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ये हैं 5 बड़े पर्दे की अभिनेत्रियां जो न सिर्फ अपने काम में अच्छी हैं बल्कि ये अपने काम से समाज में बदलाव लाने में भी विश्वास रखती हैं।
पहले तो हमें ये समझना होगा कि समानता सिर्फ महिलाओं का मुद्दा नही हैं। किसी भी समाज या समुदाय को अगर पनपना है तो लैंगिक समानता बेहद ज़रूरी है। घर हो या काम हर जगह महिला को सिर्फ महिला ना समझकर उसके व्यक्तिगत विकास की ज़रूरत है। आज कोई क्षेत्र महिलाओं की मौजूदगी से अछूता नहीं है लेकिन मैं आज उस इंडस्ट्री की बात करना चाहती हूं जिसका हमारे समाज पर दूसरों के मुकाबले सबसे ज्यादा प्रभाव दिखाई देता है यानि फिल्म इंडस्ट्री।
साल 2020 का अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस #IWD2020 की थीम है #EachForEqual जिसका मकसद है महिला संघ की भावना, जिसमें महिलाएं, अपने विशेषाधिकारों से, अन्य महिलाओं की बराबर उठने में और एक बेहतर जीवन दिशा दिलाने में मदद करती हैं।
एक वक्त था जब फिल्मों में भी हमारे समाज की तरह महिला कलाकारों को पुरुष कलाकारों की अपेक्षा में कम आंका जाता था। महिला कलाकारों को ज्यादातर ग्लैमर और ख़ूबसूरती के लिए फिल्मों में लिया जाता था। लेकिन कहते हैं ना change is the only constant, ठीक वैसे ही वक्त बदला और महिला कलाकारों के रोल भी बदले। बढ़ती जागरूकता के साथ महिला कलाकारों ने भी इस बात को अनुभव किया कि वो सिर्फ फिल्म में हीरो की हीरोइन बनने के लिए नहीं हैं बल्कि वो चेहरा हैं जिनके विचार देश की आधी आबादी की आवाज़ बन सकते हैं।
बात आज की हो या कल की, हर वक्त में कुछ ऐसी अभिनेत्रियां हमेशा से रही हैं जिन्होंने समाज की रुढ़ियों को लांघकर ख़ुद को साबित किया है। सिर्फ अदाकारी तक ख़ुद को सीमित ना करके इन्होंने समाज में भी अपना योगदान दिया है। स्मिता पाटिल, मधु बाला, रेखा, वदीहा रहमान, नरगिस जैसी कई अभिनेत्रियां रहीं हैं जिन्होंने अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए उदाहरण रखा है। इसी फेहरिस्त को आगे बढ़ाते हुए आज की कुछ अभिनेत्रियों की बात करते हैं जो सिर्फ अपने काम में अच्छी नहीं हैं बल्कि अपने काम से समाज में बदलाव लाने में विश्वास रखती हैं।
मलयालम फिल्म इंडस्ट्री की ये एक्ट्रेस एक जानी मानी फेमनिस्ट भी हैं। केरल की रहने वाली पार्वती के माता-पिता वकील हैं और शायद ये एक बड़ी वजह है कि वो कभी कुछ ग़लत देखती हैं तो ज़रूर आवाज़ उठाती हैं। 2006 में अपना एक्टिंग करियर शुरू करने वाली पार्वती साउथ इंडियन फिल्मों में तो नाम कमा चुकी थीं लेकिन बॉलीवुड में उन्हें 2017 की फिल्म ‘करीब करीब सिंगल’ के बाद पहचान मिली। 2019 में रिलीज़ हुई उनकी बेदह कामयाब फिल्म उयारे और 2020 की वायरस ने उन्हें अलग ही पहचान दी।
