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इम्तियाज़ अली की वेब सीरीज़ ‘शी’ है सीक्रेट मिशन कर लगी एक महिला कांस्टेबल की कहानी

शी के किरदार को लिखने के लिए बड़ी खोजबीन करके एक महिला कांस्टेबल की ज़िंदगी को देखा परखा और दर्शाया गया, जो खुद अपने आप से डरती है।

शी के किरदार को लिखने के लिए बड़ी खोजबीन करके एक महिला कांस्टेबल की ज़िंदगी को देखा परखा और दर्शाया गया, जो खुद अपने आप से डरती है।

वायकॉम 18 स्टूडियोज़ की कंपनी टिपिंग प्वाइंट ने हाल ही में नेटफ्लिक्स पर कुछ वेब सीरिज़ बनायीं – जामताड़ा, ताजमहल 1989 और अब शीशी के सातों एपिशोड कल शुक्रवार को रिलीज़ हो गए हैं। सीरीज़ देखने के बाद समझ में आता कि सर्जक इम्तियाज़ अली ने निर्देशक आरिफ अली और अविनाश दास के साथ मिलकर अपने अब तक के मूड से हटकर कुछ करने का प्रयास किया है।

शी की कहानी है भूमिका परदेसी की, जो मुबंई पुलिस में सीनियर कांस्टेबल है। इसके किरदार को लिखने के लिए बड़ी खोजबीन करके एक महिला कांस्टेबल की ज़िंदगी को देखा परखा और दर्शाया गया, जो खुद अपने आप से डरती है।

उसमें नया बस यह है कि इम्तियाज़ अली उसके किरदार में देह का एक मनोविज्ञान डाल देते हैं, जिसका भान उसे अपने पति के साथ सुहागरात में नहीं होता है और वह उसको छोड़ देता है क्यूंकि उसको अपनी बीवी से कुछ नहीं मिलता। मिशन के दौरान सस्सा के चंगुल में फंस कर उसे अपने देह से उठने वाले तरंग का भान होता है, जिसको वह कभी होटल के वेटर तो कभी छोटी बहन के ब्रांयफ्रेड पर आज़माती है। वह झिझकती है, बिदकती है और अपनी उत्सुकता, बेचैनी, तनाव, भावुकता और आनन्द से पूरी सीरीज़ को बांधने की कोशिश करती है। पूरी सीरिज़ में कहीं भी शोर या अतिरेक या वाचालता नहीं है। आम ज़िंदगी के सुख दुःख के घुटन को पकड़ते हुए कहानी आगे बढ़ती है।

कहानी अपने अंत आते-आते बदलती भी है। माफिया नायक जब उसके नीचे होता है तो वह अपनी नई पहचान का बताती है और शीशे में देख खुद पर इतराती है। उसका किरदार यह अहसास कराता है कि उसके पास जो है, वह उससे बहुत कुछ कर सकती है। जब वह कुछ करने के स्थिति में आती है, तब सीरीज़ खत्म हो जाती है और अगले सीज़न की मांग दस्तक देने लगती है।

सीरिज़ में जान डालते हैं गली बॉय और सुपर थर्टी से मशहूर हुए विजय शर्मा। गिरगिट के तरह रंग बदलता उनका किरदार सस्या, अपनी गिरफ्तारी से हलाल होने तक दर्शक को भ्रम में डाले रहते है कि नायक वही तो नहीं है। सारे किरदार आम आदमी से लगते है और वास्तिविक चरित्र को उभारते हैं। कहानी आपराधिक जगत की होते हुए भी समान्य सी लगती है।

बहन के साथ नौकरी बची है या नहीं का दृश्य, ऑफ़िस में अफ़सर के इंतज़ार का दृश्य, भिखारी के साथ संवाद का दृश्य, मां को घर में छोड़कर मिशन पर जाने का दृश्य और भी कई दृश्य इंसानी स्वभाव के भाव याद दिलाते हैं। यह कह सकते हैं कि शी मूलत एक साथ कई ज़िंदगियों के बहाने एक औसत कामकाजी औरत की आम जिंदगी को देखने समझने के लहज़े की कहानी है। इसमें यौन व्यवहार को भी शामिल कर लिया गया है। मुझे नहीं याद आता है कि हिंदी सिनेमा में कभी ऐसी कहानी या बात कही गई है, जैसे ‘औरत को पुलिस में होना ठीक है क्या? मेरे को पगार मिलता है, मेरे लिए ठीक है।’

वेब सीरीज़ जहां खत्म होती है उम्मीद जगती है कि अगला सीज़न आएगा। तब शायद उस मुखौटे पर से पर्दा उठे, जिसे फिल्म का मुख्य कलाकार अपने साथ रखती है।

मूल चित्र : YouTube 

 

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