कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
पहले हमें जागरूक होना होगा तभी हम दूसरों को जागरूक कर पाएंगे वरना फिर कोई विशाल मिलेगा जिसका पेट खाली होगा या कोई रामस्नेही, जिसके शरीर पर ज़ख्म होगा।
वैश्विक महामारी COVID 19 सारे विश्व को जकड़े हुए है। आज यहाँ सिर्फ भारत बंद नहीं है, सारे विश्व में लोग क़ैद होकर रह गए हैं। प्रधानमंत्री हों या मुख्यमंत्री, अध्यापक या कोई और। इनसे परे भी शायद कोई जो न तो किसी पेशे से हैं और न किसी स्थायी रोजगार से सम्बंधित हैं। शायद उनका रोजगार ही हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण हो। उनका तो हर चेहरा क़ैद हो गया है, चाहे वह माँ के रूप में हो, या बाप के रूप में हो या भाई या बेटी। कुछ लोग हैं। जो विश्वभर में मेहनत के सबसे शीर्ष पर होते हैं –
मेहनतकश काम को जो अंजाम देते हैं। जिनको हम दिल से”किसान”कहते हैं।
केंद्रीय सरकार द्वारा उठाये गए कदम अत्यंत सराहनीय हैं और हम भारत के नागरिक इस तथ्य की इज़्ज़त करते हैं। वहीं राज्य सरकारें भी अपनी अपनी भूमिका बहुत अच्छी तरह से निभा रहे हैं। इन सब का एक ही लक्ष्य ही के ‘कोई भूखा न रहे’ प्रधानमंत्री अन्न योजना सभी गरीबों के पेट भरने के लिए ही नियोजित की गई है।
यहाँ किसान समुदाय कहीं न कहीं इन सुविधाओं का लाभ नहीं उठा पा रहा और कई रातों से भूखा सो रहा है। किसी के पास सम्पूर्ण दस्तावेज नहीं, तो कोई जागरूक ही नहीं है।
मैं अपने लेख द्वारा लोगों को संबोधित करते हुए यही कहना चाहता हूँ, कई चेहरे ऐसे भी हैं जो किसी की नज़र में नहीं आ रहे और एक पिछड़े हुए समुदाय के रूप में अपने दर्द को झेल रहे हैं। उनके लिए कुछ सोचा जाए और समझा जाए जो उनके लिए इस समय तो उपयोगी साबित हो। उनके लिए भी सारी सुविधाएं मुहैया करवाई जाएं। लगभग ज़्यादातर NGO झुग्गी बस्तियों में जाकर अपना कैंपेन चला रहे हैं। जो उनको खाने पीने और आधारभूत सुविधाएं मुहैया करवा रहे हैं।
मैं कल रविवार के दिन यमुना खादर गया और कुछ अनाज और चीनी, तेल आदि उनको देने के लिए निकला। मेरे घर से 3 किलोमीटर कि दूरी पर स्तिथि है, जो यमुना के तट पर खेती बाड़ी करने वालो का स्थान है। जिनके मालिक दिल्ली के ही किसी हिस्से में रहते हैं, खेतों की देखभाल के लिए उन्होंने कुछ किसानों को रखा हुआ है।ये दिल्ली से नहीं हैं, कोई बदायूं से है कोई अलीगढ़ से है, तो किसी का सम्बन्ध बिहार से है आदि। वहाँ की स्तिथि इतनी भयावह थी जिसका मैंने अंदाज़ा भी नहीं लगाया था। वहाँ की हवाओं में भी एक रूखापन था, ऐसा लग रहा था प्राकृतिक भी उनसे नाराज़ है।
मैंने 7 घरों का निरीक्षण किया और उसके बाद उनको समान का वितरण करने के लिए बाहर बुलाया, उनसे बातें की, हंसी मज़ाक किया, उनके आँसुओं को हँसी में तब्दील किया। मैं वहाँ के बच्चों के लिए मैं कुछ बिस्किट और केले लेकर गया था।
मेरी एक्टिवा देखते ही बच्चे चिल्लाने लगे, “विशाल तेरे भैया जी आ गए!” उनकी आवाज़ में आशा थी, एक खनक थी, मगर नहीं था तो वह चहकना नहीं था जो भरे पेट से निकलता था। मैं उनको देख कर थोड़ा मुस्कुराया और फिर अपने थके हुए मन के आंसुओं को उनके चेहरे की मुस्कान से सोख लिया।
मैंने कहा, “विशाल आजा देख तेरे लिए मैं तेरी पसंद के बिस्किट लाया हूँ।”
(यह विशाल जो मुझे दो साल पहले वहीं खेतों के अस्थायी स्कूल में मिला था, दीपावली पर जब हम बच्चों के साथ दीवाली मनाने गए थे, तभी से यह मेरा पक्का दोस्त बन गया। और मैं, विशाल का भैया!)
