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मैं हर दिन यह खत तुम्हें लिखती हूं क्योंकि मेरी बातें सुनने के लिए तुम्हारे पास वक्त नहीं है, ना ही मेरी भावनाओं को समझने का.. काश कि तुम समझ पाते मैं भी एक भावनात्मक प्राणी हू, कोई वस्तु नहीं !
“पाखी को मायके गए 1 सप्ताह से भी ज्यादा हो गए थे पर इस बार ना उसका फोन आया ना ही उसका कोई मैसेज। पर वह भी क्या करती मैंने भी कितनी बदतमीजी से उसे घर से चले जाने को कहा था । मेरे उठे हुए हाथ देखकर कितना सहम गई थी वह ”
रजत मन ही मन बुदबुदाया …चार-पांच दिनों तक तो रजत अपने अहम में ही भरा रहा पर अब उसे पाखी की याद सताने लगी । घर के हर कोने से उसे पाखी की प्यारी सी मनुहार ,झिझकती सी शिकायतें, उसके होठों पर मचलते गीत सुनाई देने लगे । वह इधर-उधर पाखी को तलाशने लगा जबकि वह जानता था कि वह वहां नहीं है । अपना सर पकड़ कर वह चीखा…
“मैं यहां तुम्हारी याद में तड़प रहा हूं और तुम वहां मजे से अपने परिवार वालों के साथ खुशियां मना रही हो । ठीक है मैं भी नहीं आऊंगा तुम्हें मनाने ।”
यह कहकर वह गुस्से मे उठा और पाखी की तस्वीर उठाकर अलमारी में रखने लगा तभी उसकी नजर पाखी की डायरी पर पड़ी । पाखी ना सही, पाखी की याद ही । एक पल को उसका गुस्सा शांत हो गया, उसने तुरंत डायरी हाथों में ली और देखा डायरी के पहले पन्ने पर लिखा था – ‘लिखे जो खत तुझे’ । रजत ने उत्सुकता से बस पन्ने पलटना शुरू किया तो उसकी आंखों ने बरसना भी शुरू कर दिया । ऐसा लगा उसकी धड़कन धीमी पड़ रही थी, हाथों से डायरी की पकड़ ढीली हो रही थी ,उसका शरीर कांपने लगा और आखिरी पन्ना पढ़ते पढ़ते तो वह हवा में लहराया और धम्म से सोफे पर जा गिरा ।
दरअसल इस डायरी में पाखी रोज अपनी दिनचर्या पत्र के रूप में लिखती थी । पाखी इसमें वह बातें भी लिखती थी जो वह रजत से कहना चाहती थी पर उसके गुस्सैल स्वभाव के चलते कह नहीं पाती थी। हालांकि दोनों ने प्रेम विवाह किया था पर तब शायद पाखी को रजत के इस स्वभाव का अंदाजा नहीं था । उसने अपने आखिरी खत को कुछ यूं लिखा था –
“मेरे रजत.. मैं हर दिन अपनी छोटी सी दुनिया को प्रेम से भरने की कोशिश करती थी पर आज तुमने मेरे उस विश्वास को तोड़ दिया जिसके सहारे में अपने मां-बाप तक को छोड़ कर आई थी। मैं हर दिन यह खत तुम्हें लिखती हूं क्योंकि मेरी बातें सुनने के लिए तुम्हारे पास वक्त नहीं है, ना ही मेरी भावनाओं को समझने का । इन खतों को पढ़कर तुम नाराज ना हो जाओ इसलिए मैं डायरी में ही दफन करती रही कभी तुम्हें दिया नहीं । रजत शुरू शुरू मे यहाँ बहुत घुटन होती थी ,अकेले डर भी लगता था । इस नई और वीरान जगह पर कोई अपना भी तो नहीं था तुम्हारे सिवा । मेरे दोस्त, मेरा प्यार मेरा मायका, मेरे ससुराल सब तुम ही तो थे रजत पर तुम्हारे लिए शायद मैं एक निर्जीव वस्तु बन गई थी । पर ऐसा नहीं था रजत, मैं जिंदा थी, मैं महसूस करती थी हर दर्द , हर घुटन को । जब तुम ही हिकारत भरी नजरों से मुझे देखते तो, हजारों खंजर एक साथ मेरे दिल में उतर जाते थे पर मैं रोती नहीं थी । मैं हर उस रात भूखी सोई जब तुम देर से बाहर खाना खाकर आते पर मुझसे पूछते भी नहीं थे कि मैंने खाना खाया कि नहीं । जबकि तुम यह अच्छी तरह से जानते थे कि मैं तुम्हारे बिना खाना नहीं खाती थी ।
हमारे झगड़े में हर बार मेरी गलती नहीं होती थी फिर भी मैं हर बार माफी मांग लेती थी क्योंकि मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती थी । पर आज ऐसा लगा कि तुम मुझे कभी मिले ही नहीं । ऐसा लगा जैसे इतने दिनों से मैं एक अजनबी के साथ रह रही थी । पिछले सारे खतो की तरह येे खत भी तुम्हें नहीं दे रही हूं , पर आज मैं यहां से जा रही हूं ,फिर कभी लौट कर ना आने के लिए । यह खत पढ़कर शायद तुम्हें मेरी दर्द का अंदाजा हो पर अब इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि तुम्हारी पाखी अब तुमसे बहुत दूर जा चुकी है ।”
तुम्हारी पाखी
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