कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
गौहर जान का नाम, दरबारी वैभव, हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और ग्रामोफोन रिकॉर्ड की पौराणिक छवियों के साथ जोड़ा जाता है। वे कौन थीं और उनकी कहानी क्या है?
अनुवाद : पल्लवी वर्मा
गौहर जान स्वदेशी भारतीय नहीं थीं। उनके पूर्वज उनकी भिन्न आस्था और नस्ल का सबको पता है। फिर भी नियति या भाग्य ने चाहा था कि वह एक ऐसे देश में प्रसिद्धि और गौरव प्राप्त करें जो वास्तव में उनका अपना नहीं था।
एक ऐसा युग में, जब महिलाओं ने शायद ही अपने घरों से बाहर कदम निकालने की सोची हो, गौहर जान नृत्य और संगीत के क्षेत्र में विशिष्ट आकृति बन चुकी थीं। उनकी मधुर आवाज़ ने पुरुषों के दिलों में जुनून जगाया और उनके दिलों की धड़कन बढ़ा दी। उनका जीवन और वह समय भारत में तवायफों के शानदार दौर के साथ मेल खाता था। तवायफ, यानि वे महिला जो मनोरंजन उद्योग से जुड़ी थीं, घरेलू महिलाओं के लिए ये एक टेबू था।
जी हां, मैं गौहर जान के बारे में बात कर रहीं हूं, जो भारत के ‘पहले रिकॉर्डिंग सुपरस्टार’ के रूप में ज्यादा पॉपुलर हैं। उनका रहस्यमयी व्यक्तित्व, उनकी प्रतिभा, और उनके आदर्श, हिंदुस्तान के शास्त्रीय संगीत प्रेमियों के मन में हमेशा के लिए खुद चुके है।
उनका जन्म 26 जून 1873 को पटना(बिहार) में एंजेलीना यिओवार्ड के रूप में हुआ था। उनके पिता विलियम रॉबर्ट येवार्ड जन्म से एक अर्मेनियन यहूदी थे और पेशे से एक इंजीनियर। उनकी मां विक्टोरिया हेमिंग एक भारतीय महिला और उनके ब्रिटिश पति की संतान थीं। लगभग छह साल की उम्र तब उनका परिवार आजमगढ़ (उ.प्र) में रहता था।
उनकी मां विक्टोरिया हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और नृत्य में अच्छी तरह से प्रशिक्षित थीं, बाद में वे एक मुस्लिम रईस, खुर्शीद के साथ जुड़ गईं। इसके परिणामस्वरूप 1879 में उनका अपने पति से तलाक हो गया। 1891 में विक्टोरिया, बेटी और खुर्शीद के साथ बनारस चली गयीं, जहाँ उनका संगीत करियर फलने-फूलने लगा। कुछ ही समय बाद वह अपनी बेटी के साथ इस्लाम में परिवर्तित हो गई। विक्टोरिया ने अपना नाम बदलकर बादी मलका जान रख लिया और एंजेलीना, गौहर जान बन गयीं।
अपने काम को आगे विस्तार देने के लिए, मां-बेटी की जोड़ी 1883 के आसपास कलकत्ता चली गई। वहां उन्होंने अली बक्स के संरक्षण में कथक के अलावा पटियाला के प्रसिद्ध काले खान (उर्फ कालू उस्ताद) से गायन सीखना शुरू किया। छोटी बच्ची को उस्ताद वज़ीर खान(रामपुर), कलकत्ता के प्यारे साहब और कथक (लखनऊ घराना) के एक महाराज बिंदादीन जैसे कई अन्य समकालीन उस्तादों से संगीत और नृत्य सीखने का मौका मिला। उन्होंने बंगाली कीर्तन चरणदास से सीखा। गायिका सृजन बाय ने उन्हें ध्रुपद और धामर का प्रशिक्षण दिया।
