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रवीश कुमार की तुलना ट्रॉल्स ने महिलाओं से की, क्या औरत होना मज़ाक की बात है?

रवीश कुमार के द्वारा, उनकी महिलाओं से तुलना किए जाने पर, दिए गए करारे जवाब से हमें यह सीख मिलती है कि महिलाएँ मज़ाक का नहीं बल्कि सम्मान का पात्र हैं।

रवीश कुमार के द्वारा, उनकी महिलाओं से तुलना किए जाने पर, दिए गए करारे जवाब से हमें यह सीख मिलती है कि महिलाएँ मज़ाक का नहीं बल्कि सम्मान का पात्र हैं।

मैग्ससे अवार्ड से सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार आए दिन सोशल मीडिया पर ट्रॉल्स का निशाना बनते रहते हैं। ट्रॉल्स कभी उनके बारें में फ़र्ज़ी बातें प्रचलित करते हैं तो कभी फोटोशॉप के ज़रिये उनका मज़ाक उड़ाने की कोशिश करते हैं। हाल ही में उनका मज़ाक उड़ाने की मंशा से ट्रॉल्स रवीश कुमार की कुछ फोटोशॉप फोटोज़ वायरल कर दीं। इस फोटो में रवीश की फोटो को एडिट कर के उन्हें किसी महिला जैसा दिखाया गया है। अब यहाँ समझने की बात यह है कि ट्रॉल्स जो भी करते हैं वो किसी का मजाक उड़ाने या फिर नीचा दिखाने के उद्देश्य से होता है। रवीश कुमार को औरत की तरह फोटोशॉप करके भी ट्रॉल्स यही करना चाहते थे। क्यूंकि आज भी हमारे समाज का एक बड़ा तपका यही मानता है कि मर्द सर्वोपरि हैं और औरत होना एक शर्मनाक तथा लज्जा की बात है।

रवीश कुमार का क्या कहना है

इन फोटोज़ को सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए रवीश कुमार ने कहा, ‘आई टी सेल स्त्री से इतनी नफ़रत करता है कि मेरे चेहरे में भी उसे कोई स्त्री नज़र आती है। उसकी कल्पना में स्त्री होना पाप है। मुझे लेकर एक पूरी इंडस्ट्री चल रही है। अगर आई टी सेल को पुरुष की हिंसा, दंभ और क्रूरता में राष्ट्रवादी होना नज़र आता है तो यह औरतों को भी देखना है कि राष्ट्रवाद के इस अंधड़ में उनके लिए कितनी जगह है। औरतें समझ रही हैं कि ट्रोल बिरादरी दरअसल औरत के वजूद के ही ख़िलाफ़ है। यह तस्वीर देखने वालों के दिमाग़ में मेरे बहाने एक औरत के प्रति घिन को भी उभारती है।’

https://www.facebook.com/618840728314078/posts/1387608938103916?sfns=mo

सिर्फ इतना ही नहीं रवीश कुमार ने खुद को स्त्री के रूप में दिखाए जाने को से लेते हुए कहा, ‘मुझे इस तस्वीर से कोई समस्या नहीं है। यह तो सम्मान की बात है। चरित्र प्रमाण पत्र है कि मैं हिंसक नहीं हूँ। मैं स्त्री हूँ। मुझमें नफ़रत की संभावना नहीं है। आई टी सेल के पुरुष दिमाग़ की तरह न होना गौरव की बात है। आई टी सेल वाले लड़के इस तस्वीर में अपनी माँ, बहन, भाभी, पत्नी और महबूबा देख सकते हैं। ये उनकी ही माँओं का चेहरा है। बहनों का चेहरा है। जब वे अपनी माँओं को इस तरह के श्रृंगार में देखते होंगे तो ऐसा ही सोचते होंगे। उन्होंने मेरी नहीं अपनी सोच की तस्वीर बनाई है। आई टी सेल को पता है लड़कियाँ उनका खेल समझ गई हैं। मेरा मानना है कि सभी पुरुष में थोड़ी स्त्री होनी चाहिए। पूरी हो तो और भी अच्छा। हिंसा के ख़िलाफ़ होना भी स्त्री होना है। सभी महिलाओं को आज का शानदार दिन मुबारक। आप मुझे महिला दिवस पर मुबारक दे सकते हैं। मैं सुंदर लग रही हूँ।’ रवीश कुमार की ये तस्वीर महिला दिवस के दिन ही वायरल हो रही थी और ये पोस्ट कर के रवीश कुमार ने तो साबित कर दिया हैं की वह महिलाओं की बहुत इज़्ज़त करते हैं।

