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ये बिल केवल एक कोरा काला कागज़ है। ये ट्रांस लोगों की जिंदगी को बदलने के लिए नहीं बल्कि उसे अधिक पीड़ादायक बनाने के लिए लाया गया है।
जीवन चक्र अपूर्वानुमेय है। हम कब, कहाँ तथा किस लिंग में जन्म लेंगे, इस पर किसी का अधिकार नहीं है। किन्तु, शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य तथा सबसे आवश्यक आत्म अभिज्ञान जैसी मूलभूत अधिकारों के हकदार सभी मनुष्य हैं। यह बात और है कि वास्तविकता में ऐसा नहीं होता। एक वर्ग ऐसा भी हैं जिन्हें उनके लिंग के कारण प्रताड़ित किया जाता है। आज भारत के तीन मिलियन ट्रांसजेंडर, हिंसा और यौन उत्पीड़न के शिकार हो रहे हैं।
सरकार ने भले ही 2014 में ट्रांसजेंडर को तीसरे लिंग की मान्यता दे दी हो, किन्तु आज भी उन्हें समाज में आम लोगों की तरह इज्जत की निगाहों से देखा नहीं जाता। इतना सब बहुत नहीं था कि सरकार ने ट्ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक – 2019 लोकसभा में पास कर दिया।
जब 2016 में इस बिल का प्रथम प्रारूप लाया गया, तब इसकी खामियों के कारण इसका विरोध हुआ था। इसलिए जब 2019 में पुनः इस बिल को सदन में रखा गया, तब सरकार से उम्मीदें बढ़ गई थी। हालांकि, इस नए बिल ने भी निराश ही किया। इस बिल के विरोध के पीछे के कारणों को समझने हेतु, बिल की मुख्य बिंदुओं की जानकारी आवश्यक है।
ट्रैन्ज़्जेन्डर व्यक्ति वो है, जिसका जेंडर उसके जन्म के समय निर्धारित हुए जेंडर से मैच नहीं करता। इनमें ट्रांस-मेन, ट्रांस-विमन, इंटरसेक्स या जेंडर-क्वियर और हिजड़ा और किन्नर से संबंध रखने वाले लोग भी शामिल हैं।
हालांकि, खुद को ट्रांसजेंडर की पहचान दिलाने के लिए, ट्रांस-पर्सन को सर्टिफिकेट बनवाना होगा। इसके लिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के पास अप्लाई करना होगा। उन्हें एक रिवाइज्ड सर्टिफिकेट भी मिल सकता है। ये केवल तभी होगा, जब वह व्यक्ति जेंडर कन्फर्म करने के लिए सर्जरी करवाता है। उसके बाद ही सर्टिफिकेट में संशोधन होगा। किंतु,
जिस बिल को तथाकथित रूप में ट्रांसजेन्डर के अधिकारों की रक्षा के लिए लाया गया था, उसका मसौदा तैयार करने से लेकर, उसे संसद में पास कराने तक में किसी ट्रांसजेन्डर को सम्मिलित ही नहीं किया गया।
इस समुदाय के किसी वर्ग से उनकी समस्याओं को जानने का प्रयास ही नहीं किया गया। फलतः, सभी उपनियम प्रचलित धारणाओं पर आधारित कर बना लिए गए।
ट्रांसजेन्डर के साथ घटित अपराधों की एक लंबी सूची तैयार की गई है। उन्हें जबरदस्ती बंधुआ नहीं बनाया जा सकता, सार्वजनिक स्थानों का इस्तेमाल करने से रोका नहीं जा सकता, गाँव अथवा घर से निकाला नहीं जा सकता तथा किसी भी प्रकार की शारीरिक अथवा मानसिक प्रताड़ना पर दंड का प्रावधान रखा गया है। किन्तु,
यह बिल ट्रांस लोगों की हत्या करने हेतु जारी किया गया मृत्यु का दस्तावेज है। सरकार को इनके के लिए कानून और स्वावलंबन की एक सीढ़ी तैयार करनी थी, किंतु इस बिल ने तो उनके अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। ये बिल केवल एक कोरा काला कागज़ है। ये ट्रांस लोगों की जिंदगी को बदलने के लिए नहीं बल्कि उसे अधिक पीड़ादायक बनाने के लिए लाया गया है।
इन्होंने अपनी मांगों की एक सूची भी सरकार को प्रदान की थी, जिसे विचारणीय भी नहीं समझा गया। जिस प्रकार से इस बिल को दोनों सदनों में पास किया गया, वह निराशाजनक है। ट्रांसजेन्डर के अधिकारों लिए काम करने वाली संस्थाओं के अतिरिक्त किसी ने भी इस विभेदकारी बिल के खिलाफ़ आवाज नहीं उठाई।
भारत की इस अल्पसंख्यक आबादी के साथ सरकार ने बिल के रूप में जो निंदनीय मजाक किया है, उसके बारे में तो लगभग सभी अंजान ही है। एक बिल द्वारा उनका सेल्फ-आइडेंटिफिकेशन राइट को छीन लिया गया। जरा सोचिएगा, यदि स्वयं के परिचय के लिए आपको किसी मजिस्ट्रेट के पास जाना होगा, तो वह आत्मा पर कितना विकट आघात होगा! स्त्री अथवा पुरुष होने से विलग एक मनुष्य होना, क्यों पर्याप्त नहीं है?
मूल चित्र : YouTube
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