बहरहाल! विशाल मेरे पास आया और मेरे हाथ के थैले को देखने लगा और हँस कर मेरे गले से लग गया। मैंने उसकी भूख की तपिश को महसूस कर लिया था और उसके लरजते हुए लहजे से मैंने भाँप लिया था के उसके पेट में इस समय कुछ भी नहीं हैं। मैंने उसको बिस्किट दिए, इतने में और भी बच्चे आ गए मैंने उनको भी केले और बिस्किट बाँट दिए। वहीं विशाल छोटे से कटोरे में पानी भर कर लाया और उसमें बिस्किट डाल कर डुबो-डुबो कर खाने लगा। यह मेरे लिए दिल को तार-तार कर देने वाला दृश्य था। वक़्त कैसा होता है ना? कितना कठोर भी और इतना दयनीय भी।
मैंने उनके माता-पिता से और लोगों से अपने पास आने को कहा और उनसे उनकी समस्याएं भी पूछीं। और सबको अनाज वितरित किया। सब लोग परेशान थे, और असहाय भी।
उनमें से एक अम्मा बोली, “बेटा तू आ गया है मैं तेरे सर पर हाथ रख कर दुआ दूंगी, तू तो मुझे छूने से मना नहीं करेगा?”
मैंने कहा, “अम्मा बिल्कुल नहीं! आप मेरे सर आप हाथ रख कर दुआ दीजिये और मुझे बुज़ुर्ग लोगों की दुआ से बढ़कर कोई चीज़ प्यारी नहीं।”
उन्होंने हँसते हुए मुझे दुआ दी और मेरे सर पर हाथ रखा। मैं भी खुश हुआ, और उनको समझाया भी कि आज कल महामारी की वजह से लोग एक दूसरे को छू नहीं रहे, आप में कोई कमी थोड़ी न हैं। यह तो हमारे भले की ही बात है। अम्मा मेरी बात से खुश भी हुई और सहमत भी।
वहाँ पर सारी समस्याएं सुनने और देखने के बाद एक ही बात समझ आई के उनको भी सपोर्ट की ज़रूरत पड़ती है, उनको भी प्यार और सम्मान चाहिए। रोटी तो सिर्फ पेट भरती है मगर प्यार और इज़्ज़त इंसान की आत्मा की भूख को तृप्त करता है। इस क़ैद की स्तिथि में हमको हर प्रकार के लोगों का ध्यान रखना होगा।
घर का भी कार्यभार सम्भालना और बाहर खेतीबाड़ी की भी ज़िम्मेदारी है इन महिलाओं की। महिला और ऊपर से किसान, यहाँ यह लोकोक्ति सिद्ध हुई, “करेला और ऊपर से नीम चढ़ा।” यहाँ इस व्यथा को व्यक्त करने का मेरा लक्ष्य बस यही बताने का है कि महिला वैसे ही घर के कामों में पिसती हैं ऊपर से खेत का काम भी करना पड़ता है। यह स्तिथि दयनीय है।
इनसे मैंने पूछा, “शांति, आजकल आप किस तरह की परेशानियों का सामना कर रहीं हैं?”
उत्तर मिला, “सर, घर तो घर ऊपर से खेतों के काम भी करना पड़ता है। और खाने के लिए सिर्फ हमारे पास बैंगन हैं, जिसको उबाल उबाल कर हम नमक के साथ खा रहे हैं। इसमें से हमें कौन सी ताकत मिलेगी?”
