कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

विश्व कैंसर दिवस पर पढ़िए बॉलीवुड की 4 फीमेल फाइटर्स की कहानी

हर साल 4 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है। इसका मकसद कैंसर और उसके इलाज के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाना है।

हर साल 4 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है। इसका मकसद कैंसर और उसके इलाज के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाना है।

इस साल विश्व कैंसर दिवस का थीम है ‘I am and I will’। इस मौके पर दुनिया भर में कैंसर के लिए तरह-तरह के कैंप्स और कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

विश्व कैंसर दिवस के दिन हम उन कुछ महिलाओं की बात करते हैं जिन्होंने कैंसर से जंग जीतकर ज़िंदगी को नए मायने दिए।

सोनाली बेंद्रे

2018 में सोनाली बेंद्रे को पता चला कि वो मेटास्टेटिक कैंसर से ग्रस्त हैं। अपने परिवार के साथ वो इलाज के लिए न्यूयॉर्क चली गईं और अपनी एक ख़ूबरसूरत सी तस्वीर पोस्ट करते हुए उन्होंने ये बात सबसे शेयर की। इलाज के 6 महीने बाद जब वो लौटीं तो एक नहीं कई मैगज़ीन्स के कवर पर उनकी फोटो थी। अपने इस पूरे सफ़र को उन्होंने सोशल मीडिया पर सबके साथ साझा किया। उनकी तस्वीरों में वो बेपरवाह और ख़ुश नज़र आईं। कभी अपने पति और कभी अपने बेटे के साथ बिताए लम्हों को बांटा, तो कभी कीमोथेरेपी के बाद अपने सर के बालों के बिना फोटो शेयर करके उन्होंने लोगों को कैंसर से डटकर लड़ने के लिए मोटिवेट किया।

एक इंटरव्यू में 44 साल की सोनाली ने बहुत अच्छी बात कही, “ मैंने और मेरे परिवार ने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी। कभी भी मेरे ज़ेहन में मौत का ख्याल नहीं आया। हां, मुझे पता था ये लड़ाई मुश्किल होगी पर मैंने मरने के बारे में कभी नहीं सोचा।” सोनाली की हिम्मत और उनकी उम्मीद ही थी कि उन्होंने कैंसर को पछाड़ कर आगे बढ़ने का फ़ैसला किया। कैंसर ने उन्हें कमज़ोर नहीं बल्कि पहले से ज्यादा मज़बूत कर दिया है।

लीज़ा रे

बेहद ख़ूबसूरत और बोल्ड लीज़ा रे बहुत ही कम फिल्मों में देखी गई लेकिन जिस भी फिल्म में आईं अपनी छाप छोड़ गईं। हालांकि लीज़ा ख़ुद को एक्सिडेंटल एक्ट्रेस कहती हैं। लीज़ा सिर्फ 37 साल की थी जब उन्हें ये पता चला कि उन्हें Multiple Myeloma (एक किस्म का ब्लड कैंसर) हैं। ये एक रेयर कैंसर था जिसका इलाज स्टेम सेल ट्रांसप्लांट से ही मुमकिन था।

2010 में लीज़ा ने ये ट्रांसप्लांट कराकर कैंसर से मुक्ति तो पा ली लेकिन आज भी वो अपनी सेहत का ख्याल पहले से कई ज्यादा रखती हैं। जब वो अपने उन दिनों को याद करती हैं तो हर लम्हा उनके सामने आ जाता है।

अपनी इस बीमारी से लड़ने के बाद लीज़ा ये समझ गई हैं कि आप जैसे हैं आपको वैसा ही रहना चाहिए। बढ़ती उम्र में आपकी झुर्रियां देखकर भले ही लोग कुछ भी कहे लेकिन रियल रहना बेहद ज़रूरी है। लीज़ा एक कैंसर एक्टिविस्ट बन गई हैं और सोशल मीडिया के ज़रिए लोगों को पॉज़िटिव और खुश रहने के लिए प्रेरित करती रहती हैं। लीज़ा ने अपनी किताब LISA RAY, Close to the Bone में कैंसर के ख़िलाफ़ अपने सफ़र को बड़ी बारीकी से लिखा है।

