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क्या हमारी कामवाली बाई को इंसान होने का हक़ नहीं है?

चार दिन घर के सारे काम जो किये, माला ने सुनिश्चित कर लिया कि अब वह अपनी कामवाली बाई को केवल इस्तेमाल नहीं करेगी, उसे भी इंसान समझेगी।

चार दिन घर के सारे काम जो किये, माला ने सुनिश्चित कर लिया कि अब वह अपनी कामवाली बाई को केवल इस्तेमाल नहीं करेगी, उसे भी इंसान समझेगी।

अर्जुन ने बिस्तर पर जैसे ही करवट बदली, देखा बगल में माला नहीं थी। बाहर बैठक में आकर देखा तो वह टीवी देख रही थी। देख क्या रही थी, चैनल पर चैनल बदल रही थी।

अर्जुन ने कहा, “रात के 12 बज रहे हैं, सो क्यों नहीं रही हो?”

माला ने कहा, “बेचैनी हो रही है, नींद नहीं आ रही।”

अर्जुन ने पूछा, “क्यों?”

माला बोली, “कल से कामवाली सुनीता नहीं आएगी, 4 दिन की छुट्टी में गांव गई है।”

अर्जुन ने हंसते हुए कहा, “तो क्या तुम 4 दिन तक नहीं सोने वाली?”

माला ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा, “तुम नहीं समझोगे।” और वह गुस्से में बेडरूम में चली गई। पीछे से अर्जुन भी आ गया।

अर्जुन को तो कुछ देर में नींद आ गई, पर माला को चिंता सता रही थी। सुबह 8:00 बजे माला की नींद खुली, किचन से खटर-पटर की आवाज आ रही थी, जाकर देखा, अर्जुन चाय बना रहे थे। उसको देख कर मुस्कुराये, बोले, “खुल गई नींद मैडम? यह लो आपकी चाय।”

माला ने अपनी चाय ली और बाहर बालकनी में खड़ी हो गई, किसी की बाई मिले, तो बुलाकर सारा काम करवा लूँ। मगर 9:30 तक उससे कोई बाई नहीं दिखी। थक कर सोफा में बैठ गई। अर्जुन ने उसका हाथ अपने हाथ में रखते हुए कहा, “मैं कल से तुम्हारी मदद करूंगा, मगर आज मुझे ऑफिस थोड़ा जल्दी जाना है। तुम प्लीज़ जल्दी से नाश्ता बना दो।” माला जाकर नाश्ता बनाने लगी। अर्जुन को टिफिन दिया और वह ऑफिस चले गए।

माला किचन को समेटने लगी। सारे बर्तन निकल चुके थे और कल रात के जूठे बर्तन सिंक में पड़े थे। वाशिंग मशीन के पास कपड़ों का ढेर पड़ा था। अभी बेड भी क्लीन नहीं हुआ था। झाड़ू पोछा का सोच कर ही माला को बुखार आ रहा था, “हे भगवान! कैसे करूंगी। यह 4 दिन! मम्मी! क्या करूं मैं!”

उसे ख्याल आया वह मम्मी को फोन करके अपना दुःख कहेगी तो थोड़ा हल्का लगेगा। फिर बढ़िया काम हो जाएगा। उसने तुरंत ही माँ को फोन लगाया। और सारा दुखड़ा सुनाया कि कैसे उसके काम वाली 4 दिनों के लिए बाहर गई है। सारा घर का काम उसे करना पड़ेगा। बताओ भला। माँ ने भी समझाना तो दूर, उसकी ही हां में हां मिलाई, “बताओ तो सही, कैसी बाई है? इतना नागा? 4 दिनों के लिए। हद हो गई।” दोनों की दुःख भरी दास्तान लगभग डेढ़ घंटे में खत्म हुई।

घड़ी को देख कर माला के हाथ पैर फूल गए। उसने जैसे तैसे नाश्ता निकाला और नाश्ता करते हुए सोचा इतना सारा काम भला खाली पेट कैसे हो पाएगा। थोड़ा बहुत खा लेती हूँ। फिर काम की हिम्मत जुटा पाऊंगी। उसने नाश्ता खत्म करते ही अपने लिए एक कप चाय तैयार की। टीवी ऑन करते हुए, चाय पीने लगी और सोची बस एक कप चाय पी लूँ तो तरोताजा होकर एक साथ पूरे घर का काम निपटा दूंगी।

चाय ख़त्म हो चुकी थी। कप सूख चुका था। चलती टीवी को कड़े मन से ऑफ करते हुए, माला ने वाशिंग मशीन रेडी करी, कपड़े डाले, हाथ में झाड़ू उठाई, कितनी गर्मी है कैसे? सुनीता काम कर पाती होगी, बेचारी अब आएगी तो उसके दर्द को समझते हुए मैं ज्यादा काम नहीं कराऊंगी। पक्का।