पार्वती एक सफल अभिनेत्री होने के साथ-साथ मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं के संगठन ‘वूमन इन सिनेमा कलेक्टिव (WCC)’ की सदस्य भी हैं। इस संगठन के ज़रिए वो महिलाओं के अधिकारों की वकालत करती हैं। दक्षिण भारतीय फिल्म इंडस्ट्री जो बॉलीवुड से भी कहीं ज्यादा पितृसत्तात्मक हैं, जहां पुरुष कलाकारों के लिए लोगों का जूनून ख़तरनाक है, ऐसे में पार्वती बिना डर के महिला कलाकारों के साथ होने वाले व्यवहार पर खुलकर बात करने से कभी नहीं कतराई। हालांकि समय के साथ-साथ काफ़ी बदलाव आ रहे हैं लेकिन शायद ये पार्वती जैसी महिला कलाकारों की वजह से ही हो पा रहा है जो बिना डरे अपनी बात सामने रखने की हिम्मत रखती हैं।
सबरीमाला मंदिर विवाद पर उन्होंने कहा था, “लोग समझते हैं महिलाओं की पवित्रता वजाइना में होती है। इसे दूर करने की जरूरत है और इसके लिए मुझे नहीं पता कि कितने साल या पीढ़ी लग जाएंगे।” उन्होंने SC के फ़ैसले का समर्थन किया था और कहा था कि वो महिलाओं को अपवित्र माने जाने के सख्त ख़िलाफ़ हैं।
मीटू मूवमेंट के वक्त भी पार्वती ने बड़ी बेखौफ़ी ने अपने साथ बचपन में हुई यौन शोषण की एक घटना को सार्वजनिक किया था। मुंबई में होने वाले मामी फिल्म फेस्टिवल में उन्होंने बताया था कि वो सिर्फ़ 3-4 साल की थी जब उनके साथ ये घटना हुई थी। पार्वती ने कहा, “तब मुझे समझ भी नहीं थी कि मेरे साथ क्या हो रहा है, मुझे इस बात का एहसास होने में ही 17 साल लग हए। मैं इसे भूल जाना चाहती थी लेकिन जब देखा इतनी महिलाएं इस दर्द से गुज़र रही हैं और अब सामने आ रही हैं तो मुझे लगा कि इस पर बात करने से ही ये बातें खत्म होंगी। यौन शोषण सिर्फ शारीरिक नहीं बल्कि एक मानसिक दर्द भी होता है इसलिए इस पर खुलकर बात करनी बेहद ज़रूरी है। बात करने से आप ताकतवर महसूस करने लगेंगे।”
जून 2019 में रिलीज़ हुई फिल्म कबीर सिंह ने कई विवाद बटोरे। इसे एक मिसोजनिस्टिक फिल्म का टैग भी मिला जिसपर कई लोगों ने बात की और कई ने नहीं। लेकिन पार्वती ने एक इंटरव्यू के दौरान इस फिल्म पर अपनी आपत्ति ज़ाहिर की। पार्वती ने कहा ‘ इस तरह की फिल्में कहीं ना कहीं मर्दों की इन हरकतों को को ग्लोरिफाई करती हैं। मैं किसी को ये फिल्म बनाने से रोक नहीं सकती लेकिन उसका हिस्सा बनने से मना कर सकती हूं।”
इनके अलावा भी पार्वती कई मुद्दों पर बात करती रहती हैं। वो एक ज़िम्मेदार कलाकार के रूप में ढलती जा रही हैं जो अपने रोल्स भी ये सोचकर चुनती हैं कि इसका लोगों पर कैसा असर होगा। हमें उनके जैसी और महिला कलाकारों जो फिल्म इंडस्ट्री को महिलाओं के काम करने की और बेहतर जगह बनाएगा।
चिन्मयी श्रीपदा एक प्लेबैक सिंगर हैं और ज्यादातर साउथ इंडियन फिल्मों में ही गाती हैं। अपना बचपन उन्होंने मुंबई और चेन्नई में गुज़ारा। अपनी मां से चिन्मयी को संगीत की शुरुआती शिक्षा मिली और उन्होंने इसे ही फिर अपना करियर चुना। संगीत के क्षेत्र में चिन्मयी बहुत ख्याति पा चुकी हैं। उनकी मीठी आवाज़ और साफ़ लफ्ज़ में आपको उनका गाया हर गाना प्यारा लगेगा। इसके अलावा वो कई अभिनेत्रियों के लिए डबिंग भी कर चुकी हैं।
