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इस 21 दिन के लॉकडाउन के दौरान, हर किसी को अपना काम खुद करने की ज़रुरत है, और ऐसा अपने घर से शुरू होना चाहिए - पुरुषों का अपने घरों में काम करने के साथ।
इस 21 दिन के लॉकडाउन के दौरान, हर किसी को अपना काम खुद करने की ज़रुरत है, और ऐसा अपने घर से शुरू होना चाहिए – पुरुषों का अपने घरों में काम करने के साथ।
अनुवाद : शगुन मंगल
मेरे प्रिय पुरुष गण,
(और मैं विशेष रूप से उन संपन्न परिवारों के पुरुषों को संबोधित कर रही हूं, जिनके पास एक अच्छा-खासा मासिक वेतन का चेक है और इस लॉक डाउन के दौरान वे घर में आराम कर रहे हैं…)
जैसा कि भारत आज 21 दिनों के लॉकडाउन में जाता है, आप अगले 3 हफ्तों के लिए घर पर ही रहने वाले हैं। अधिकांश भारतियों की तरह, आप में से ज़्यादातर लोग अपने परिवार के साथ रह रहे होंगे, और इन परिवारों में कई महिलाएँ शामिल होंगी – माताएँ, पत्नियाँ, बहनें, बेटियाँ!
यदि आप उन लोगों में से हैं, जो अपने घर का लोड शेयर करते हैं, जिन्हें अपनी माँ या पत्नी से यह नहीं पूछना पड़ता कि आपके मोज़े कहाँ हैं, तो यह पोस्ट आपके लिए नहीं है (लेकिन फिर भी आप पढ़ते रहें क्यूंकि आप इसे अपने साथियों के साथ साँझा कर सकते है; और हाँ याद रखें कि वे आपकी कही बात, एक महिला की कही बात की तुलना में, ज़्यादा इत्मीनान से सुनेंगे। दुःख की बात है ना? लेकिन क्या करें, आज भी ये ही सबसे बड़ा सच है।
यदि आप उन पुरुषों में से एक हैं जो कि आश्चर्य करते हैं कि आपकी पत्नी / माँ पूरे दिन क्या करती है या आपकी पत्नी जो घर के बाहर काम करती है, वह ‘मेरी माँ की तरह’ खाना नहीं बना सकती, तो मैं तहे दिल ये उम्मीद करती हूँ कि ये 21 दिन आपको कुछ तो ज़रूर सिखाएंगे। उनमें से कुछ बातें ये हैं –
डॉक्टरों की अपॉइंटमेंट, दोस्तों के साथ डिनर, घर की किसी भी तरह की मरम्मत की ज़रूरत … आप शायद लॉकडाउन के अंत तक इनमें से कई चीज़ों को टाल देंगे। हो सकता है कि आपके द्वारा सहन की जाने वाली ये असुविधा, आपको उस श्रम के बारे में सोचने में मजबूर कर दे जो आमतौर पर इन कामों को करने में लगता है।
और, इन कामों में से कोई भी काम रविवार के लिए नहीं रुकता। अब हो सकता है कि कामवाली के बिना, जिनके बिना शायद हमारी रोजमर्रा की जिंदगी नहीं चल सकती, गुज़ारे ये 3 हफ्ते आपको ये सब अच्छी तरह से सोचने पर मजबूर कर दें।
और अभी तो मैं उन स्थितियों के बारे में भी बात नहीं कर रही हूं जिनमें असाधारण जतन की आवश्यकता है, जैसे कि एक बीमार बुजुर्ग की देखभाल।
आजकल मैं बहुत से लोगों के सकारात्मकता से भरे-निचुड़े ज्ञान को सुन रही हूँ कि इस तरह के समय में, हम सभी को एक-दूसरे के लिए होना चाहिए।
वास्तव में हमें यही करना है। आइये, शुरुवात हम अपने घर से ही करें…..
मूल चित्र : Canva
Founder & Chief Editor of Women's Web, Aparna believes in the power of ideas and conversations to create change. She has been writing since she was ten. In another life, she used to be read more...
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