उसने झाड़ू लगाना शुरू किया, बिस्तर जमाया, फर्नीचर पोछा, वह पसीने से नहा गई। बेडरूम में झाड़ू लगा रही थी कि अचानक हाथ लगने से ए.सी का रिमोट दब गया। कितनी ठंडी हवा है। 5 मिनट इसमें बेठ जाती हूँ। आखिर सारा काम तो मुझे ही करना है। 5 मिनट पता ही नहीं चला कब आधे घंटे में बदल गया।

उसने जैसे तैसे नाम के लिए झाड़ू लगाई। किचन में पहुंची तो सिंक में पड़े बर्तन मुंह चढ़ा रहे थे। उनको देखकर माला को कोफ्त होने लगी| हे प्रभु! यह औरत का जन्म क्यों दिया, उसे खुद पर बहुत दया आ गई। नारी जीवन की व्यथा बहुत ही तीव्रता से महसूस हुई। लगा 5 मिनट और सोची तो शायद एक दर्द भरी कविता लिख दूंगी। मगर फिर भी मन कड़ा करके अपने बिखरेे बालों का जुड़ा बनाकर उसने बर्तन धोना शुरू किया।

बर्तनों को धोते-धोते उसका बर्तन मांजने में इतना मन लगा कि जमे हुए बर्तन को भी निकाल-निकाल कर, रगड़ रगड़ के मांजने लगी। उस समय ऐसा लग रहा था कि कितना गंदा काम करती है यह सुनीता! इसे तो निकाल ही देना चाहिए। देखो मैंने कितने सुंदर बर्तन मांजे हैं।

अभी दीदी को यह बात बताती हूं। उसने तुरंत दीदी को फोन लगाया और बताने लगी कि कैसे सारे बर्तन गंदे थे। उसने बड़ी ही फुर्ती से सारे बर्तन चमका दिए, उसकी बड़ी बहन ने भी उसकी हां में हां मिलाई। फिर दोनों ने मिलकर सुनीता की खूब बुराई की, जब पेट भर गया तो बोली, “दीदी मैं अभी तक नहाई नहीं हूं, जाती हूं नहा लूँ।”

फोन रखते ही माला को याद आया कपड़े तो उसने सुखाए ही नहीं। खाना भी नहीं बनाया। वह हड़बड़ा गई। जैसे तैसे नहा कर बाहर आई। अपने लिए खिचड़ी बनाई और कपड़े सुखाने लगी। जब लंच करने बैठी तब तक किचन में कुछ बर्तन फिर जमा हो गए। उसने अपना सिर पटका, खाना खाकर बचे बर्तन मांजी। बर्तन मांजते हुए सोच रही थी एक घड़ी को आराम नहीं करी। तभी डोर बेल बजी। कुरियर वाला था। उसने पार्सल लेकर साईन किया।

तभी तनु (सहेली) ने आवाज दी, “तुम्हारे घर कितने दिन नहीं आएगी सुनीता? मुझे तो 4 दिन का कह कर गई है।” माला ने कहा, “मुझे भी वही कह कर गई है, मगर जो वो कहती है, कभी करती है? 4 दिन कब 6 दिन मे बदल जाएँगे पता नहीं।”

मोहल्ले की चौपाल जम गई और शुरू हो गया आओ बहन चुगली चुगली खेलें, “हाँ यार देखो ना इसका हर बार का नाटक है, इतनी दिक्कत के बाद भी निकाल नहीं सकतेे। मगर अब बरदाश्त के बाहर है। आज तो पहला दिन था। आगे भी 3 दिन और बचे हैं। जाने कैसे होगा?”

माला बोली, “मैंने तो आज खाने में केवल खिचड़ी ही बनाई है। रोज तो खिचड़ी नहीं बन सकती ना। कोई और होता तो छुट्टी भी नहीं देता और सुनाता अलग। मगर अपन को तो अपनी भलाई ले डूबी। पैसा भी नहीं काट सकते। क्या करें? चलो अब जाकर थोड़ा सुस्ता लूँ। फिर थोड़ी देर में शाम हो जाएगी।” उसकी सहेली तनु ने भी सुनीता को जी भर कोसा और आधा घंटे तक उस पर क्या बीत रही है सुनाई फिर दोनों थक कर अपने अपने घर चली गयीं।

अपने घर में आते ही माला मोबाइल लेकर लेट गई, व्हाट्सएप-फेसबुक चेक करते हुए 2 घंटा बीत गया। हल्की सी झपकी लगी ही थी कि अर्जुन ऑफिस से वापस आ गए। उसने उठकर दरवाज़ा खोला और चाय का पानी चढ़ाया।

अर्जुन बोला, “वाह आज तो घर बहुत साफ-सुथरा दिख रहा है।” इतना बोलना ही था कि अभी तक उसने जो जो अपनी माँ, बहन, सहेली से सुनीता की बुराई करते हुए बोला था उसमें और 20-25 लाइन जोड़ कर अर्जुन को सुना डाला। अर्जुन की हालत यह थी कि ना चुप करा सकता ना बीच में कुछ बोल सकता था। 2 घंटे की राम कहानी के बाद ही वह फ्रेश होने बाथरूम जा पाया। फ्रेश होकर बोला, “चलो खाना बाहर खाने चलते हैं।”

