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चक्रव्यूह : तुम अभिमन्यु नहीं अर्जुन हो इस महाभारत की

औरत का पूरा जीवन एक युद्ध ही है, और इसमें रचा है एक चक्रव्यूह, जिसमें धकेलते तो उसे सब हैं, लेकिन बाहर निकलने का रास्ता उसे कोई नहीं बताता। 

औरत का पूरा जीवन एक युद्ध ही है, और इसमें रचा है एक चक्रव्यूह, जिसमें धकेलते तो उसे सब हैं, लेकिन बाहर निकलने का रास्ता उसे कोई नहीं बताता। 

तुम्हारे जन्म के समय ,
चेहरों की उदासी से शुरू होकर,
तुम्हारे कौमार्य पर
तनती भृकुटियों की रेखा से होते हुए
सदा सुहागन रहो के आशिर्वाद तक,
पंक्ति दर पंक्ति
रचा गया है यह चक्रव्यूह।

अब जबकि तुम लड़ते-लड़ते
पहुँच चुकी हो भीतर तक,
तो बस यह याद रखो कि
कि तुम अभिमन्यु नहीं
अर्जुन हो इस महाभारत की।
और तुम्हें बखूबी ज्ञात है
हर चक्रव्यूह का रहस्य।

तुम्हें कर्म पथ का
बोध कराने को ही कही गई है गीता,
स्वधर्म की रक्षा के लिए
तुम कभी भी
खींच सकती हो प्रत्यंचा।

मूल चित्र : Canva 

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