लगभग पंद्रह वर्ष की उम्र में, गौहर ने शास्त्रीय नृत्य और संगीत के क्षेत्र में कदम रखा जो दरभंगा राज के महाराजा का दरबार था। एक कहानी के अनुसार, सैकड़ों स्थानीय निवासी, शाही अदालत में उनका गाना सुनने और उनकी सुंदरता की झलक पाने के लिए इस समारोह में एकत्रित हुए। समारोह शानदार रूप से सफल हुआ। महाराजा इतने प्रभावित हुए कि नाबालिग होने के बावजूद उन्हें दरबारी गायक के रूप में नियुक्त कर दिया।
कुछ साल बाद, 1896 के आसपास, उन्होंने आखिरकार कलकत्ता लौटने और वहाँ बस जाने का फैसला किया। उन्होंने सार्वजनिक रूप से नृत्य किया, जिससे उन्हें ‘द फर्स्ट डांसिंग गर्ल’ का सम्मान मिला। धीरे-धीरे वे खयाल, ध्रुपद और ठुमरी के प्रमुख गायक, प्रतिपादक के रूप में विकसित हुईं। वास्तव में खयाल में उनकी प्रस्तुतियां इतनी अतुलनीय थीं कि, भारत के प्रसिद्ध संगीतज्ञ विष्णु नारायण भातखंडे(जिन्होंने संगीत पर कई ग्रंथ लिखे)ने उन्हें, देश की सबसे उत्कृष्ट महिला ख्याल गायिका घोषित किया।
वर्ष 1902 भारतीय शास्त्रीय संगीत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। गौहर जान के लिए भी जिंदगी फिर पहले जैसी नहीं रह गई थी। उस वर्ष ग्रामोफोन कंपनी लिमिटेड ने उनसे संपर्क किया और उनसे उनके लिए गाने की एक सीरीज़ रिकॉर्ड करने के लिए कहा। उन्होंने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।
2 नवंबर 1902 उन्होंने अपना पहला गाना रिकॉर्ड किया, जो खयाल के राग जोगिया पर आधारित था। गीत समाप्त होने के बाद वे पीतल के सींग जैसे वाद्ययंत्र पर “मैं गौहर जान हूं” बोला करती थीं, जो भविष्य में उनका ट्रेडमार्क बन गया। जल्द ही भारत के पहले ‘रिकॉर्डिंग स्टार’ के रूप में उन्हें प्रसिद्धि मिली। 1902 और 1920 के बीच उनने 600 से अधिक गाने हिंदुस्तानी, बंगाली, गुजराती, मराठी, तमिल, अरबी और अधिक भाषाओं में दर्ज़ किए।
गौहर ने भारत में संगीत के अभ्यास के तरीके को बदल दिया। उनकी आवाज देशव्यापी हो गई थी। उन्होंने दूसरे देशों में अपनी जगह बनाई। यूरोप में पोस्टकार्ड और माचिस पर जुड़ी भौंहों के साथ उनके सांकेतिक चेहरे पर बड़े दिलचस्प लेख हैं। अपने करियर के शिखर पर उन्होंने प्रति सिटिंग(फीस) के रूप में 1000- 3000 रुपये तक लिए! दिसंबर 1911 में उन्हें किंग जॉर्ज(पांचवें), के राज्याभिषेक के उपलक्ष्य में दिल्ली के ग्रैंड दरबार में प्रदर्शन करने का अवसर मिला। यह उनके लिए एक और मील का पत्थर था।
जैसे ही गौहर जान की लोकप्रियता और कामयाबी एक चरम सीमा पर पहुंची, वे सभी के आकर्षण का केंद्र बनना चाहती थीं, और इसलिए वे अपने पैसों की शान दिखाती थीं। ग्रामोफोन कंपनी के साउंड एक्सपर्ट एफ.डब्ल्यू गिजबर्ग ने अपनी लिपियों में जिक्र किया कि वे शानदार कपड़े और उत्तम ज्वैलरी पहन कर ही रिकॉर्डिंग के लिए आती थीं। इसके अलावा, उन्होंने कभी भी अपनी पोशाक या आभूषण को दोहराया नहीं था।उनका कलकत्ता निवास विलासिता और आराम का प्रतीक था। कलकत्ता में हर रविवार उन्होंने प्रति नज़राना शुल्क के रूप में 1000-3000 रुपये लिए। जो वास्तव में उस बीते युग में एक बड़ा आंकड़ा था! उन्हें सजीली कारों और लग्जरी गाड़ियों से एक लगाव था। वे घुड़दौड़ के साथ इतनी घिरी हुई थीं कि दौड़ देखने के लिए वे अक्सर चुपचाप बंबई निकल जाती थीं।
