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क्या आप समझ पाए हैं अब तक, हर उस बच्चे की तकलीफ़ जिनके मां या पिता ऐसे किसी सेवा में हैं और अपने घर जा पाने में असमर्थ हैं?
आठ साल का रोहन सुबह से ही टेरिस पे बैठा आने-जाने वाले लोगों को देख रहा था।
“रोहन अब अंदर आ जाओ बेटा, कब तक ऐसे बैठे रहोगे? चलो खाना खा लो”, ऋषभ( रोहन के पापा ) ने आवाज़ लगाई। रोहन अच्छे बच्चे की तरह अंदर आ गया।
“क्या बात है? कोई बहस नहीं, कोई हंगामा नहीं। आज मेरे शैतान बच्चे को क्या हो गया?” पापा ने पुचकारा। शैतान रोहन के अचानक शांत हो जाने से ऋषभ थोड़ा परेशान हो गए थे।
“पापा! अगर लोग ऐसे ही अपने घरों से बाहर निकलते रहे तो ये बीमारी और फैलेगी ना?” मासूम से रोहन के पास आज ढेरों सवाल थे अपने पापा के लिए।
“हां मेरे बच्चे! लेकिन क्या बात है आज ये सवाल क्यूं पूछ रहा है मेरा बच्चा?” ऋषभ समझ नहीं पा रहे थे कि आज अचानक शैतान रोहन इतनी समझदारी भरी बातें क्यों कर रहा है।
“आज तीन दिन हो गए, मम्मी अभी तक घर नहीं लौटी है पापा। मुझे मम्मी कि बहुत याद आ रही है पापा।”
“हम्म्म! तो ये बात है, अभी मम्मी को वीडियो कॉल लगाते हैं।” ऋषभ ने प्यार से रोहन के बालों में उंगलियां फिराते हुए कहा।
“नहीं पापा मुझे मम्मी यहां चाहिए घर पर। मैं मम्मी की गोद में सोना चाहता हूं, उनके हाथों से खाना खाना चाहता हूं। प्लीज पापा।” रोहन कुछ समझने को तैयार नहीं था।
“बेटा आपको पता है ना इस टाइम इमरजेंसी है हॉस्पिटल में। आपकी मम्मी ही नहीं, कई सारे डॉक्टर्स, नर्सेज, वार्ड ब्वॉयाज और लगभग सभी हॉस्पिटल्स के सभी कर्मचारी एक-एक मरीज की सेवा में लगे हैं। आपकी मम्मी चाह कर भी वापस नहीं आ सकती। आप ये नहीं समझोगे तो कौन समझेगा।” ऋषभ की आंखें भर आईं थीं।
पिछले तीन दिनों में रोहन तीन हजार बार अपनी मां के बारे में पूछ चुका था। रोहन की मां एक डॉक्टर हैं। वैसे तो उनकी सुबह की शिफ्ट होती है और रोहन के स्कूल से घर आने तक वह आम तौर पर घर आ जाती थीं लेकिन पिछले कुछ दिनों से उन्हें घर आने में बहुत देर हो जा रही थी और पिछले तीन दिनों से तो वह हॉस्पिटल में ही थीं।
रोहन काफी परेशान हो गया था पिछले तीन दिनों में उसने मां से सिर्फ वीडियो कॉल पे ही बात की थीं वह भी सिर्फ कुछ वक्त के लिए। वह मासूम सा बच्चा अपनी मां से मिलने के लिए बेचैन हो गया था। इधर ऋषभ ने माया (रोहन की मां) को फोन लगा दिया था स्पीकर पर अपनी मां कि आवाज़ सुनकर रोहन के तो आंसू ही निकल पड़े, “अब लौट आओ मां, मैं प्रॉमिस करता हूं मैं कभी तुम्हे परेशान नहीं करूंगा। जब तुम वापस आओगी ना तो देखना मैंने सब कुछ अच्छी तरह रखा है और मैं तो पापा की मदद भी करता हूं, है ना पापा!” रोहन ने उम्मीद भरी नज़रों से पापा को देखा।
“हां! माया रोहन ने मुझे बिल्कुल परेशान नहीं किया इन दिनों, ये तो बहुत अच्छा बच्चा बन गया है”, ऋषभ ने मुस्कुराते हुए रोहन की बातों का समर्थन किया।
माया की आंख भी भर आई थी। अपनी आवाज़ को लड़खड़ाने से बचाते हुए माया ने कहा, “मेरा बच्चा! आप मेरे बहादुर बच्चे हो, मुझे पता है, आपको ऐसे ही बहादुर बन कर रहना है! बच्चे, यहां बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिन्हें मेरी जरूरत है, आपसे भी ज्यादा”, अंतिम तीन शब्दों पर जोर देते हुए माया ने कहा। “आप मेरी बात समझ रहे हो ना बच्चा? प्लीज बेटा मुझे आपका साथ चाहिए, तभी मैं इन सबकी मदद कर पाऊंगी। आप दोगे ना मेरा साथ?”
रोहन ने शांत लहजे में जवाब दिया, “हां! मां आप अपना काम करो, मैं आपका साथ दूंगा।” छोटा सा बच्चा शायद अपनी मां की कही बातों का अर्थ समझ गया था।
पर क्या आप समझ पाए हैं अब तक, हर उस बच्चे की तकलीफ़ जिनके मां या पिता ऐसे किसी सेवा में हैं और अपने घर जा पाने में असमर्थ हैं? कृपया घर से बाहर ना निकलें और ना किसी को निकलने दें। ऐसे सभी कर्मचारियों और उनके परिवार वालों सहयोग करें।
मूल चित्र : Canva/shutterstock
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