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कोरोना लॉकडाउन में ट्रांसजेंडर्स – क्या है इनकी सबसे बड़ी समस्या और क्या है इसका हल?

Covid - 19 की महामारी और लॉकडाउन के समय कई ट्रांसजेंडर्स की हालत और बदतर हो गयी है और इनके कमाई के सारे रास्ते बंद हो गए हैं। 

Covid – 19 की महामारी और लॉकडाउन के समय कई ट्रांसजेंडर्स की हालत और बदतर हो गयी है और इनके कमाई के सारे रास्ते बंद हो गए हैं। 

समाज में महिलाओं या अनाथ बच्चों के लिए आवाज़ उठाने के लिए कहीं न कहीं कोई तो अवश्य होता ही है, मगर कभी हमने ऐसा देखा है? आज मैं और मेरा दोस्त गली के कुत्तों और गाय को खाना खिलाने निकले और साथ के साथ हम शकरपुर गए, जहाँ पर हिजड़ों का समुदाय रहता है। हमने उनको थोड़ा सा राशन और थोड़ी सब्ज़ियां दी। वहाँ के हालात देख कर मुझे बहुत आहत हुआ। वहाँ का माहौल अत्यंत दयनीय था। उनके लिए कौन, क्या कर रहा है?

कहाँ है ट्रांसजेंडर के लिए सरकार या अन्य समाज का कोई एक ऐसा हिस्सा जो इनके लिए वास्तव में आवाज़ उठाता हो?

ट्रांसजेंडर को हमारे समाज ने दो भागों में विभाजित किया

ट्रांसजेंडर को हमारे समाज ने दो भागों में विभाजित किया है – ट्रांस वीमेन और ट्रांस मेन।

ट्रांस वीमेन उनको कहा जाता है जो जन्म के समय पुरूष थे परंतु खुद को महिलाओं के रूप में प्रदर्शित करते हैं।और, ट्रांस मेन उनको कहा जाता है जो जन्म के समय महिला होती हैं और खुद को पुरुष की भांति देखती है अथवा प्रदर्शित करती हैं।

15 अप्रैल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने यह नियम बना दिया था कि इनको थर्ड जेंडर के यानी तृतीय लिंग के समक्ष रखा जाएगा। यह एक ऐतिहासिक फैसला तो था। 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में 4 लाख 88 हज़ार ट्रांसजेंडर लोगों की जनंसख्या इतनी थी और अगर बात करें राज्य की तो सबसे अधिक हिजड़ा समुदाय के लोग उत्तर प्रदेश में हैं जिनकी संख्या 137,465 थी और सबसे कम लक्ष्यद्वीप में सिर्फ 2 और यह आँकड़े 2011 तक के हैं। अब इनकी संख्या कहाँ तक पहुंची होगी यह किसी को नहीं पता।

भारतीय समाज की रूढ़िवादी आंधी में इस समुदाय के लोगो के साथ भी अत्याचार, और अलगाव की स्तिथि सदियों से देखने को मिलती आ रही है। जब कहीं कोई ऐसा बच्चा होता है जिसके लिंग का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता, लोग उसको अपने खानदान के ऊपर एक धब्बा मानते हैं और उसको समाज से अलग करने की ठान लेते हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी लोगों की सोच में इस बात को लेकर कोई समानता नहीं आई, शायद वह दिन कभी नहीं आने वाला।

ऐसे में ज़्यादातर परिवार वाले इनको घर से निकाल देते हैं और घर पर कभी न लौटने की धमकी देते हैं, फिर चाहे वह वयस्क हो या अवयस्क। हिजड़ा समुदाय या तीसरे लिंग के लोगों को कोई भी काम पर नहीं रखता यह तथ्य तो आप भी मानेंगे उनके लिए जीवन जीना कितना मुश्किल होता है। कितना दर्द भरा और अपमानजनक। इनके अंदर भी जीवन जीने की ललक होती है, यह भी समानता की हवाओं में अपने पंख फैलाना चाहते हैं।