चिन्मयी एक बिज़नेसवूमन भी हैं उन्होंने अगस्त 2005 में ब्लू एलिफेंट नाम की एक ट्रांसलेशन सर्विसेज़ कंपनी भी स्थापित की थी जिसकी वो CEO हैं। उनकी ये कंपनी बहुत सारी MNCs के साथ काम करती है। अपनी कंपनी के शानदार काम के लिए उन्हें 2010 में सार्क चैंबर फॉर वूमेन एंटरप्रेन्योरशिप की तरफ़ से सम्मानित भी किया गया था। इसके अलावा वो तमिलनाडु की पहली महिला उद्यमी थीं जिन्हें फॉर्चून / यूएस स्टेट डिपार्टमेंट ग्लोबल महिला मेंटरिंग पार्टनरशिप प्रोग्राम के लिए चुना गया।
सिंगर, डबिंग आर्टिस्ट और बिज़नेसवूमन चिन्मयी एक सशक्त महिला हैं और इस बात को अच्छी तरह समझती हैं। वो महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों और उनके लिए काम करने से कभी पीछे नहीं हटतीं।
मी टू आंदोलन में चिन्मयी ने इंडियन म्यूज़िक इंडस्ट्री में महिलाओं के साथ होने वाले शोषण पर खुलकर बात की। ये उस समय की बात है जब देश में #metoo आंदोलन अपने चरम पर था। हज़ारों साहसी महिलाओं की तरह चिन्मयी ने भी अपने साथ हुए गलत व्यवहार की घटना को आवाज़ दी। उन्होंने दक्षिण भारतीय फिल्मों के जाने माने वाले लिरिसिस्ट वैरामुथु पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। इसके अलावा उन्होंने कई पीड़ित महिलाओं के नाम उजागर किए बिना इंडस्ट्री के कई और लोगों के कच्चे-चिट्ठे खोले थे। ओएस त्यागराजन, रघु दीक्षित, मंडोलिन यू राजेश, कार्तिक उन कुछ नामों में शामिल हैं। उनकी इस बहादुरी के लिए कई महिलाओं ने उन्हें सराहा था। चिन्मयी के इस ख़ुलासे के बाद आरोपियों के साथ कई लोगों ने काम करने से इनकार कर दिया था।
2019 के हैदराबाद रेप केस के बाद जब पूरा देश सहम गया था उस वक्त चिन्मयी श्रीपदा ने इस गंभीर मुद्दे पर सोशल मीडिया के ज़रिए आवाज़ उठाई थी। इंटरनेट पर कुछ पुरुषों ने रेप कल्चर को बढ़ावा देते हुए पोस्ट्स डाली थी जिनमें से एक ने लिखा था ‘rape is not serious but murder is inexcusable’ चिन्मयी ने इसका सख्त विरोध किया और कहा, “इन पुरुषों के कारण ही रेप हो रहे हैं। इनके लिए ज़बरदस्ती होने पर औरत को बस हामी भर देनी चाहिए क्योंकि रेप नहीं सिर्फ मर्डर ही गंभीर अपराध है।” इसके अलावा भी इस केस के बारे में वक्त-वक्त पर उन्होंने कई पोस्ट्स किए। उनके सोशल मीडिया अकाउंट्स पर आपको ढेरों ऐसे ट्वीट्स मिल जाएंगे जहां उन्होंने सच का साथ देते हुए अपनी बात रखी है।
