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नेटफ़्लिक्स पर आज रिलीज़ हुयी 'मस्का' लॉकडाउन के दौर परिवार के साथ देखने वाली कहानी है जिसमें अपनी परंपरा की तरफ नई पीढ़ी को संवेदनशील बनाने की कोशिश भी है।
नेटफ़्लिक्स पर आज रिलीज़ हुयी ‘मस्का’ लॉकडाउन के दौर परिवार के साथ देखने वाली कहानी है जिसमें अपनी परंपरा की तरफ नई पीढ़ी को संवेदनशील बनाने की कोशिश भी है।
लॉकडाउन के दौर में जब तमाम चैनलों पर देखी हुई फिल्मों को दुबारा देखने का ज़हर पीने का मन न हो, तब महानगरों, कस्बों और महल्लों के घरों में कैस लोगों के पास ओटीटी मनोरंजन प्लेटफार्म के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। तमाम बेव सीरिज जिस किसी भी प्लेटफार्म पर उपलब्ध हैं, अचानक वहां पर दर्शकों की संख्या में इजाफा हुआ है।
नेटफ्लिक्स पर आज ही रिलीज की गई फिल्म ‘मस्का’थोड़ी मुस्कान ला देती है। आज के युवा क्या करें और क्या न करे इसको लेकर अब तक अधिक गंभीर अभिभावक के रूप में पिता के सख्त भूमिका पर कई कहानियां सामने आ चुकी है। हाल के दिनों में मां के भी फ्रिकमंद अभिभावक के रूप में भी कुछ कहानियां कही जा चुकी है। 2 घंटे 45 मिनट की ‘मस्का’ लॉकडाउन के दौर परिवार के साथ देखने वाली वह कहानी है जो उस पुरानी मुबंई के कोलाबा की गलियों की याद ताजा करती है जिसको पहले के सिनेमा में अक्सर देखा करते थे।
‘मस्का’ की कहानी अब तक कही गई कहानियों से इसलिए थोड़ी अलग है क्योंकि इस कहानी में अपनी परंपरा की तरह नई पीढ़ी को संवेदनशील बनाने की कोशिश भी है। कहानी शुरू होती है रूमी(प्रीत कामनी) और उसकी मां डायना रुस्तम ईरानी(मनीषा कोइराला) के अपनी-अपनी महत्वकांक्षाओं से। रूमी अभिनेता बनना चाहता है पर अपने अभिनय से ही संघर्ष कर रहा है। डायना अपने पति रूस्तम(जावेद जाफरी) के उदाहरण के तरह बेटे का पालन करती है और रूमी पर दवाब है कि वह अपने पिता का ईरानी रेस्तरां का कारोबार संभाले। रुमी अपने महत्वकांक्षाओं को महसूस करने में असमर्थ अपने सपनों के करीब जाने के लिए गलत रास्ता अपनाता है। आडिशन के बीच के संघर्ष करते हुए और कैफे के बिल में उसकी मदद करने के लिए अपनी मां के साथ लड़ते हुए।
कहानी आगे बढ़ती है, महत्कांक्षी उत्तर भारतीय लड़की मल्लिका(निकित्ता दत्त) जो खुद भी अभिनेत्री बनने के लिए संघर्ष कर रही है और रूमी के अंदर बड़ा अभिनेता बनने की आग जलाए रखती है। वह न केवल रूमी के लिए प्रेरणा का काम करती है बल्कि उसका प्रभाव रूमी को मात भी देता है। इसके साथ-साथ रूमी की बचपन की दोस्त पर्सिस(शर्ली सेठिया) जो अपने आस-पास चल रही हर कहानी को अपने कैमरे और किताब में समेटना चाहती है। रूमी का मार्गदर्शन करती है, उसे उसकी गलतियों से अवगत कराती है। रूमी से प्यार भी करती है पर उसके गलतियों में उसका साथ नहीं देना चाहती है।
ईरानी कैफे क्या है, लोगों के लिए? कितने लोगों के जीवन के अनमोल पल वहां एक बन मस्का और ईरानी चाय से जुड़े हुए है। इन सब का एहसास रूमी को पर्सिस कराती है और यह एहसास केवल रूमी को ही नहीं होता है। दर्शक भी ये जान पाते है कि भारतीयों के जिंदगी में पारसी समाज बन-मस्का-ईरानी चाय के साथ कैसे घुल-मिल गए और मुबई के महानगरीय जीवन का हिस्सा बन गए। आज की पीढ़ी को शायद ही पारसी समुदाय के बारे में कुछ पता हो।
मूल चित्र : Netflix
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