सही बात है, जब सम्पूर्ण आहार नहीं मिलेगा तो ताकत कहाँ से आएगी?
वहीं दूसरी तरफ मैंने बात की रामस्नेही से। मैंने उनसे भी वही सवाल किए जो शांति से किए। उन्होंने बात शुरू करने से पहले ही हाथों के ज़ख्म दिखा दिए जो चूड़ी के टूटने पर उनके हाथों पर चुभ गए थे। फिर उन्होंने अपनी गर्दन पर लाल धार-धार निशान दिखाए और कहा, “साहब यह है हमारी परेशानी!”
“हमारा पति हमें बार बार कुंठित होकर मरता है। जब धनिया बोने का समय था तब धनिया के बीज 200 रुपये मिले थे, और अब जब धनिया की फसल कट गई तब धनिया 20 रुपये का पाँच किलो भी नहीं बिक रहा। हमारे पति कुछ सब्ज़ियां मोल की लाए थे वह भी नहीं बिकीं और उसने घर आकर सारा गुस्सा हमारे ऊपर ही निकाल दिया।”
हमने अक्सर यही देखा है ज़्यादातर पुरुष बाहर से कुंठित होकर आते हैं और घर पर आकर सारा गुस्सा निकालते हैं।
किसान समाज की सबसे बड़ी समस्या जो वह इस लॉकडाउन के समय झेल रहे हैं वह है उनकी सब्ज़ियों को बेचने के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं हैं। बाहर कॉलोनियों में उनकी सब्ज़ी बिकती थी मगर वहाँ पर पुलिस ने नाकाबंदी की हुई है और डंडे मार मार कर भगा रही है।
उनकी समस्याओं को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। मैं व्यक्तिगत तौर पर कुछ सुझाव देना चाहूंगा कि हम इन लोगों के लिए क्या कर सकते हैं।
कर्फ्यू पास का उपलब्ध करवाना
सरकार ने कर्फ्यू के समय सब्ज़ी और फल वालो के लिए कर्फ्यू पास उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया था कि आपको कर्फ्यू पास उपलब्ध कर दिए जाएंगे, मगर इसका प्रोसेस बहुत जटिल है जिससे उनको सब्ज़ियाँ बेचना मुश्किल हो रहा है।
जागरूकता फैलाना
किसान समुदाय कहीं न कहीं समाज से कटा हुआ रहता है, उनके पास पर्याप्त मात्रा में साधन उपलब्ध नहीं हैं। किसी न किसी तरह सरकार को खेतों में काम करने वाले किसानों के लिए जागरूकता अभियान चलाने चाहिए।
स्वयंसेवकों के कार्यंको निर्धारित करें
जितने भी स्वयंसेवक हैं उनको ट्रेनिंग दे जाए और उनको बताया जाए के किसान समुदाय किस प्रकार की परेशानी से जूझ रहा है? उसकी समस्या का क्या हल हो सकता है? कई बार किसान लोग आसानी से होने वाले कार्य को समझ नहीं पाते तो ऐसे में उनको गाइड करना उनका प्राथमिक कार्य होना चाहिए।
NGO का हस्तक्षेप होना आवश्यक
सरकार एक कमेटी बनाए और उसको कई भागों में विभाजित करे, ताकि असंगठित क्षेत्र के लोगों को अनुमान हो सके कि कोई भी समुदाय छूट तो नहीं रहा। सबको सारी सुविधाएं मुहैया करवाई जा रहीं है या नहीं? एक भाग को किसानों के लिए निर्धारित कर देना चाहिए।
सरकार के द्वारा उठाये गए महत्वपूर्ण कदम, जिसका लक्ष्य कितना अच्छा और सुलभ है के कोई भूखा न रहे। इससे अच्छी पहल और क्या हो सकती है और इस सुविधा का लाभ सबको मिलना चाहिए। इसके लिए हमको जागरूक होना होगा तभी हम दूसरों को जागरूक कर पाएंगे वरना फिर हमको ज़रूर कोई विशाल मिलेगा और उसका खाली पेट या फिर रामस्नेही के शरीर पर ज़ख्म।
मूल चित्र : Imran’s Album
read more...
Please enter your email address