वास्तव में इनके साथ क्या होता है? शायद! यह कोई नहीं जानता, सिवाए उसके जो उसको भुगत रहा है। जो झेल रहा है। कितना दयनीय भाव होगा? और कमाने के लिए उनके पास क्या ऑप्शन हैं? ज़रा दिमाग पर ज़ोर डालिए और सोचिए क्या वह, डॉक्टर, या इंजीनियर हैं? या अध्यापक? नहीं ना? इसके ज़िम्मेदार आप हैं और हम हैं, जिन्होंने इन्हें आगे नहीं बढ़ने दिया।

जिसके पास कमाने का कोई ज़रिया न हो तो वह क्या करेगा अपना पेट पालने के लिए

हम इनको किस नज़र से देखते हैं? कुछ लोग इनसे घिन करते हैं। यह वास्तव में पाप है और एक नीच सोच। अगर हम इनकी कमाई के स्त्रोत पर नज़र डालेंगे तो पाएंगे कि अभी भी इनके कमाने के विकल्प ज़्यादा नहीं हैं। ये विकल्प हैं – भीख मांगना, शादी और जन्म के समय नाच गाना या खुद को सेक्स के लिए बेचना।

केवल यही तीन पेशे हैं जो इनको जीवन को जीने के लिए प्राप्त हैं। नौकरी अभी भी कइयों के लिए है नहीं। इनका आजीविका का साधन अभी भी यही है कि किसी रेड लाइट पर गाड़ियों के रुकने के समय पैसे मांगने की व्यथा। कुछ लोग गलियों में जा जाकर भीख मांगने पर विवश हैं। बाहर बसों में ट्रेन में हमने कई बार देखा होगा यह लोग वहाँ लार जाकर भी भीख मांगने का काम करते आए हैं, जहाँ से इनको आजीविका प्राप्त होती तो थी मगर बहुत ही न्यूनतम स्तर पर। कई लोगों की गालियाँ, डांट, सुनकर यह लोग अपनी मुस्कान को खोते नहीं और आगे बढ़ जाते हैं।

जब कहीं कोई समारोह होता था जैसे किसी की शादी और किसी बच्चे के जन्म के समय भी हमने देखा होगा कि यह लोग बड़ी उत्सुकता से दुआएं देते हुए आते हैं और लोग कुछ रुपये में इनको भेज देते हैं। कई लोग तो इनको गन्दी गंदी गालियां सुना कर पुलिस की धमकी तक दे देते हैं। कई हिजड़े समुदाय के लोग कई बार आक्रामक हो जाते हैं, और लोग उन पर सारा इल्ज़ाम थोप देते हैं। मगर आपने कभी उनके जीवन को जिया है? नहीं जिया और न जी सकते हैं। जिसके पास कमाने का कोई ज़रिया न हो तो वह क्या करेगा अपना पेट पालने के लिए?

कई बार हम रात के समय घर से सैर को निकलते हैं, कभी आइसक्रीम खाने, मौज मस्ती करने और घूमने के लिए निकल जाते हैं। कोई फिक्र नहीं ना ही कोई चिंता, मगर हम वह दृश्य नहीं देख पाते कि कुछ समुदाय के लोगों का एक हिस्सा अपना पेट भरने के लिए इधर उधर भटक रहा है। इस काली रात में उनके मन के भाव भी ऐसी ही कालिख़ लिए होते होंगे। हिजड़ा समुदाय के कुछ लोग रात में देह व्यपार करने के लिए विवश होकर बाहर निकलते हैं। यह कैसी विडंबना है। वह लोग सड़क और रास्तों के ही शुक्रगुज़ार होते होंगे जिनको रास्ते ही कमाने का मौका देते होंगे।