CAA-NRC के मुद्दे पर भी अभी कुछ दिन पहले उन्होंने एक तस्वीर के साथ देश के मौजूदा हालातों पर सवाल उठाते हुए लिखा था “A woman’s character, a dalit’s merit and a muslim’s patriotism are always questioned in this country”, यानि इस देश में महिला के चरित्र, दलितों की योग्यता और मुस्लिमों के देशप्रेम पर हमेशा से सवाल खड़े किए जाते हैं।”
समसामयिक मुद्दों पर चिन्मयी एक जागरूक नागरिक की तरह अपनी बात बिना शोर मचाए रखती हैं और ये कोशिश करती हैं कि भले ही उस पर विवाद हो या बात लेकिन लोग ये समझें कि क्या गलत है और क्या सही।
जिसे कहते हैं वन ऑफ दि फाइनिस्ट एक्टर्स, उन्हीं में से एक विद्या बालन भी हैं। 41 साल की विद्या को हिंदी सिनेमा में महिला प्रधान फिल्मों की नेता कहा जाता है। उनके सशक्त किरदारों ने बड़े पर्दे पर महिला कलाकारों की इमेज काफी हद तक बदल दी।
विद्या को 6 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और छह फिल्मफेयर पुरस्कार के साथ ही साल 2014 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया था। विद्या एक तमिल परिवार में पली बढ़ी। उनके माता-पिता स्वतंत्र विचारों के लोग थे इसलिए एक्टिंग करियर में आने के फ़ैसले में उन्हें परिवार का ज्यादा विरोध नहीं झेलना पड़ा। 16 साल की उम्र में ही उन्हें टीवी सीरियल मिल गया और उसके बाद आज तक काम कर रही हैं। विद्या बहुत ख़ुश मिज़ाज और अच्छी इंसान हैं। उनका कोई भी इंटरव्यू देख लीजिए, उनकी बेबाकी और साफ दिल राय आपको ज़रूर प्रभावित करेगी।
विद्या ने जब अपने करियर की शुरुआत की थी तो उस समय भी उन्हें काफी रिजेक्शन मिले थे। कभी कम हाइट, कभी रंग, कभी बॉडी टाइप की वजह से उन्हें ना कर दी जाती थी लेकिन इन सब अड़चनों के बावजूद विद्या ने कभी अपने कदम पीछे नहीं हटाए। अपने साथ हुई इन चीज़ों के बारे में वो हमेशा से मुखर रही हैं। बॉडी शेमिंग पर उनका एक वीडियो बहुत ही पावरफुल है जिसे उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था। जिसमें औरतों को किस तरह रंग, शरीर और चेहरे को लेकर तरह-तरह के ताने सुनने को मिलते हैं दर्शाया गया है। इस वीडियो में काम करते वक्त वो ख़ुद भी बहुत इमोशनल हो गई थीं।
2016 में विद्या की एक फिल्म आई थी कहानी-2 जिसमें चाइल्ड अब्यूज़ यानि बाल शोषण पर सवाल उठाया गया था। इस फिल्म में काम करते वक्त जब विद्या ने महसूस किया ये मुद्दा कितना गंभीर है तो वो एक NGO के साथ जुड़ीं और इस बारे में कई प्रोग्राम भी किए। इस पर बात करते हुए विद्या कहती हैं, “हम सोचते हैं कि हमारा बच्चा परिवार में सबसे ज्यादा सुरक्षित है और वहीं पर कोई अपना उसके साथ ऐसा कर देता है, ये बात सबसे दुखद है। बाल यौन शोषण एक ऐसा विषय है, जिस पर लोग बात करने से कतराते हैं। बच्चों के साथ इस उम्र में ऐसी घटनाएं हो जाती है जब उन्हें ये मालूम भी नहीं होता। ऐसे में उन्हें समझना और एक्शन लेना और भी ज़रूरी हो जाता है क्योंकि ये सिर्फ आपके नहीं लाखों बच्चों की सुरक्षा का सवाल है। जब तक हम इस पर बात करना नॉर्मल नहीं समझेंगे तब तक हर कोई चुप रहने में भलाई समझेगा।”
