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क्यों है तिरस्कार बेटी का? क्या हमारा कोई अधिकार नहीं?

ईश्वर रूपी नन्ही सी जान ने, बेटी बनकर दुनिया में तिरस्कार ही तो पाया। क्यों तुम भूल गए? तुम्हें भी तो किसी बेटी ने जना है!

ईश्वर रूपी नन्ही सी जान ने, बेटी बनकर दुनिया में तिरस्कार ही तो पाया। क्यों तुम भूल गए? तुम्हें भी तो किसी बेटी ने जना है!

नवल नैन, नवल अंक,
नवल शीर, नवल नीर,
नवल कंचन सी काया,
ईश्वर रूपी नन्ही सी जान ने,
बेटी बनकर दुनिया में,
तिरस्कार ही तो पाया।

ऐसी भी क्या तुझे घृणा,
दुनिया ही न देखने दी,
गर्भ में ही मेरा अस्तित्व मिटाया?
सृजन करो तुम बेटी का,
क्यों तुम भूल गए,
तुमको भी तो किसी,
बेटी ने जना है?
क्या तुमको अपनी माता का भी,
अस्तित्व मिटाना है?

बेटी बनकर दुनियाँ में,
तिरस्कार ही तो पाया है।
छोड़ गई माँ, मेरी मुझको,
जब तुमको मुझे, अपने हृदय से लगाना था,
अपनी पलकों की छाँव मैं सुलाना था,
ऐसे अनमोल पल की क्या तुम्हें नहीं थी चाह,
छोड़ गई तुम मुझको सड़कों पे,
दरिद्रता से आलम्बन को,
ऐसा छुड़ाया दामन मुझसे,
मुड़कर भी न देखा?

इसमें मेरी क्या गलती हो गई,
यह तो था तेरी किस्मत का लेखा,
और शायद मेरे भी नसीब में न था,
तेरी गोद में सोना,
कितने दिनों से भूखी हूँ,
न कुछ पिया, न खाया है,
न सर पर छत है मेरे,
न माँ-बाप का साया है,
बेटी बनकर दुनियाँ में,
तिरस्कार ही तो पाया है।

मूल चित्र : Screenshot from movie Slumdog Millionaire.

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Vibhooti Rajak

Blogger [simlicity innocence in a blog ], M.Sc. [zoology ] B.Ed. [Bangalore Karnataka ] read more...

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