माला कूदकर उठी और तैयार होने चली गई। अर्जुन ने कहा, “10 मिनट में रेडी हो जाना।” माला ने जल्दी से मुंह हाथ धोकर आसमानी साड़ी पहनी और हल्का मेकअप किया। माला बहुत ही खूबसूरत दिख रही थी। होटल में दोनों ने खाना खाया और लॉन्ग ड्राइव पर निकल गए।

रास्ते में अर्जुन ने समझाया, “तुम परेशान नहीं रहा करो। सुनीता आए या ना आए यह घर तुम्हारा है। वह सिर्फ दो या तीन घंटे काम कर सकती है, पर तुम्हें पूरे दिन अपने घर को संभालना है। अगर सुनीता नहीं होगी तो कोई और बाई आएगी। मगर यह घर तुम्हारा ही रहेगा। मालकिन हो तुम इस घर की। जैसे सारे अधिकार तुम्हारे पास हैं, वैसे ही सारे कर्तव्य तुम्हारे ही हैं। आजीवन कर्तव्य मुक्त नहीं हो पाओगी। और दूसरी बात, सुनीता सिर्फ कामवाली बाई नहीं एक इंसान भी है, उसकी भी कुछ ज़रूरत है, रिश्तेदार हैं, घर परिवार है, सुख दुख है। उसेेे भी हक है, तुम्हारी तरह मनोरंजन करने का।”

अर्जुन ने जैसे समझाया, उस तरफ से माला ने कभी नहीं सोचा था। बचपन से आज तक उसने अपने चारों तरफ तरफ अपनी माँ और अन्य महिलाओं को यही करते देखा और सुना था। कामवाली की बुराई करो और अपने काम की व्यथा सुनाओ। आज वह नए तरीके से जीवन को देख रही थी।

11 बजे वे घर आ चुके थे। माला ने कॉफी बनाई और दोनों टी.वी के सामने बैठ गए। आज माला समझ चुकी थी उसकी जिंदगी में सुनीता (कामवाली) की कितनी अहमियत है। मगर फिर भी वह उसकी सहायक मात्र है।  बाकी उसका ही उत्तर दायित्व है इस घर को सवारने सहेजने का। उसकी किस्मत बहुत अच्छी है कि उसे अर्जुन जैसे सुलझे हुए और समझदार जीवनसाथी मिले। आज माला सुकून से सोई। अगले दिन माला तरोताजा महसूस कर रही थी। उसने फटाफट घर साफ करके झाड़ू लगाया, वॉशिंग मशीन चलाई।

वहीं अर्जुन ने चाय चढ़ा दी, सब्जी काट दी और कपड़े सुखा दिए। बर्तन तो थे नहीं, माला ने खाना भी पका लिया। अर्जुन खाना खाकर चले गए। माला अब समझ गई थी कि उसे अपने कर्तव्य निभाने के लिए सिर्फ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। गपशप मार कर अपना टाइम खराब करने की ज़रूरत नहीं है। अपनी माँ-बहनों, सहेलियों से बात करनी चाहिए, कुछ सुख-दुख की बातें होनी चाहिए, कुछ सीखना चाहिए। मगर चुगली-बुराई में वक़्त खराब नहीं करनी चाहिए। जो उनके पास गुण हैं, कला हैं, वे सीखना चाहिए।

माला ने यह भी सुनिश्चित कर लिया था कि अब वह अपनी कामवाली बाई को केवल इस्तेमाल नहीं करेगी। उसे भी इंसान समझेगी। उसे साक्षर बनाएगी। उसे बचत करना सिखाएगी। मोबाइल चलाना, बैंक में पैसा जमा करना, खाता खोलना, आदि सिखाएगी। बाकी के 3 दिन माला ने सुनियोजित तरीके से काम को अंजाम दिया।

आज का काम भी कर के, उसने कोई भी काम बाद के लिए, नहीं छोड़ा। इस तरह अगले दिन काम भी कम होता, घर फैलता भी नहीं। इससे ज्यादा समय खुद के लिए निकाल पाई। अर्जुन आते तो दोनों आराम से बैठकर क्वालिटी टाइम बिताते। पांचवें दिन ही सुनीता वापस आ गई। सुनीता को लग रहा था कि हर बार की तरह इस बार भी माला दीदी उसे खूब खरी खोटी सुनाएगी। मगर माला ने ऐसा कुछ नहीं किया, कोई भी एक्स्ट्रा काम नहीं निकाला। बल्कि चाय बनाते हुए सुनीता के भविष्य को संवारने की उसने जो योजना बनाई थी उसे समझाने लगी। एक कप चाय अर्जुन को भी देने गई, अखब़ार पढ़ते हुए अर्जुन उसे देखकर गर्व से मुस्कुरा रहे थे।

दोस्तों कामवाली बाई आपके जीवन में क्या महत्व रखती है ज़रूर बताएं!

मूल चित्र: ILO  (क्रिएटिव कॉमन्स लाइसेंस)

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