दूसरे लोगों का सपोर्ट

इस पूरे किस्से में ख़ुशी और गर्व की बात यह है कि सिर्फ रवीश कुमार का ही यह मानना नहीं था कि औरत होना एक सम्मान की बात है और ‘सभी पुरुष में थोड़ी स्त्री होनी चाहिए।’ बल्कि उनके द्वारा लिखे गए भावपूर्ण पोस्ट पर कई लोगों ने उनका समर्थन करते हुए महिलाओं को समान से देखने के ऊपर कमेंट किया।

एक यूजर ने लिखा, ‘मैं तो कहती अगर स्त्रीत्व का अंश हर शय में आ जाए तो दुनिया ख़ूबसूरत हो जाएगी, आप इसे गाली नहीं तारीफ़ ही समझें, ये आवारा हिंसक लोग क्या समझेंगे स्त्री होना क्या होता है।’

दूसरे ने लिखा, ‘पुरुष का स्वाभाविक गुण हिंसा है और स्त्री का प्रेम। इसलिए जब व्यक्ति में स्त्री के इस प्रमुख गुण की अधिकता होने लगती है तो वह देवत्व की ओर बढ़ने लगता है। देवत्व अर्थात प्रेम, सहयोग, समर्पण, स्वीकार्य भाव। इसलिए समाज का लाभ स्त्रियोचित गुण की प्रमुखता होने में ही है। आपको बधाई सर कि अपको सच में प्रमाण मिला कि आप हिंसक नहीं हैं और ख़ास बात यह कि ये प्रमाण पत्र आपको हिंसक लोगों ने ही दिया है।हिंसक कभी महिला समर्थक हो ही नहीं सकता, क्योंकि महिला समर्थक होना प्रेम का समर्थक होना है

इस से ये बात तो साबित होती है की जहाँ लोग औरतो को कमतर समझते हैं वहीं ऐसे लोग भी है जो औरतों और मर्दो को समाज का समान हिस्सा मानते हैं।

आखिर औरतों को मज़ाक उड़ाने के लिए इस्तेमाल करना कब बंद होगा!

अक्सर मर्दो को बोला जाता है ‘औरतों जैसी हरकतें मत करो’। रोने पर बोला जाता है, ‘लड़की हो, जो रो रहे हो?’, अगर वो थोड़े कमज़ोर होते हैं तो बोला जाता है, ‘हट लड़की कहीं का’ और तो और मर्दो को ‘लड़की की तरह क्या गॉसिप कर रहा हैं’, ‘दिमाग लगा के बात कर लड़कियों की तरह क्या बकवास कर रहा है’, ‘लड़कियों की तरह क्या बात का बतंगड़ बना रहा है’ ये सब बोला जाता है। मानो औरत होना कोई बुरी बात हो, शर्मनाक हो और मजाक की बात हो।

हमें यह समझना बहुत ज़रुरी है कि मर्द और औरत दोनों ही समाज का महवत्पूर्ण हिस्सा हैं। और औरत होना कोई शर्म बात नहीं है, बल्कि गर्व करने वाली बात है। तो अगली बार से अगर कोई आपकी तुलना औरत से करके आपका मजाक उड़ाने की कोशिश करे, तो बुरा न मानें, बल्कि गर्व महसूस करें क्यूंकि आपकी तुलना उस से की जा रही है जो एक देवी है, गृहणी है, एंटरप्रेन्योर है, हर वर्ग और श्रेड़ी में उत्तम है तथा सफल है और वही है जो जन्म भी देती है। औरत के बगैर ये दुनिया अधूरी है और इसीलिए औरत होना एक गर्व की बात है।

मूल चित्र : फेसबुक

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Nishtha Pandey

I read, I write, I dream and search for the silver lining in my life. Being a student of mass communication with literature and political science I love writing about things that bother me. Follow read more...

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