उन्होंने कई अजीबोगरीब कारणों पर अपने संसाधनों को नष्ट किया। प्रसिद्ध लिपियों में उनके इस खर्चे के बारे में जिक्र है कि उन्होंने 1200 रुपये अपनी पालतू बिल्ली की शादी का जश्न मनाने के लिये खर्च कर दिये। एक और कहानी बताती है कि एक भव्य पार्टी में उन्होंने 20,000 रुपये खर्च किए सिर्फ इसलिए कि उनकी बिल्ली ने अपने बच्चों को जन्म दिया! जब उन्हें एक कार्यक्रम के लिए दतिया(मप्र) की यात्रा करनी पड़ी, तो उन्होंने एक विशेष ट्रेन की मांग की, जिसमें उसका पूरा स्टाफ – रसोइया, निजी हकीम (चिकित्सक), धोबी, नाई और नौकरों आदि ने उनके साथ यात्रा की!
इतिहास के अनुसार, तीन लोगों ने उनके निजी जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनमें से एक जमींदार निमाई सेन, ने उसे भव्य उपहार दिए। वे गुजराती मंच के एक प्रसिद्ध अभिनेता, अमृत वागल नायक के साथ रहती थीं। दुर्भाग्य से नायक के अचानक निधन से वे इस संबंध को खो बैठीं। बाद में वे सय्यद गुलाम अब्बास के साथ भी रिश्ते में थीं जो उनकी तबला संगतकार के साथ एक निजी सचिव भी थे। उन्होंने उनके साथ छोटा विवाहित जीवन भी बिताया, हालाँकि वे उनसे दस वर्ष छोटे थे। हालाँकि उनके व्यभिचारी तरीकों ने उनके रिश्ते को शर्मसार कर दिया और वे अलग हो गए।
सभी अच्छी चीज़ों का अंत होना तय है। 1920 के दशक में गौहर जान के युवावस्था ढल जाने के बाद उनके करियर के साथ-साथ किस्मत भी बेलगाम हो गई थी। उनके रिश्तेदारों ने उन्हें विविध प्रपंचों में उलझाया। उनके पूर्व पति ने, उन्हें संकट में डालने के लिए विभिन्न मुकदमों में उलझा दिया। ये उनका बदला लेने का तरीका था।
इस उलझन से बाहर निकलने के लिए, उन्हें अपनी पाई-पाई देनी पड़ी और उनके पास कुछ न बचा। बदलाव की तलाश में, उन्होंने उस कलकत्ता को अलविदा कह दिया, जिसने उन्हें प्रसिद्ध किया था। 1928 में, मैसूर के शासक महाराजा कृष्ण राजा वाडियार चतुर्थ ने उन्हें एक मामूली सी पेंशन के साथ ‘महल गायक’ का पद प्रदान किया। लगभग अठारह महीने तक उन्होंने शांत लेकिन अकेला, उदास जीवन जिया और 17 जनवरी 1940 को उनके निधन के साथ उनकी प्रतिभा, महिमा, प्रसिद्धि और जुनून का एक युग भी समाप्त हो गया।
हिंदुस्तानी शास्त्रीय(गायन) संगीत के सभी छात्र शांति से इस हस्ती को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जिन्होंने साहस के साथ उस जगह जाने की हिम्मत की जहां कोई महिला पहले नहीं गई थी …
मूल चित्र : YouTube
Am a trained and experienced features writer with 30 plus years of experience .My favourite subjects are women's issues, food travel, art,culture ,literature et all.Am a true feminist at heart. An iconoclast read more...
Please enter your email address