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पीसीओडी की समस्या पर नियंत्रण रखने के लिए मैं क्या कदम उठा सकती हूँ? पीसीओडी में कौन से न्यूट्रिशन और सप्लेमेंट्स लेते हैं?
अनुवाद : मानवी वाहने
कई महिलाएँ पीसीओडी की समस्या से जूझती हैं, लेकिन या तो इसे नज़रअन्दाज़ कर दिया जाता है या फिर उनकी जाँच नहीं हुई होती है, जिसका नतीजा काफी बुरा होता है।
पीसीओएस/पीसीओडी पॉलीसिस्टिक ओवेरीयन सिंड्रोम/डिसॉर्डर है। लगभग हर 5 में से एक भारतीय महिला इस होर्मोनल कंडिशन के साथ जीती है जो मेटाबॉलिज़म और रूप को प्रभावित करती है। इस कंडिशन को मैनेज करना ज़रूरी है क्योंकि इसके कारण महिलाओं को मधुमेह होने की सम्भावना अधिक हो जाती है और दिल का दौरा पड़ने का रिस्क भी बढ़ जाता है।
पीसीओएस/पीसीओडी दुबली और अत्यधिक मोटापे से परेशान लड़कियों और महिलाओं, दोनों को प्रभावित करता है। हालाँकि, यह निश्चित तौर पर कोई नहीं जानता कि पीसीओडी की समस्या किस कारण से होती है, लेकिन हमें यह पता है कि इसके लक्षण क्या हो सकते हैं।
अपने पीसीओएस को मैनेज करना ही इकलौता तरीका है – इसका कोई इलाज नहीं। अच्छी खबर यह है कि आपकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कुछ बदलाव आपकी सेहत पर इसके असर को कम कर सकते हैं।
ये एक ऐसी कंडिशन है जो ज़्यादातर महिलाओं को प्रभावित करती है, उसके बारे में सामान्य से अधिक जानकारी प्राप्त करना अभी भी मुश्किल है। हमें इस सिंड्रोम में इंसुलिन की भूमिका को समझने की ज़रूरत है – यह स्टोरेज के लिए कार्बोहाइड्रेट्स को फैट में बदल देता है।
बढ़े हुए इंसुलिन स्तर के कारण ऐंड्रॉजेन्स अत्यधिक बढ़ जाते हैं, जिसके चलते चेहरे और शरीर पर बाल, मुहाँसे और पुरुषों की तरह पेट के आसपास वज़न बढ़ने आदि जैसी चीज़ें होती हैं। बढ़े हुए इंसुलिन स्तर का एक लक्षण अकन्थोसिस निगरिकन्स की मौजूदगी भी है : गर्दन, बाँह, ग्रोईन और स्तन के नीचे रंग परिवर्तन होना। दुबली महिलाओं को भी पीसीओएस हो सकता है।
अनजानी चीज़ को मैनेज करना मुश्किल होता है, इसीलिए कंडिशन के बारे में अच्छे से पढ़ना पहला बेहतर कदम हो सकता है। इस विषय पर रुजुता दिवेकर की किताब भारतीय महिलाओं के लिए अच्छी है।
डॉक्टर्स को वे मरीज़ अच्छे नहीं लगते जो जानकारी के लिए इंटर्नेट पर निर्भर रहते हों। यह आसानी से समझा जा सकता है कि नॉन–मेडिकल स्त्रोतों पर निर्भर रहना क्यों बुरा है। लेकिन, एक अच्छा डॉक्टर ढूँढना जिसके पास आपको इस कंडिशन को लेकर जागरूक करने और मैनेज करने में मदद करने का समय हो, क़िस्मत की बात है।
अपने इलाज को सफल बनाने के लिए, आपको एक ही डॉक्टर के पास जाना चाहिए। अपनी रिसर्च करें और अच्छे गायनकॉलिजस्ट के पास जाएँ। कई डॉक्टर पीसीओएस को एक अर्बन मिथ मानते हैं। अन्य डॉक्टर कंडिशन की जाँच कर सकते हैं लेकिन उसे सम्भालने को लेकर आपकी मदद नहीं कर पाएँगे।
यदि आपका डॉक्टर आपको बढ़ते हुए वज़न के लिए टोके जो कि पीसीओएस में होना सामान्य बात है, क्योंकि आपके हॉर्मोन्स आपके ख़िलाफ़ काम करते हैं, तो आपको दूसरा डॉक्टर ढूँढना चाहिए। सामान्य प्रक्रिया यह है कि आप रक्त जाँच और स्कैंस कराएँ और अपने इंसुलिन स्तर को मैनेज करने के लिए दवाइयों के साथ शुरुआत करें।
