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बच्चों और पति के भविष्य सवांरने वाली किसी योग्य नहीं क्योंकि उसके डिग्रीयों को अनुभव का अभाव है और सरकार की मदद अनपढ़ महिलाओं के लिए है।
नितिन का फिर से तबादला हुआ और एक अरसे बाद मृदुला अपने शहर में लौटी, जहाँ हर मोड़ हर गली और हर सड़क उसे बीते दिनों की याद दिला रहे थे। शहर का वजूद बदल चुका था। नया चमकीला और निखरा-निखरा।
नये फ्लैट में शिफ्ट करने के बाद वह अपने महल को सँवारने में लग गयी। तभी मृदुला को अपनी डिग्रियों की सुनहरी फाइल कार्टन में दिखती है। एक दीर्घ निःस्वास के साथ वह बड़े प्यार से उसपर हाथ फेरती है, तो समझ आता है कि वक्त काफी आगे निकल चुका है और वो काफी पीछे छूट गयी है। फिर भी वो बड़े उत्साह के साथ ऑनलाइन स्कूलों में अर्ज़ी डालती है।
जब वह एप्लीकेशन पर नज़र डालती है तो उसे अपने पुराने कार्यकाल के अनुभव का कॉलम दिखता है। वह दूसरे ,तीसरे और न जाने कितनी वेबसाइट खोलती है पर सभी फॉर्म में अनुभव के ब्यौरे मांगते हैं। तब उसे ‘काम करने का अनुभव नहीं है’ का अहसास होता है। उसकी विभिन्न योग्यताओं को नज़रअंदाज कर समाज ने उसे गृहणी यानि ‘होम-मेकर’ के सुन्दर ख़िताब से नवाज़ा है।
पुरानी यादें ताजा हो गयीं, जहाँ उसने कुछ बड़ा बनने के सपने को देखा था। आज वह पुनः सोचने को मजबूर हुई जो कुछ उसके जीवन में अब तक घटित हुथा आ था। इतने सालों से नितिन के साथ (अरेंज्ड) विवाह करने के बाद वह उसके घर में पत्नी बनकर रहने लगी। बैंक में पी ओ होने की वजह नितिन की पहली पोस्टिंग ग्रामीण इलाके में हुई थी। और उसके खुद के सपने धरे रह गये।
परिवार वाले तो दोनों ही तरफ खुश थे। वह समय बिताने के लिए ग्रामीण बालिकाओं को पढ़ाने और शिक्षा के महत्व के बारे में समझाती थी। समय बिता और प्यारी सी बिटिया उसकी गोद में आ गयी और ज़िंदगी ने ढर्रा पकड़ लिया था। पत्नी और माँ की भूमिका में अब तक वो अपने को भूल गयी थी और सकुशलता हाउसवाइफ की भूमिका निभाती आ रही थी, जैसे किसी कंपनी में कार्यरत एचआर सारी जिम्मेदारियां को संभालता है।
आज अपने शहर में आकर उसे प्रतीत हुआ, उसका जीवन में अब कुछ करने के सपने को घुन लग चुकी है। वह अब एक पुरानी किताब में लगी दीमक लगी की तरह है जिसका कोई मूल्य नहीं होता। समाज ने उसकी गुणवंता मापने का पैमाना बदल दिया है। वो खुद भी अपनी पहचान से अनजान थी। वो कौन है? बेटी? पत्नी, माँ या महज़ हाउस-वाइफ? शायद कमज़ोर और अबला?
कसूर एक महिला का इतना ही होता है कि वह अपनी शिक्षा अपनी महत्वाकांक्षाओं के ऊपर परिवार और बच्चों को सर्वोपरि रखती है। तब एक मां एक पत्नी और एक गृह कार्य के बाद एक समय इस बात का एहसास कचोटता है कि वह इंद्रधनुष सी हिस्सों में बटीं है। यह अहसास हर महिला को होता है चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित। ये उसे ग्रामीण महिला के साथ वक्त बिताने पर पता चला था। वे निःशब्द आंतरिक दर्द संभालती, फिसलती वक्त के एहसास के साथ।
गृहस्थी की कश्ती का पतवार संभालने वाली बच्चों और पति के भविष्य सवांरने वाली किसी योग्य नहीं क्योंकि उसके डिग्रीयों को अनुभव का अभाव है और सरकार की मदद अनपढ़ महिलाओं के लिए ही है।
मूल चित्र : YouTube
I am a bilingual writer and blogger. My works have been part of several international and national anthologies. I write poetry and stories inspired by nature and the world around me. read more...
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