ताहिरा कश्यप

जाने-माने एक्टर आयुष्मान खुराना की पत्नी ताहिरा कश्यप जो ख़ुद एक राइटर और डायरेक्टर भी हैं, ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित थीं। लेकिन बेबाक ताहिरा ने अपनी इस बीमारी के बारे में खुलकर बात की और अपनी सर्जरी के बाद अपने घावों की बोल्ड तस्वीर भी शेयर की।

ब्रेस्ट कैंसर से 25 महीने की लड़ाई के बाद ताहिरा ख़ुद को पहले से ज्यादा स्ट्रॉग महसूस करती हैं। उनकी इस लड़ाई में उनके पति आयुष्मान खुराना मज़बूती से खड़े रहे। ताहिरा अपना अनुभव साझा करते हुए बताती हैं कि एक वक्त था जब उन्होंने अपना पूरा स्टेमिना खो दिया था लेकिन अब वो फिर से जिम ट्रैक पर लौट आईं हैं। वो कहती हैं, “आप अपने दर्द को किसी के साथ बांट नहीं सकते लेकिन जब आपका परिवार, बच्चे, पति और दोस्त आपका साथ दें तो आपकी लड़ाई, लड़ाई नहीं रह जाती फिर वो सफर आसान और प्यारा बन जाता है।” जल्द ही ताहिरा अपना डायरेक्टोरल डेब्यू भी करने वाली हैं। ताहिरा भी अब कैंसर मोटिवेटर बन गई हैं और वक्त-वक्त पर इसके लिए कई प्रोगाम्स में हिस्सा भी लेती हैं।

मनीषा कोइराला

‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’, उन्हें देखते ही सबसे पहले यही ख्याल मन में आता था। खूबसूरती और मासूमियत की तस्वीर अभिनेत्री मनीषा कोइराला ने भी कैंसर से मुकाबला किया था।

मनीषा की चमचमाती ज़िंदगी में उस वक्त अंधेरा छा गया था जब उन्हें ये पता चला कि उन्हें आख़िरी स्टेज का ओवरियन कैंसर हैं। पर हार मानना मनीषा ने कभी सीखा ही नहीं था। वो कहती हैं, “वो रात मेरे लिए सबसे लंबी और अकेली थी। लेकिन मेरे दिल में हमेशा उम्मीद थी कि मैं ठीक हो जाऊंगी।”

अमेरिका में मनीषा का इलाज लंबे वक्त तक चला और वो ठीक होकर फिर से फिल्मों में लौट आईं। उन्होंने अपनी इन यादों पर Healed: How Cancer Gave Me A New Life किताब भी लिखी हैं, जिसमें उन्होंने कैंसर को अपनी ज़िंदगी का गिफ्ट बताया है। वो कहती हैं, “कैंसर मेरी ज़िंदगी में तोहफ़े जैसा बनकर आया। इसके बाद मेरे सोचने समझने की नज़र तेज़ हुई और मेरा माइंड क्लियर हो गया।”

कैंसर बेशक एक जानलेवा बीमारी है। लेकिन इससे लड़ने के लिए एक इंसान को हिम्मत और उम्मीद कभी नहीं छोड़नी चाहिए। आइये विश्व कैंसर दिवस के दिन प्राण करें कि आपके आस पास या आपके परिवार में कोई भी ऐसा इंसान जो कैंसर से जूझ रहा है तो उसका साथ दीजिए, उनके साथ मज़बूती से खड़े रहिए। ऐसे वक्त में अगर इंसान अकेला हो जाता है तो ज़िंदगी जीने की उसकी इच्छा कम हो जाती हैं। आपकी इच्छा-शक्ति आपको बुरी से बुरी बीमारी से बचा सकती है।

World Cancer Day पर जाकर आप कैंसर से बारे में सब जान सकते हैं और लोगों को भी बता सकते हैं। विश्व कैंसर दिवस कर कैंसर के ख़िलाफ़ लड़ाई में एकजुट होने की ज़रूरत है।

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

133 Posts | 494,290 Views
All Categories