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विलेज स्टोरी की अनामिका बिष्ट ने ना केवल अपने जुदा अंदाज़ से सबका ध्यान आकर्षित किया है बल्कि एक महिला होते हुए स्क्वायर फ़ीट फार्मिंग में अनोखी पहल की।
विलेज स्टोरी की अनामिका बिष्ट जी एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने, अपने जुदा अंदाज़ से सबका ध्यान आकर्षित किया है। वो केवल दमदार पर्सनालिटी की स्वामिनी नहीं, बल्कि दमदार पहल करने वाली पहली महिला भी हैं।
सामूहिक खेती एक ऐसी अनोखी पहल है, जिसे कागजों में तो कई बार उकेरा गया पर, इसका कभी भी वास्तविक धरातल पर क्रियान्वन ना हो सका। इस असम्भव को अपने अथक प्रयास से सम्भव बनाया है अनामिका जी ने।
इस आधुनिक युग में सब कुछ कृत्रिम हो चुका है यहाँ तक कि भोजन भी। अभी तक त्योहारों में नकली मिठाई के बारे मे सुना करते थे, फिर मसालों, गुपचुप के पानी में मिलावट के बारे में सुना। मगर फलों और सब्जियों में कृत्रिम रंग लगाकर बेचना, फलों को मीठा बनाने के लिए रसायन इंजेक्ट करना? हद तो तब हो गई जब लोग प्लास्टिक के चावल और पत्ता गोभी बनाने लग गए। इन्हीं सब चीजों से अनामिका जी बहुत आहत हो चुकी थीं।
अनामिका बिष्ट उन लोगों में से नहीं जो बैठकर प्रशासन को कोसते हैं या सिस्टम को खरी-खोटी सुनाकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। वो उन लोगों में से हैं जो अपना रास्ता खुद चुनते हैं और एक नई राह निकालते हैं। बेशक अनामिका जी को इस कार्य में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, मगर वे हार नहीं मान रहीं। उनमें सब चुनौतियों का सामना करने की जिजीविषा है।
एक तरफ जहाँ दुनिया पैसों के लिए बेतहाशा भाग रही है, वहीं, द विलेज स्टोरी की अनामिका बिष्ट इस जद्दोजहद में दिन रात लगी हैं कि सभी अपनी जड़ों की ओर लौटें, सेहत को प्राथमिकता दें। इनके इस जज़्बे को सलाम। फ़सलों के इस खतरनाक कीटनाशक और रासायनिक खाद के खिलाफ जंग लड़ती अनामिका बिष्ट जी- जान से जुटी हैं, ताकि एक दिन हर कोई अनाज और किसान का मूल्य समझे।
बेंगलुरु में रहने वाली अनामिका बिष्ट जी ने अपने फैशन इंडस्ट्री की हाई पेइंग जॉब को छोड़, एक चुनौती भरा फैसला किया और मुड़ गई अपनी जड़ों की ओर उसे सहेजने। उनका मानना है कि ‘इस प्रकृति से हम बहुत कुछ ले चुके, अब समय आ गया है कि इसे बचाया जाए।’
उनके इस प्रयास के बारे में जानने के लिए हमने उनसे टेलिफोनिक साक्षात्कार लिया उन्होंने बहुत ही सटीक तरीके से हमें अपना कंसेप्ट समझाया। मैं चाहती हूं कि इस साक्षात्कार के माध्यम से अनामिका बिष्ट जी की पहल की ओर सबका ध्यान जाए, इसके पहले कि बहुत देर हो जाए।
पेश है उनसे किये गए इंटरव्यू का अंश आप सबके लिए –
“मैंने, ‘अपना खाना, अपना उगाना’ कंसेप्ट को ध्यान मे रखकर ही एग्रीकल्चर को चुना। अपने बच्चों के अंदर यह कल्चर डालना चाहती हूँ कि वह खाने की कद्र करें, किसान की कद्र करें। वो ये जानें कि कहां से आया यह खाना? कितनी मेहनत हो रही है इस खाने को थाली तक लाने में। ये फार्मर कितनी मेहनत कर रहा है? वे इसका मूल्य समझें।”
वे आगे कहती हैं, “अगर आज हमने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो कब देंगे?”