विद्या बालन शहरी विकास मंत्रालय के स्वच्छ भारत अभियान से भी जुड़ी रहीं जहां उन्होंने टीवी और रेडियो विज्ञापन के माध्यम से ‘देश को खुले में शौच मुक्त’ करने पर जागरूकता फैलाई। अपने बिज़ी फिल्मी शेड्यूल से वक्त निकालकर विद्या ने इस अभियान को बढ़-चढ़कर सपोर्ट किया। विद्या बालन ने इस मुहिम से जुड़ने पर कहा था कि वो महिला के नाते खुले में शौच करने वाली महिलाओं के दर्द को समझ सकती हैं। इसलिए वो सिर्फ दिखावटी तौर पर नहीं बल्कि असल में इस अभियान से जुड़ी हैं।
नंदिता की जड़ें तो ओडिशा में हैं लेकिन वो पैदा मुंबई में हुईं और ज्यादातर दिल्ली में रहीं। उनके पिता आर्टिस्ट और मां लेखिका थीं। माता-पिता के गुणों का मिश्रण बनीं नंदिता। अपनी कलम और कला दोनों के ज़रिए नंदिता कई बार सामाजिक मुद्दों पर अपनी बात रखती रहती हैं। वो मानती हैं कि फिल्मों को लोगों तक सच पहुंचाने का काम ज़रूर करना चाहिए।
नंदिता को अपने काम के लिए सिर्फ देश ही नहीं विदेशों में भी कई अवॉर्ड्स और अकोलडेंसेस मिल चुके हैं। नंदिका एक सक्रिय सामाजित कार्यकर्ता भी हैं। नंदिता ने दिल्ली स्कूल ऑफ सोशल वर्क में मास्टर्स डिग्री भी हासिल की है। वो ऐसी भारतीय हैं जिन्हें वाशिंगटन डीसी में अंतर्राष्ट्रीय महिला मंच के इंटरनेशनल हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया था। दास ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा को खत्म करने, बच्चों के अधिकारों और एड्स जागरूकता जैसे कई अहम मुद्दों के लिए बहुत काम है।
जनवरी 2020 में जयपुर लिचरेचर फेस्टिवल में नंदिता दास ने CAA-NRC के मुद्दे पर बिल्कुल साफ-साफ कहा था कि जिस वक्त हमारी आर्थिक हालत इतनी ख़राब है उस वक्त में हमें अपनी पहचान साबित करनी पड़ रही है। उन्होंने इस विरोध को स्वाभाविक बताते हुए कहा था, “हमारे देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत खराब है, बच्चे मर रहे हैं, बेरोज़गारी बढ़ चुकी है लेकिन इन सब के बीच हमें अपनी पहचान साबित करनी पड़ रही है जो दुर्भाग्यपूर्ण है।”
कई महिला कलाकारों की ही तरह नंदिता दास को भी अपने सांवले रंग की वजह से कई बार उलाहने सुनने को मिले। उन्होंने इस मुद्दे की गहराई को समझते हुए 2013 में ‘डार्क इज ब्यूटीफुल कैंपेन’ के ज़रिए कई लोगों को इससे जोड़ा ताकि रंग से जुड़ी दोहरी मानसिकता के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई जा सके।