इनोसीटोल जैसे सप्लेमेंट्स देखें जो महिलाओं के लिए वज़न कम करने में सहायक साबित हो रहे हैं। सुनिश्चित करें कि आपके विटामिन डी के स्तर की जाँच हो क्योंकि कई भारतीय महिलाएँ इसकी कमी से जूझ रही होती हैं।
स्टडी के मुताबिक, पीसीओएस के साथ हर 2 में से 1 महिला को विटामिन डी की कमी भी होती है। दूसरा सामान्य सप्लेमेंट जो मदद कर सकता है, वह है ओमेगा 3, ईपीए और डीएचए दोनों के साथ।
पीसीओएस/पीसीओडी ऐसी कंडिशन है जिसे स्वीकार कर हमें उसके साथ जीने की ज़रूरत है। इसके लिए हमें अपने निजी स्वास्थ्य के प्रति प्रतिबद्ध होने की ज़रूरत है ताकि इसके प्रभाव को कम किया जा सके। हमें खुद को मानसिक तौर पर तैयार करने की ज़रूरत है कि हम खुद को प्राथमिकता दें। पीसीओएस को मैनेज करने के लिए रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कुछ बदलाव करने की ज़रूरत होती है। बिना मानसिक तैयारी के, इन बदलावों को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बना पाना बहुत मुश्किल हो सकता है। आपको अपने परिवार के सदस्यों को जागरूक करने की ज़रूरत भी पड़ सकती है ताकि वे इन बदलावों को लम्बे समय तक बनाए रखने में आपकी मदद कर सकें।
ज़िंदगी में हुए किसी भी बदलाव को एक बार में मैनेज करना काफी मुश्किल होता है। इसीलिए हमें धीरे-धीरे इसपर काम करने की ज़रूरत होती है। इसके लिए आपको उन लोगों से सहयोग की ज़रूरत होगी जो आपसे पास हैं, साथ ही वे लोग भी जो आपकी तरह ही इस समस्या से जूझ रहे हैं। ऑनलाइन सपोर्ट ग्रुप्स और फोरम जानकारी के साथ ही प्रेरणा के लिए भी उपयोगी साबित होते हैं। ऐसे कई अंतर्राष्ट्रिय सपोर्ट ग्रुप्स हैं : जैसे पीसीओएस डाइट सपोर्ट और सोल सिस्टर्स।
यह ज़रूर याद रखें कि ये प्रोफेशनल जगहे नहीं हैं जहाँ मेडिकल जानकारी उपलब्ध हो। कोई भी जानकारी मेडिकल गाइडेन्स के साथ ही लें, तो जहाँ यह जगहें जानकारी के लिए अच्छी साबित हो सकती हैं, वहीं उसका उपयोग करने के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से सम्पर्क करें।
5 % तक भी यदि वज़न कम किया जा सके, तो यह आपके लिए पीसीओएस को बेहतर तरीके से मैनेज करने में मददगार साबित हो सकता है।
पीसीओएस डाइयट्स के लिए क्या सही है :
हफ्ते में 6 दिन, 45 मिनट्स का व्यायाम करना सही माना जाता है। व्यायाम में ऐरोबिक और वेट ट्रेनिंग कम्पोनेंट्स, दोनों होने चाहिए। चूँकि व्यायाम को हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बनाना ज़रूरी है, तो किसी के साथ व्यायाम करें और व्यायाम करने के ऐसे तरीके ढूँढे जिनमें आपको आनंद आए।
डॉक्टर के पास समय-समय पर जाती रहें ताकि आप अपने स्वास्थ्य और वज़न के परिवर्तन ट्रैक कर सकें।पीसीओएस/पीसीओडी से जूझ रही महिला के लिए सबसे ज़रूरी है एक सकारात्मक दृष्टिकोण। हाँ, एक ऐसे डिसॉर्डर को मैनेज करना मुश्किल है जिसके कारण वज़न अत्यधिक बढ़ता या घटता हो। हाँ, वज़न घटाना और गर्भवती होना मुश्किल हो सकता है।
यह सब कुछ सामान्य लोगों ने किया है, यदि वे कर सकते हैं तो आप भी कर सकती हैं! गुड लक!
मूल चित्र : Still from the short film, Love After Death, Pocket Films, YouTube
Sangitha Krishnamurthi is a special educator, blogger and mother of three. Her interests include living a mindful and organic life as much as possible in addition to reading and writing about the reading. read more...
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