“हम केवल ग्रीन पर ही काम करते हैं, चाहे वह एक्ज़ोटिक सलाद हो, लीफी वेजीटेबल यानि हरी पत्तेदार सब्ज़ियां हों या हर्ब्स हों। हमारा उद्देश्य ही ग्रीन को बढ़ावा देना है। गो ग्रीन ही हमारा एक मात्र लक्ष्य है।
“आज रसायनिक खादों और कृत्रिम तरीके से फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए उपयोग की जाने वाली केमिकल दवाइयों के असर से, कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियां आम हो चुकी हैं। आंतों में होने वाले कैंसर, स्किन कैंसर इनमें से एक हैं। इसके अलावा इन रसायनों क कारण और भी शारीरिक और मानसिक समस्याओं से लड़ना पड़ रहा है।”
उनका मानना है, “इसके लिए कुछ प्रयास किया जाना चाहिये। नहीं तो आने वाली पीढ़ी को हम कैसे सुरक्षित कर सकेंगे?”
अनामिका जी ने 33000 स्क्वायर फीट जमीन को लीज़ पर लिया हुआ है और उस पर ही खेती की जाती है बिल्कुल प्राकृतिक तरीकों से।
“दो लेबर और एक मैनेजर की टीम के साथ मैं पूरे 24 घंटे इस काम को समर्पित करती हूँ। दिन भर काम, रात को इन कार्यों के अपडेटस को सोशल मीडिया (जैसे विलेज स्टोरी के फेसबुक अकाउंट, इंस्टाग्राम अकाउंट, और यूट्यूब) में डालना।”
अनामिका बिष्ट जी ने बताया कि उनका बैकग्राउंड तो कृषि का बिल्कुल भी नहीं है। वे खुद ही सीख रही हैं। कुछ प्रयोग सफल रहते हैं, तो कुछ असफल। मगर अन्य स्पेशलिस्ट आकर उनके साथ खेती में सहयोग देते हैं।जिससे यह स्टार्टअप संभल गया है।
“हम वर्मी पोस्ट और कोकोपीट, यानि नेचुरल तरीके से बनाई गई खाद का ही प्रयोग करते हैं। हम उन्हीं लोगों के साथ काम करते हैं जो खुद ये खाद प्राकृतिक तरीके से तैयार करते हैं। हम डायरेक्ट उनसे खरीदते हैं ताकि उनको फायदा हो और हमको भी सही कीमत में खाद मिल सके। कुछ खाद तो हम लोग खुद ही तैयार कर लेते हैं।”
“बिचौलियों को हम बिल्कुल बढ़ावा नहीं देते, क्योंकि किसी भी चीज का मूल्य कई लेयर में आने के बाद बहुत अधिक बढ़ जाता है। इससे ना तो ग्राहकों को फायदा होता है ना ही किसानों को। पूरा माल बिचोलिये ही खा जाते हैं।”
“एक औरत हमेशा चारों ओर से घिरी होती है। उससे हर कोई अपेक्षा करता है। परिवार, बच्चे, रिश्तेदार या समाज किसी को भी पीछे छोड़कर वह केवल अपना कार्य नहीं संभाल सकती। उसे अपना कार्य इन सभी जिम्मेदारियों को निभाते हुए करना होता है जो बहुत चुनौतीपूर्ण होता है मैंने भी वही चुनौती स्वीकार की है।”
अनामिका जी ने स्वीकारा, “हम इस प्रकृति से बहुत ले चुके, अब बदले में कुछ लौटाने का समय आ गया है। इसकी सुरक्षा करके, अपने बच्चों को स्वस्थ प्रकृती सौंपकर हम अपने कर्तव्य निभा सकते हैं।”
“इसके लिए क्लाइंट को यानी आपको, लैंड सब्सक्राइब करना होता है। हम पहले आपको बीज दिखाते हैं। आप जो भी फसल चाहते हैं, उन बीजों को चुनते हैं, फिर आपको ज़मीन यानि लैंड भी दिखाया जाता है।”
