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उतार फेंको तुम अब इस धूमिल आवरण को

अपने कदमों को पहचानो, अपनी गति को समझो, तोड़ डालो इन जंजीरों को, तुम एक नारी हो,अपनी पर आ जाओ तो, इस दुनिया पर भारी हो!

अपने कदमों को पहचानो, अपनी गति को समझो, तोड़ डालो इन जंजीरों को, तुम एक नारी हो,
अपनी पर आ जाओ तो, इस दुनिया पर भारी हो!

कब समझोगी ख़ुद को
तुम एक औरत ही नहीं
चलती फिरती मशाल हो
नोच डालो अपने ऊपर के
इस धूमिल आवरण को
जो राह तुम्हें भटकाता है।

अपने कदमों को पहचानो
अपनी गति को समझो
तोड़ डालो इन जंजीरों को
तुम भारत की नारी हो
अपनी पर आ जाओ तो
इस दुनिया पर भारी हो

अभी तक चारदीवारी में कैद थी
अब अपने हौसले के साथ
न रुकना न ठहरना
जब तक मंजिल न मिले
तब तक चलते रहना

देख लेगा ये ज़माना
तेरे मजबूत इरादों को।

मूल चित्र : Canva 

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