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घर की मुर्गी- घर बनाने वाली औरत की कहानी जिसे हम अनदेखा कर देते हैं!

किरदार चाहे मां का हो, पत्नी का हो, बेटी का हो - एक औरत हर रिश्ते को निभाती है लेकिन वो ख़ुद कहीं खो जाती है। घर की मुर्गी हमें याद दिलाता है|  

किरदार चाहे मां का हो, पत्नी का हो, बेटी का हो – एक औरत हर रिश्ते को निभाती है लेकिन वो ख़ुद कहीं खो जाती है। घर की मुर्गी हमें याद दिलाता है|  

सबसे सुंदर शब्द होता है, मां। इस एक शब्द में पूरी दुनिया सिमटी होती है लेकिन मां की दुनिया सिमटी होती है अपने परिवार में। मां से हम सब कुछ एक्सपेक्ट करते हैं, सोचते हैं वो सब कर देगी लेकिन कभी ये जानने की कोशिश नहीं करते कि वो हमसे क्या एक्सपेक्ट करती है।

सबसे ज्यादा हम अपनी ज़िंदगी में किसी को ‘टेकेन फॉर ग्रांटेड’ लेते हैं तो वो है मां जिसे असल में हमें सबसे ज्यादा अहमियत देनी चाहिए। सबसे पहले तो यूं, कि आप आज जो भी हो वो इसलिए क्योंकि इसी मां ने आपको अपनी कोख में 9 महीने रखकर जीवन देने का फ़ैसला किया। ना चाहती तो आप कभी यहां नहीं होते। दूसरा यूं कि आप जो भी बने हों वो सिर्फ़ इसलिए क्योंकि इसी मां ने आपके लिए कई बलिदान दिए होंगे जो आपको पता भी नहीं होंगे और तीसरा यूं कि आप किसी के लिए कुछ भी कर लो इस दुनिया में सब रिश्ते नफ़ा-नुकसान तौल लेते हैं लेकिन ये रिश्ता आपसे कुछ नहीं मांगेगा और आपको सब-कुछ दे देगा। इसलिए अपनी मां के साथ अपना रिश्ता पूरी ईमानदारी, इज्ज़त और प्यार से निभाइए।

किरदार चाहे मां का हो, पत्नी का हो, बेटी का हो या कोई भी एक औरत अपने से जुड़े हर रिश्ते को बड़ी ममता से निभाती है लेकिन वो ख़ुद कहीं खो जाती है।

https://www.youtube.com/watch?v=D567scaLR6s

औरत की अनदेखी ज़िंदगी पर रोशनी डालती ये फिल्म ‘घर की मुर्गी’ आपको ज़रूर देखनी चाहिए। सोनी लिव पर रिलीज़ हुई इस शॉर्ट फिल्म में मशहूर अदाकारा साक्षी तंवर ने मुख्य भूमिका निभाई नहीं, जी है।

शुरुआत के चार मिनट की फिल्म में एक गृहिणी की दिनचर्या दिखाई गई है। सुबह से लेकर रात तक कैसे एक औरत पूरा घर संभालती है और सबके आराम का ख्याल रखती है। वो नाश्ते में अपने बच्चों की फरमाइशें पूरी करती है, अपने सास-ससुर का भी ख्याल रखती है, एक छोटे से पार्लर में काम करके कुछ पैसे भी जोड़ती है, घर का राशन सब्ज़ी सब लाती है, कपड़े धोती है, खाना बनाती है, बच्चों को पढ़ाती है, सब करती है और रात को सबको खाना खिलाने के बाद ख़ुद आख़िर में खाती है। सब डिनर करके टीवी देखते हैं और सीमा टेबल पर अकेले बैठकर खाना खाती है। रात को खुद अपने माथे पर दर्द की दवाई लगाकर सो जाती है।

और फिर हम कहते हैं कि मम्मी आप सारा दिन बोलते क्यों रहते हो? क्योंकि उसका दर्द किसी को दिखाई नहीं देता। वो शिकायत नहीं करती और हम उसके प्रति अपने फ़र्ज़ से चूक जाते हैं। वो सब संभालती है तो हम सोचते हैं कि वो कभी बीमार नहीं हो सकती। वो बस गुस्से में बोलती है तो हमें लगता है कि मम्मी सारा दिन बोलती क्यों है?