COVID-19 के तांडव से कैसे जूझ रहे हैं ट्रांसजेंडर्स

अभी पूरा विश्व COVID-19 के तांडव से जूझ रहा है और हर तरफ मौत का साया मंडरा रहा है। स्तिथि तो शायद भुखमरी तक आ जाती। गरीब लोग इस बीमारी से न मरकर भुखमरी और बेरोजगारी से मर जाते, मगर सौभाग्यपूर्ण भारत सरकार ने कई योजनाओं की घोषणा की है, जिसमें हर वर्ग के लिए कुछ न कुछ तथ्य शामिल हैं। लोगों को पैसे और खाने का सामान मुहैया करवाया जा रहा है। वित्तिय सहायता प्रदान की जा रही है। यह सरकार का सराहनीय कदम है। मगर इसमें हिजड़ा समुदाय या तीसरे लिंग को इस योजना में कहीं भी जगह नहीं मिली, जिनके लिए योजना को लागू करना अत्यंत आवश्यक था। यह बड़ी दुःखद बात है।

दस्तावेजों की कमी के कारण न तो इनके पास आधार कार्ड होता है और न कोई जन्म प्रमाण पत्र होता है, जो इनके दस्तावेज़ों को मज़बूती प्राप्त करवाए। ऐसे महामारी और लॉक डाउन के समय इनकी हालात और बदतर हो गयी है। इनके कमाई के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। ऐसे में विशेष योजना का इनको हक़ है। मगर सरकार ने इनको नज़रअंदाज़ किया हुआ है।

इस लॉकडाउन के समय में इनका पेट कैसे भरेगा? कौन भरेगा? ऐसे महामारी की समय कौन शादी या समारोह का जश्न मनाएगा और कौन बाहर निकलेगा? जो इनको भीख दे सकेगा? ऐसे में तो इनके हालातों का और भी बुरा हाल होगा।

सरकार को इनके लिए विशेष कदम उठाना होगा, या फिर संविधान से समानता का शब्द ही हटा देना चाहिए। एक जगह लोगों को सरकारी सहायता मुहैया करवाई जा रही है और दूसरी तरफ एक समुदाय ऐसा है जो मौत के तांडव के बीच खुद को असहाय और अकेला समझ रहा है।

आज सुबह का आँखों देखा हाल

आज सुबह, शकरपुर दिल्ली, में हम उस इलाके में गए जहाँ हिजड़ा समुदाय रहता है, उनका हाल जानने के लिए और थोड़ा आ राशन देने के लिए। और हमने वहाँ की सरदार दीपिका से बात की –

“दीपिका आप कैसा महसूस कर रहीं हैं?

दीपिका के जवाब आया, “हमको यक़ीन नहीं आ रहा कोई हमसे भी पूछने आया है? हमको तो हमारे देश की सरकार ने ही निकाल रखा है, आम जनता क्या हमको जगह देगी?”

मैंने सवाल किया, “अब खाने पीने का इंतज़ाम कैसे होगा?”

दीपिका ने रुआँसी आवाज़ में कहा, “पहले का जो राशन रखा है, बस्ती के लोग आपस में मिल बांट कर खा लेंगे, मगर अगर यह कर्फ्यू ज़्यादा चला तो हमारे पास कुछ भी नहीं है, ना हमारे बैंक में खाते हैं, और न कोई जमा पूंजी।”

हमारी तरह इनको भी इस लॉक डाउन में मदद चाहिए

इनके साथ मेरी एक लंबी बात चली मैंने बस कुछ अल्फ़ाज़ साझा किए कि आगे क्या होगा? इनका बैंक में खाता तक नहीं हैं, खाता खुलवाने के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ के अभाव के कारण इनका खाता नहीं खुल सका। ऐसे कई मुद्दें हैं जिनको हम सब नज़रअंदाज़ किये हुए बैठें हैं।

आज की सुबह मुझे अंदर तक तोड़ गई, और मेरे सामान्य जन से यही विनती है कि आप लोग जागरूकता फैलाएं और ऐसे लोगों की आवाज़ बनें। अगर हो सके तो इनकी भी मदद करें। आखिर ये भी हम में से एक हैं।

मूल चित्र : YouTube

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