अनामिका कहती हैं, “7×7 स्क्वायर फ़ीट का लैंड फिक्स होता है। आप लैंड सब्सक्राइब करके और ₹2000 मंथली पेमेंट करके अपनी मनपसंद फसल उगा सकते हैं। इसमें सिंचाई ,कोड़ाई, खाद, कीटनाशक से लेकर सारी सर्विस दी जाती है। और फसल पैदा होने तक हम पूरी केयर करते हैं ताकि उन्हें प्राकृतिक रूप से उत्पादन मिल सके।”
अनामिका जी के प्रयास सिर्फ सब्ज़ी उगाने तक सीमित है नहीं हैं। आगे वे बताती हैं, “अपने प्रयास को और भी अधिक सफल बनाने के लिए हम लोगों को गांव में ले जाते हैं। लोगों को समझाते हैं कि बायोडिग्रेडेबल प्लेट कैसे बनाए जाते हैं? रीसाइकलिंग क्या होती है? हम बच्चों को प्रकृति के साथ कैसे जोड़ सकते हैं? इन सभी प्रश्नों के उत्तर हम उन्हें उन्हीं जगहों पर ले जाकर प्रैक्टिकली देते हैं ताकि वे प्रकृति को समझ सकें।इससे सभी में जागरूकता आती है और वे प्रकृति से जुड़ पाते हैं।”
“हम इको फ्रेंडली होली इवेंट करते हैं, जिसमें सारी चीजें नेचुरल होती हैं। होली में हम लोग हल्दी, रोज़ पेटल्स, गेंदे, आदि को रंगों की जगह इस्तेमाल करते हैं। हम मिट्टी के साथ होली खेलने के लिए सभी को प्रोत्साहित करते हैं, ताकि वे टॉक्सिक रंग, ग्रीस आदि से होली ना खेलें और अपनी आंखों और त्वचा को इन कृत्रिम रसायनों से बचा सकें, जिसमें कई बार भारी नुकसान भी हो सकता है।”
‘बैक टू बेसिक एंड गेट अगैन टू यॉर रूट ‘ यानि अपने मूल और जड़ों में वापस जाएँ, इन सुंदर शब्दों में अनामिका जी ने हमें प्राकृतिक और देशी चीजों को अपनाने का मंत्र दिया।
“इसमें खेतों में उगाए हुए अनाज को चूल्हे में पकाकर सर्व किया जाता है। मालपुआ, गुजिया, लड्डू आदि का स्वाद आज भी सबको मिल सके इसका प्रयास किया जाता है। देसी व्यंजनों का वही सोंधापन जिसे हमारी नई पीढ़ी भूलती जा रहीं है।”
विलेज स्टोरी की अनामिका बिष्ट कहती हैं, “हमारे यहां बच्चों को बर्थडे में उपहार स्वरूप फॉर्म लैंड गिफ्ट की जाती हैं, क्योंकि इस नायाब तरीके से उनको अपनी जिम्मेदारी समझ आएगी और वे किसान और अनाज की कीमत को समझ पायेंगे। जो भी बच्चा अपना जन्मदिन मनाने यहां आता है, उसे खेत का ऑर्गेनिक अनाजों वाला शुद्ध पवित्र भोजन ही टेबल पर सर्व किया जाता है और उसे खेती के तौर-तरीके भी सिखाने का प्रयास किया जाता है।”
अनामिका कहती हैं, “आज के युग में केवल शारीरिक स्वास्थ्य ही खराब नहीं हो रहा, लोग मानसिक रूप से भी काफी अस्वस्थ और तनावग्रस्त हो रहे हैं। इसलिए हम योगा, मेडिटेशन एक्सरसाइजेज के कैंप कराते हैं जिसमें शारीरिक और मानसिक समस्याओं का समाधान होता है, और लोगों को स्वास्थ्य की ओर कदम बढ़ाने के लिए अग्रसर किया जाता है।”
मेरे को अनामिका जी की ये बात अच्छी लगी, “केवल किताबें ही सब कुछ नहीं समझा सकतीं, इसलिए बच्चों को यह सब प्रैक्टिकली समझाना चाहिए। इसलिए हम उन्हें टेलीस्कोप के द्वारा रात को तारे दिखाते हैं, उनके बारे में विशेषज्ञों द्वारा जानकारी दी जाती है। उन्हें वातावरण के बारे में बताया जाता है। हमारे यहां एक प्रोजेक्टर लगाया जाता है, जिसमें इससे संबंधित डॉक्यूमेंट्री न्यूज़, मूवी चलाई जाती है।”
