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आज वक़्त है कि हर काम हर किसी को करने दें, जो जिस काम में खुश, वही उसका काम। क्यूं ना अब एक कदम बढ़ाएं और लाएं दुनियबराबरीवाली।
“अरे! तुम रो रहे हो? लड़के भी कहीं रोते हैं भला? चुप हो जाओ, सब देख रहे हैं तुम्हें।”
ग्यारह वर्षीय अर्श की मम्मी उसे चुप कराने की कोशिश कर रही थीं और अर्श था कि चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था। हुआ यह था कि फुटबॉल खेलता अर्श बड़े ही ज़ोर से गिर गया था, हाथ-पैर बुरी तरह छिल गए थे। बेचारा बच्चा दर्द से बुरी तरह कराह रहा था और आंसू लगातार बहे जा रहे थे।
इन सबके बीच उसकी मम्मी उसे बजाय सहानुभूति देने के या प्यार भरी झप्पी देने के उसे इस तरह चुप कराने की कोशिश कर रही थीं। अपनी मम्मी कि बातें सुन अर्श को बड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई, उसे लगने लगा कि आंसू बहाना सिर्फ लड़कियों का काम है। उस दिन उसने मन में ठान लिया कि अब वह कभी सबके सामने इस तरह नहीं रोएगा, चाहे उसे कितना भी दर्द क्यूं ना हो। उस दिन उसने अपने आंसुओं को रोक तो लिया लेकिन दर्द के मारे कुछ बोल नहीं पा रहा था।
पार्क में बैठी मैं सोचती ही रह गई कि दर्द और आंसू भी लड़का या लड़की देख कर आने चाहिए क्या?
दोस्तों, हम सब ने ऐसा ही दृश्य ना जाने कितनी बार देखा होगा या जाने-अनजाने कई बार किसी को ऐसा कहा होगा। पर क्या हमने कभी सोचा है कि ऐसी बातों का हमारे बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? नहीं ना!
हम जान भी नहीं पाते और ना जाने कब ये बातें हमारे बच्चों के मस्तिष्क पर प्रभाव कर जाती हैं। ऐसे बच्चे ना सिर्फ अपने आंसू छुपाने लगते हैं बल्कि धीरे-धीरे अपनी बातें भी आपसे शेयर करना छोड़ते जाते हैं। आपका बच्चा चाहे लड़का हो या लड़की, वह जैसा है उसे वैसा ही रहने दें।
“लड़के भी भला कहीं ये काम करते हैं, ये तो लड़कियों वाले काम हैं।
“लड़की हो, इतनी जोर से मत हंसो!”
“लड़की हो, ज़रा धीरे चला करो।”
“लड़के भी कहीं पिंक पहनते हैं, ये तो लड़कियों वाले रंग हैं।”
“अरे! ये क्या पहन लिया बिल्कुल मर्दाना कपड़े हैं, ये तो।”
ऐसा कहना छोड़ें। अब हर काम हर किसी को करने दें। जो जिस काम में खुश, वही उसका काम। क्यूं ना अब एक कदम बढ़ाएं और लाएं दुनियबराबरीवाली।
मूल चित्र : Unsplash
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