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उम्मीद है कि यह कविता उन औरतों का दर्द बयां कर पाए जो एक घर की, एक रिश्ते की चार दिवारी में कैद हैं, और नयी उम्मीद का सृजन कर, उनको सालों की चुप्पी तोड़ने को प्रेरित कर दे।
जाने कितनी ख़ामोशी हैउन बंद दरवाज़ों के पीछेपर फिर भी हँसी गूंजती हैएक दर्द की आहट की
जाने कितने जख्म गहरे हैंउन बंद दरवाज़ों के पीछेपर फिर भी सिर्फ शरीर तपता हैदिल के जलने से
जाने कितनी दीवारें गीली हैं किसी के आंसुओं सेपर फिर भी दरवाज़ा खुलता हैउसकी एक मुस्कान से
जाने कितनी चीखें दफ़न हैंउस बिस्तर की सिलवटों परपर फिर भी रोज़ नयी चादरउस बिस्तर पर बिछती है
जाने कितनी खून की होलीजाने कितने गम के दीएपर फिर भी हर व्रत होता हैउस सुहाग की रक्षा के लिए
जाने कितने ताने सुनेजाने कितने मज़ाक सहेपर फिर भी जज़्बातों कीउम्मीद उमड़ती है उसके लिए
जाने कितने रिश्ते हुए दफ़नजाने कितने दोस्त हुए परायेपर फिर भी एक वो ही भाता रहा उसके मन को
जाने कितनी हार मानीजाने कितनी जीत छोड़ी पर फिर भी वो होता रहा हावीउसके विश्वास की होड़ पर
जाने कब उसका दर्द जीता जाने कब वो वीरान हुई पर फिर भी वो हँसता रहा फिर कोई और सेज आबाद हुई
न दर्द से न जज़्बात सेन पड़ता है फर्क उसको औलाद सेवो जो दरिंदे होते हैंवो औरत के सीने पे अकड़ते हैं
न तू कर सहन न तू कर बर्दाश्त अब तोड़ दे इस चुप्पी कोकर खुद को आबाद अब
‘तू सहती है क्यूंकि तू कमजोर है’‘तू रोती है क्यूंकि तू औरत है’तोड़ दे उसके इन झूठे ख्यालों कोदे जवाब उसके दिए अपमानों को
तू नारी है तूने प्रेम देने की ठानी हैइसलिए सहा था उसको इसलिए अपना समझा उसकोइसलिए इतना दर्द सहा
इसलिए चुप्पी को चुनाइसलिए शरीर को तोड़ाइसलिए मन को मोड़ाइसलिए वो पति परमेश्वर था
कमज़ोर है वो यह तुझको पता खिन्न है वो यह भी तू जानती हैबस एक सहारा था तू उसका यह बात अब तुझे उसको बतानी है
नहीं थी रहती तू उसके रहमों कर्म पर वो था हर बात पर तुझपे निर्भरबता दे उसको कि बोल देती अगर तू पहले ही दिनशायद मौत हो जाती उसकी उसी दिन
बोल, अब और नहीं बस अब और नहीं नहीं मैं अबलानहीं मैं हालात की मारीनहीं मैं दासी नहीं मैं हारी
हार न जानदर्द को मानबस हिम्मत कर खुद को पहचान
तू है एक सशक्त नारीजो बस अब इसके जुल्मों से हारीदेती है आज चेतावनी तुझे है हिम्मत तो बाँध मुझे
औरत है तू तो पाप नहीं हैदर्द पे तेरा राज नहीं हैखोल अब बंद दरवाज़ों को बोल दे दिल की बातों को
मूल चित्र : Canva
Myself Pooja aka Nirali. 'Nirali' who is inclusion of all good(s) n bad(s). Not a writer, just trying to be outspoken. While playing the roles of a daughter, a wife, a mother, a read more...
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