नंदिता कहती हैं, ‘मैं हैरान रह जाती हूं जब मुझसे कोई पूछता है कि इस रंग के साथ भी आप इतनी कॉन्फिडेंट कैसे दिखती हैं। ये हमारी गोरे रंग की तरफ़ जो पोसेसिवनेस्स है वह दिखती है। हम क्यों अपने रंग में कर्फटेबल महसूस नहीं करते। इस मानसिकता से निकलना बेहद ज़रूरी है। महिलाओं को भी चाहिए कि वो गोरा रंग पाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाली झूठे उत्पादों को छोड़ दें। त्वचा का रंग भौगोलिक परिस्थितियों के कारण होता है ये किसी को छोटा या बड़ा नहीं बनाता।” पिछले साल के अंत में अपने कैंपेन को आगे बढ़ाते हुए नंदिता ने कई कलाकारों के साथ एक वीडियो भी डायरेक्ट किया था जो बहुत सशक्त संदेश देता है।
नंदिता जैसे मंच पर अपनी बात बेखौफ़ रखती है वैसे ही निर्देशन में आने के बाद भी उन्होंने अपनी फिल्मों में इसे बरकरार रखा है। अपनी फिल्म मंटो के ज़रिए उन्होंने उर्दू साहित्य के मशहूर और विवादित लेखक सआदत हसन मंटो की कहानी को लोगों तक पहुंचाया।
मंटो वो थे जिनकी बेबाकी और हिला कर रख देने वाली सच्चाई की वजह से शासन में बैठे लोग डरते थे। उनके लेख इतने सजीव होते थे कि इंसान उन्हें शब्दों के ज़रिए भी महसूस कर सकता था। उनकी बेबाकी को नंदिता ने अपनी कलम में करीने से पिरोया और बड़े पर्दे पर पेश किया। मंटो के लिए उन्हें विवादों का भी सामना करना पड़े लेकिन उनकी तारीफ़ किए बिना कोई ना रह सका।
फेमनिज़्म के मुद्दे पर नंदिता कहती हैं कि वैसे तो वो इंसान बनने में विश्वास रखती हैं। लेकिन हमारे समाज में औऱतों को लेकर इतनी असमानता है कि मुझे लगता है जब तक बराबरी नहीं मिल जाती तब तक हर एक इंसान को फेमिनिस्ट होना चाहिए क्योंकि सामाजिक न्याय का हकदार हर इंसान है।
स्वरा भास्कर हिंदी फिल्मों की वो एक्ट्रेस में से हैं जो फिल्मों से ज्यादा अपनी बातों की वजह से ख़बरों में रहती हैं। देश-दुनिया के हर ज्वलंत मुद्दे पर वो अपनी बात रखती हैं। दिल्ली में पली-बढ़ी स्वरा ने यहीं पर अपनी पढ़ाई भी पूरी की। मां नेवल ऑफिसर थे और मां सिनेमा स्टडीज़ की प्रोफेसर। फिल्मों में आने से पहले स्वरा थिएटर से काफी समय तक जुड़ी रहीं और अभी भी जब भी वक्त मिलता है वो थिएटर ही करती हैं। यूनिवर्सिटी के दिनों में उन्होंने एक्टिव सोशल सर्विस में भी अपना कुछ वक्त दिया। किसी भी दूसरी एक्ट्रेस से ज्यादा ट्रोलिंग झेलने वाली स्वरा को अब इसकी आदत सी हो चुकी हैं क्योंकि उन्हें पता है कि सोशल मीडिया के इस ज़माने में आपकी बेबाकी पर हर बार सवाल उठाए जाएंगे।
राजनीतिक मुद्दों पर स्वरा बहुत ही खुलकर अपनी बात रखती हैं फिर चाहे वो सरकार के ख़िलाफ़ हो या साथ। अभी इस वक्त देश का सबसे बड़ा मुद्दा है NRC बिल। इसे लेकर हर तरफ़ प्रदर्शन हो रहे हैं। जब से ये शुरू हुआ था तभी से स्वरा सक्रिय होकर इसके बारे में अपनी बात किसी ना किसी तरह लोगों से साझ करती रहती हैं। उनका एक विवादित बयान था कि हम एक ऐसे देश में रह रहे हैं जहां एक तरफ़ SC बाबरी मस्जिद गिराने वालों को गलत ठहराता है औऱ दूसरी तरफ़ उसी फ़ैसले में उन्हें रिवॉर्ड भी देता है। उनकी बातों को कई लोगों ने भड़काऊ भी कहा और उन्हें गिरफ्तार करने की मांग की। उनके कई कमेंट्स की वजह से लोगों ने उन्हें बुरी तरह लताड़ा भी लेकिन फिर भी बिना घबराए स्वरा वहीं कहती हैं जो उन्हें सही लगता है।