चार मिनट की कहानी के बाद ये दिखाया गया है कि कैसे उम्रभर साथ निभाने वाला पति भी पत्नी को घर की मुर्गी ही समझता है। दोस्तों को कभी भी खाने पर बुला लेता है, पत्नी के पार्लर के काम की खिल्ली उड़ाता है। पति की इस बात से सीमा आहत होती है लेकिन फिर भी अकेले ही रो लेती है। इतने लोगों के परिवार में भी वो अपनी तकलीफ किसी से कह नहीं पाती। उसके लिए वो प्रेशर कुकर ही अच्छा है जो भर जाता है तो कम से कम सीटी मारकर चिल्ला तो सकता है।

पत्नी, मां और बहू का फ़र्ज़ निभाकर सीमा अब थक चुकी है। कोई उससे कभी ना पूछता है और ना ही शायद पूछेगा कि उसका क्या मन करता है इसलिए अब उसे अपने बारे में ख़ुद ही सोचना होगा। पति जिस पार्लर का मज़ाक उड़ाता था उसी से जमा किए पैसों से सीमा ये तय करती है कि वो एक महीने के लिए गोवा जाएगी। उसके जाने की बात से घर में सन्नाटा है क्योंकि अब सबके सामने कई सवाल है…..खाना कौन बनाएगा? कपड़े कौन धोएगा? घुटने कौन दबाएगा? सुबह की चाय कौन पिलाएगा? राशन कौन लाएगा? दवाइयां टाइम पर कौन देगा? होमवर्क कौन कराएगा? वगैरह-वगैरह। अचानक से महत्त्वहीन सीमा के जाने की बात से सबके मन में महत्त्वपूर्ण सवाल आ गए हैं।

सीमा एक महीने के लिए जा रही है तो घर में काम करने वाले की ज़रूरत है इसलिए संदीप सबके साथ बैठकर ये हिसाब लगाता है कि कितना खर्च आएगा। इतने सालों में जो एहसास कभी नहीं हुआ वो हिसाब लगाते वक्त होता है कि कैसे सीमा उसकी सैलरी का आधा काम करती है जिसके वो पैसे भी नहीं लेती और फिर भी उसका काम किसी को नहीं दिखता।

संदीप कमरे में बैठी सीमा के पास जाता है और माफ़ी मांगता है। उसे अपनी ग़लती महसूस हो जाती है कि सीमा ही वो धुरी है जो पूरे परिवार को संभालती है और ख़ुद चक्के की तरह पूरा दिन पिसकर इसे संवारती है। वो उसे जाने से रोकता नहीं क्योंकि अब वो जान गया है कि सीमा कैसे बिना छुट्टी के इतने सालों से काम कर रही है। पति की आंखों में आंसू हैं और जाते-जाते सीमा को भी घर की याद अभी से सताने लगी है।

सीमा रास्ते से ही वापस आ जाती है। उसे देखकर सभी फिर से ख़ुश हो जाते हैं। पूछने पर वो कहती है कि परिवार के बिना उसका मन कैसे लगता। सीमा जो सबको समझाना चाहती थी अब सब समझ चुके हैं। सीमा इस परिवार में अब सबसे अहम है।

इस फिल्म की दो पावरफुल औरतें क्या कहती हैं

इस फिल्म की डायरेक्टर हैं अश्विनी अय्यर तिवारी जिन्होंने निल बटे सन्नाटा और पंगा जैसी फिल्में बनाई हैं। ये कहानियां भी औरतों की उस ज़िंदगी से रूबरू कराती हैं जिसे हम और आप अनदेखा कर देते हैं। अश्विनी कहती है कि हर औरत की कहानी है। एक किस्सा बताते हुए वो कहती हैं  “एक बार एयरपोर्ट पर मुझे दो मिडल क्लास औरतें दिखीं जो घूमने के लिए जयपुर जा रही थीं लेकिन आपस में घर की बातें कर रही थी कि मुझे ये ये काम करना होता है। मेरा पति चाय तो बना लेता है। मैं अपने बच्चों का होमवर्क करा देती हैं। अक्सर आप जब भी दो औरतों को बातें करते सुनेंगे तो घर की बातें ज़रूर होती हैं। इसी छोटे-छोटे किस्सों के मुझे इस कहानी की प्रेरणा मिली”।

साक्षी तंवर कहती है ‘इस फिल्म को देखकर हर औरत कहेगी कि ये तो मेरी कहानी है। ये फिल्म बिना शोर मचाए अपनी बात कह देती है। ये फिल्म सच कहती है क्योंकि हर किसी ने कभी ना कभी अपने परिवार की मां, बहू, पत्नी को अनदेखा किया है। उन्हें उस काम का श्रेय नहीं मिलता जो वो सबके लिए करती है। औरत मशीन की तरह 24 घंटे काम करती है जिसे हम सभी को समझना ज़रूरी है”।

ये फिल्म सिर्फ देखिएगा मत इसे समझिएगा भी और समझने के बाद अपनी मां, पत्नी, बहू की ज़िम्मेदारी साझा करिएगा।

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