर कहा था, “तुम मेरे घर से चली जाओ, मैं तुम्हारा चेहरा भी नहीं देखना चाहता।”
तनु को इस अपमान की अपेक्षा नहीं थी, वह अपने कमरे में आकर बिस्तर पर पड़ गई थी और उसका तकिया आँसुओं से भीग रहा था। वह सोच रही थी, “विवाह के बीस वर्षों बाद भी क्या यह घर मेरा नहीं? मोहित ने कितनी आसानी से मुझे घर से जाने को कह दिया…कहाँ जाऊँ मैं?”
सभी तनु का फ़ोन बजा। यह उसकी बचपन की सहेली रीना का फ़ोन था, जो अमेरिका में रहती है इसीलिए अक्सर देर रात को फ़ोन करती है। तनु ने फ़ोन उठाया तो उसकी भर्राई हुई आवाज़ सुनते ही रीना बोल पड़ी,
“क्या हुआ तू रो क्यों रही है, बता मुझे, क्या बात है?”
तुन ने जब उसे सारी बातें बताईं तो रीना ने कहा, “क्या हुआ जो तू पैसे नहीं कमाती, तेरे पति के पैसे पर उनकी कमाई पर तेरा क़ानूनी हक़ है। वे तुझे घर छोड़ने के लिए नहीं कह सकते। यदि उन्हें तेरा चेहरा नहीं देखना है तो वे तुझे तलाक़ देकर, भरण पोषण की भारी भरकम रकम दें। तू कुछ दिनों के लिए मायके या किसी सहेली के पास चली जा, तेरा मन बहल जाएगा।”
रीना की बातें सुनकर तनु ने अपने आँसू पोंछ लिये।
सवेरे जब उसकी नींद खुली तो उसकी नज़र सोफ़े पर सोए मोहित पर पड़ी, सोते हुए मोहित कितने मासूम लग रहे थे । उसने मोहित को आवाज़ देते हुए कहा, “मुझे दिल्ली जाना है, मेरा टिकट करा दो।”
मोहित नींद सें चौंक कर उठते हुए बोला, “दिल्ली? वहाँ कौन है? क्यों जाना है? तुम्हारा टिकट कराने के लिये मेरे पास फ़ालतू पैसा नहीं हैं।”
“आज से ये मेरा पैसा, मेरा घर कहना बंद करो मोहित। तुम्हारे पैसे और तुम्हारे घर पर मेरा क़ानूनी अधिकार है। मुझे मेरे अधिकारों के बारे में अच्छी तरह से पता है। तुम मुझे मेरे घर से जाने को नहीं कह सकते। मुझे अपनी सहेली की बेटी की शादी में दिल्ली जाना है और तुम मेरा टिकट कराओगे,” तनु ने दृढ़ स्वर में कहा।
मोहित ठगा सा तनु के इस रुप को देखता रहा फिर धीरे से बोला, “दिल्ली का टिकट किस दिन का कराना है? पत्नी के इतने अधिकार होते हैं, यह तो मुझे पता ही नहीं था। मुझे माफ़ कर दो तनु, मैं ग़ुस्से में कुछ ज़्यादा ही बोल गया।”
“ठीक है, माफ़ किया। चलो फ़्रेश हो जाओ, मैं चाय बना रही हूँ। हाँ दिल्ली का टिकट शनिवार का कराना है,” तनु ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ कहा और चाय बनाने रसोईघर की ओर चल दी।
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