स्वरा ने जब अपनी एक फिल्म में मास्टरबेशन का सीन किया तो उनके चाहने वालों ने भी उन पर सवाल करने शुरू कर दिए। लोगों ने क्या-क्या नहीं कहा उन्हें लेकिन स्वरा ने कहा, “हम एक ऐसे कल्चर में हैं जहां मेल सैक्शुलिएटी पर तो खुलकर बात होती है, फिल्मों में मज़ाक-मज़ाक में पुरुषों की सैक्शुएलिटी में कई बातें होती हैं हम सवाल नहीं करते लेकिन फीमेल सेक्शुएलिटी पर बात करते हुए हम या तो चुप हो जाते हैं या इग्नोर कर देते हैं। ऐसे में एक फिल्म में लड़की को इस तरह मास्टरबेशन करते दिखाना एम्पावरिंग था। इसे किसी भी तरह की वलगैरिटी से नहीं दिखाया गया। गंदगी समाज की सोच में है सीन में नहीं।”
फिल्म पद्मावत के वक्त भी उन्होंने निर्देशक संजय लाली भंसाली को ओपन लेटर लिखा था। उन्होंने खत की शुरुआत ‘At The End of Your Magnum Opus… I Felt Reduced to a Vagina– Only’ हेडिंग से करते हुए की है। उनका मानना था कि कि इस फिल्म के जरिए सती और जौहर प्रथा का महिमामंडन किया है और फिल्मों में औऱतों की छवि को इस तरह छोटा नहीं किया जाना चाहिए।
स्वरा को कई बार बॉडी शेमिंग का सामना करना पड़ा । ग्लैमरस इंडस्ट्री में आने के बाद उनके ड्रेसिंग पर भी कई बार सवाल उठाए गए जिससे वो हमेशा नाफिक्र रहीं। वो कहती हैं कि हम एक ऐसे समाज में है जहां लड़कियों को बचपन से ही कैसे कपड़े पहनने हैं, क्या छिपाना है ये सब बताया जाता है लेकिन हम ये बताना भूल जाते हैं कि कैसे अपने शरीर को लेकर शर्म महसूस करने की बजाए कैसे कॉन्फिडेंट होना चाहिए। औरतों को हर रूप और रंग में ख़ुद को सेलिब्रेट करना चाहिए। Body is beyond just an instrument, खुद के लिए लॉन्जरी खरीदना भी ऐसा होता है जैसे हम कोई अपराध कर रहे हैं। मैं चाहती हूं औरतें जब तक खुद के लिए खड़ी नहीं होंगी तब तक समाज भी अपनी सोच नहीं बदलेगा।”
इन अभिनेत्रियों के अलावा भी तापसी पन्नू, कंगना रानौत, करीना कपूर खान, चिन्मयी श्रीपदा, ऋचा चड्ढा जैसी कई कलाकार हैं जिन्होंने अभिनय के क्षेत्र में फीमेल एक्ट्रेस की परिभाषा को पूरी तरह से बदल दिया है और ज़िम्मेदारी के साथ अपनी फिल्मों को चुन रही हैं।
आप कहीं भी किसी भी क्षेत्र मे काम कर रही हैं उसमें ये कोशिश करें कि आप अपने साथ-साथ अपनी साथी महिलाओं और आने वाली पीढ़ी के लिए ये सुनिश्चित कर सकें कि उनका कल आपसे भी बेहतर होगा। महिलाओं की समानता अब और इंतजार नहीं कर सकती।
इस साल अपना #IWD2020 संदेश #EachforEqual के हैशटैग के साथ सोशल मीडिया पर ज़रूर पोस्ट करें और इस कामयाब कोशिश का हिस्सा बनकर महिलाओं की समानता की आवाज़ बनें।
मूल चित्र : Wikipedia/Facebook /Twitter
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