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लाखों में एक मेरी माडर्न बहु!

"कल से मेरा आफिस है, तो समय कम होगा। घर के काम में ज्यादा हाथ नहीं बटा सकती हूँ। इसिलिए एक खाना बनाने वाली को बुलाया है।" 

“कल से मेरा आफिस है, तो समय कम होगा। घर के काम में ज्यादा हाथ नहीं बटा सकती हूँ। इसिलिए एक खाना बनाने वाली को बुलाया है।” 

“अरे मालती! विनय ने कैसी लड़की पसंद की? सुंदर तो है पर बड़ी माडर्न है? देख ले ऐसी लड़कियां घर नहीं संभालतीं”, रागिनी ने अपनी भाभी मालती से कहा। 

“अच्छा दीदी देखी फोटो आपने? मैं भी फ्रेंड लिस्ट में हूँ उसकी। बड़ी प्यारी लग रही है फोटो में। माडर्न तो आजकल सब हैं दीदी। नौकरी करती है, आत्मविश्वास से भरी, आत्सम्मान के साथ।  अब आगे कोई हमारी तरह घर नहीं बैठेगी।” 

“नहीं मालती कपड़े देखे तुमने? हे भगवान इतने ऊँचे”, रागिनी दीदी मुँह बनाती बोली।

मालती हँसी बोली, “दीदी समय के साथ रहना चाहते हैं बच्चे। देश विदेश जाते हैं नौकरी के लिए तो पहनावा भी बदलता है। अब जमाना बदल रहा है दीदी। टोका टाकी करना, तो हम में और पूराने लोगों में क्या अंतर। हमें बच्चों की खुशी भी देखनी चाहिए। विनय और रिया दोनों समझते हैं परिवार की अहमियत। मैं मिली हूँ बहुत बार रिया से। आप चिंता नहीं करें।”

हँसी खुशी शादी हो गयी। रिया, मालती और परिवार के साथ घुल-मिल गयी थी। रिया मालती के पास आई। रागिनी और मालती बालकनी में बैठी थीं। रागिनी दीदी घर के पास के फ्लैट में रहती थी। दोनो नंद भाभी मिलकर शाम की चाय पीती थीं।

“मम्मी जी..”

“हाँ बोलो रिया।”

“वो मैं सोच रही थी कि कल से मेरा आफिस है, तो समय कम होगा। घर के काम में ज्यादा हाथ नहीं बटा सकती हूँ। इसिलिए एक खाना बनाने वाली को बुलाया है, आप देख लीजिये कैसा बनाती है।”

“अरे बेटा रिया मैं कर लूंगी। खाना बनाने में वक्त ही कितना लगता है?”

“नहीं मम्मी जी। मेरे मन को तसल्ली होगी जब मैं फाइलों में उलझी होऊँगी, और आप रसोई में नहीं होंगी। नहीं तो, ना आपका साथ दे पाऊँगी ना अपने आफिस का काम कर पाऊँगी।”

मालती मुस्कुराते हुए रागिनी को देखते बोली, “देखा दीदी, कितनी समझदार है रिया।”

रागिनी  विनय को देखते बोली, “विनय रिया के आने से मेरी आँखों में जो माडर्न बहु का गलत चश्मा था आज रिया ने बदल दिया।”

“तेरी पसंद लाखों में है, जो सास-परिवार के बारे में इतना सोचती है। जब से आई है देख रही हूँ। तेरे पापा को दवाई याद दिलाना, कब लेनी है, फोन बिजली के बिल, सब अपने आप करने लगी जमा ऑनलाइन। घर की जिम्मेदारी आफिस में रहते संभाल लेगी। और क्या चाहिए बच्चों से माता पिता को।  उनका वक्त आने पर सहारा बनें, प्यार करें उन्हें।”

“रिया ढेरों आर्शीवाद तुझे।”

“शुक्रिया बुआ जी, और क्या चाहिए बच्चों को? बस आर्शीवाद”, पैर छूते हुए रिया बोली। 

“वैसे भी मायके में भी मम्मी-पापा की चिंता रहती थी। यहाँ भी मम्मी-पापा हैं। दो मम्मी, दो पापा हो गये। हम चिंता नहीं करेगें तो कौन करेगा?”

मालती की आँखे खुशी से छलक आईं, “खुश रहो दोनों।”

“देखो दीदी, मेरी बहु माडर्न और संस्कारी दोनों है”, मालती रागिनी को देख कर मुस्कुराते हुए बोली।

“हाँ भई मालती मान गये। पढ़ाई और सोच बढ़िया हो, वही माडर्न। पहनावे से इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता। मान गये विनय की पसंद को।”

“विनय बोला चलो इस बात पर रिया तुम चाय बनाओ, मैं गरमा-गरम समोसे लाता हूँ।”

सब हँस कर एक साथ बोले, “ज़रूर! क्यूँ नहीं!”

मूल चित्र : Canva 

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