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'एक थप्पड़ से क्या हो जाता है, प्यार में तो ऐसी नोक-झोंक चलती ही रहती है', क्या सच में? आज मैं भी कहूँगी, 'जस्ट ए स्लैप, मगर नहीं मार सकता।'
‘एक थप्पड़ से क्या हो जाता है, प्यार में तो ऐसी नोक-झोंक चलती ही रहती है’, क्या सच में? आज मैं भी कहूँगी, ‘जस्ट ए स्लैप, मगर नहीं मार सकता।’
फिल्म थप्पड़ का ट्रेलर देखते वक्त उस मूवी की कुछ लाइने दिल को छू गयीं क्योंकि बात केवल एक थप्पड़ की नहीं थी बल्कि हर उस चीज़ से जुड़ी थी, जिससे हर एक महिला गुज़रती है।
NCRB द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार इन आंकड़ों में दोहरी वृद्धी दर्ज़ की गई है, जिसमें उत्तर प्रदेश को महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित बताया गया है। इसके साथ ही मध्य प्रदेश में सबस ज्यादा रेप केस दर्ज़ हुए हैं।
आंकड़ों के अनुसार कुल 50,74,634 मामले संज्ञेय के रुप में दर्ज़ हुए हैं, जिसमें पुलिस बिना ज्यादा छान-बिन के अरेस्ट कर सकती है। इसके साथ ही भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत 31,32,954 और विशेष और स्थानीय कानूनों (SLL) के तहत 19,41,680 – 2018 में केस पंजीकृत किए गए थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 से मामलों के पंजीकरण में 1.3 प्रतिशत वृद्धि हुई है जब 50,07,044 मामले दर्ज़ किए गए थे। हालांकि प्रति लाख जनसंख्या पर अपराध दर 2017 में 388.6 से घटकर 2018 में 383.5 हो गई है। 2018 में देश भर में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के 3,78,277 मामले सामने आए।
अगर मैं आंकड़ों की बात करुंगी तो लेख में केवल आपको आंकड़े ही दिखेंगे क्योंकि नंबर्स के फेर में पड़ने पर आपके होश उड़ जायेंगे। आज ऐसे कई केस भी हैं, जो सुर्खियों में या आंकड़ों में नहीं आते क्योंकि वे थप्पड़ के शोर में दाब दिए जाते हैं।
मैं आपको एक लड़की की कहानी बता रही हूं, जो आज एक ढाबा चलाती है। मैं शाम के वक्त ऐसे ही इवनिंग वॉक पर निकली थी। अमूमन मैं चाय नहीं पीती मगर ठंड के कारण मुझे भी तलब जगी तो मैं उस ढाबे के पास आकर ठहर गई। एक 25 वर्षीय लड़की चाय-नाश्ते का इंतज़ाम कर रही थी। मैंने सोचा उससे कुछ बात करुं। बात-बात में पता चला कि वह तलाक शुदा है।
उसने बताया कि उसका पति उस पर हाथ उठाया करता था। जिसे वह इग्नोर किया करती थी मगर धीरे-धीरे परिस्थिति बद्तर होती चली गई। घर में एक बच्चा था, जिसकी पढ़ाई रुक गई। परिवार वाले सभी खिलाफ हो गए क्योंकि उस परिस्थिति में लोगों ने मुझे ही दोषी मान लिया था। उसके बाद मुझसे बर्दाशत नहीं हुआ और मैंने तलाक लेने का मन बना लिया। खर्चे बहुत हुए मगर मैंने ठान लिया था कि ऐसे इंसान के साथ नहीं रहना है, जो अपनी पत्नी को मारने की वस्तु समझता है।
चूंकि मैं एक लड़की थी, शायद इसलिए उसने मुझे इतनी बातें बताई। यह बात पुरानी है मगर उस लड़की की हिम्मत काबिल-ए-तारीफ है, जिसने अपने हक के लिए आवाज़ उठायी।
भारत में सबसे कम तलाक की दर है क्योंकि यहां महिलाएं डिवोर्सी नहीं कहलाना चाहती। परिवार वाले पहले ही आंखें तरेरकर खड़े हो जाते हैं कि डिवोर्सी का टैग लग जाएगा। भारत में 1,36,0000 लोग तलाक शुदा हैं। यह विवाहित आबादी के 0.24% और कुल आबादी का 0.11% के बराबर है। लोग क्या कहेंगे के कारण आज भी ना जाने कितनी महिलाएं अपने शरीर पर पड़े जख्मों को छुपाती हैं। जब शादी करना एक प्रोसेस है, उसी तरह साथ नहीं रहने का मन होने पर तलाक भी एक प्रोसेस है फिर तलाक को इतनी अज़ीब नज़र से क्यों देखा जाता है?
हमारे पुरुष प्रधान समाज में कहा जाता है कि महिलाओं को सहन करने की आदत होनी चाहिए। इसके साथ अगर पति गुस्से में ऊंची आवाज़ में बात करें या हाथ ही उठा दे तो उसे अपने पति का फ्रस्टेशन मानना चाहिए क्योंकि उसका पत्नी पर निकलना जरुरी होता है। मैं पूछती हूं कि क्या पत्नियां अपने पतियों के फ्रस्टेशन को निकालने के लिए होती है?
अगर एक बार हाथ उठ गया तो वही हाथ दोबारा भी उठ सकता है फिर धीरे-धीरे यह रुटिन में भी शामिल हो सकता है। मेरे ही आसपास ऐसे कई केस हैं, जहां पति अपनी पत्नी पर हाथ उठाता है और महिलाएं एडजस्ट करने के नाम पर सहती रहती हैं।
क्यों करना एडजस्ट, ऐसे इंसान के साथ। जब पति हाथ नहीं उठा सकता है फिर मार कैसे सकता है? इस तरह की फिल्मों का बनना और आधी आबादी तक पहुंचना बेहद जरुरी है क्योंकि इससे ही महिलाएं जागरुक होंगी।
अंत में, फ़िल्म से ली गयी बात कहूँगी, “अगर कोई चीज़ जोड़ कर रखी हुई है, इसका मतलब वह टूटी हुई है।”
मूल चित्र : YouTube/Pexels
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