“बच्चों के अंदर से उनके सृजन को बाहर लाने की पूरी कोशिश की जाती है इसमें बच्चों से रॉकेट बनवाया जाता है, ताकि वह खेल खेल में विज्ञान से जुड़ सकें। हमारी कोशिश है कि बच्चों में अविष्कार की भावना जन्म ले सके, उनकी जिज्ञासा शांत हो सके। प्रकृति की कीमत वे समझ सकें।”
“आप सोचिए आज के युग में कैसा अनोखा अनुभव है की लोग खुद अपना चूल्हा जला रहे हैं। जिन्होंने कभी देखा नहीं है कि चूल्हा होता कैसा है? हम उन्हें प्राचीन संस्कृति का दर्शन करा रहें हैं।”
वे कहती हैं कि ये सब आपसी सहयोग से ही संभव है, “हमने जो बीड़ा उठाया है यह कोई आसान काम नहीं है। इसके पीछे बहुत सारे लोगों का सहयोग जुड़ा है। मेरे दोस्त, मेरा परिवार, आसपास के लोग, सभी सहयोग कर रहे हैं। इनके अलावा हम जो भी इवेंट करना चाहते हैं, उनसे संबंधित लोगों को अपने से जोड़ते हैं। उनसे संपर्क करके, अनुरोध करते हैं कि यहाँ आकर (विलेज स्टोरी) वर्क शॉप करें।
“उदाहरण के लिए, जैसे मशरूम उगाना हो, तो हम उनके विशेषज्ञ को बुलाकर मशरूम उगाना सीखते हैं। मशरूम किस-किस तरह की होती है? कैसे उसे आसानी से उगाया जा सकता है? इसे सीख कर, बड़े स्तर पर उगाया जा सकता है और पैसे कमाए जा सकते हैं। ताकि लोग न केवल अपना स्वार्थ सुधारें बल्कि आर्थिक उन्नति भी कर सकें।”
आने वाले महिला दिवस के बारे में उनसे चर्चा की गई। उन्होंने इस बात का बहुत ही बेहतरीन जवाब दिया, जिससे पता चलता है कि बेखुद कितनी सशक्त महिला हैं। उन्होंने कहा, “महिलाओं को अपने फैसले खुद लेने चाहिए कभी किसी पर डिपेंड नहीं करना चाहिए।”
अनामिका जी की एक बेटी है और वो खुद मानती है कि एक माँ की जिम्मेदारी पिता की तुलना में ज्यादा होती है, “सारी बातों का ध्यान रखना होता है, उनकी दोस्ती किससे है? उन्हें क्या पसंद है? क्या नापसंद है? वह अपने जीवन में क्या बनना चाहते हैं? वे अपने संस्कारों को भूल तो नहीं रहे।”
“उन्हें आत्मनिर्भर बनाना उनके अंदर विश्वास जगाना कि वह भी इंपोर्टेंट है। यह सब एक माँ को अपने बच्चे को बखूबी समझाना होता है। ऐसे ही नहीं मां को प्रथम पाठशाला बोला जाता है। माँ को माँ ही नहीं गुरु भी बनना होता है।”
उन्होंने कहा, “केवल बड़ी-बड़ी बात करके कुछ नहीं होता, यदि आप बाहर कुछ बदलाव लाना चाहते हैं तो इसकी शुरुआत घर से ही करनी होगी।”
इतने महान संकल्प के साथ, अनामिका जी एक आदर्श प्रस्तुत कर रही हैं। ज़रुरत है तो, बस हम सबको उनके साथ मिलकर उनके सहयोगी बनने की।
तो क्या आप तैयार हैं विलेज स्टोरी से जुड़ने के लिए, ताकि अनामिका जी अपनी जड़ों को भी सींच सकें।
अनामिका बिष्ट से यहां जुड़ें –
91-9740700900anamika[email protected]
मूल चित्र और अन्य चित्र : अनामिका बिष्ट
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