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आज वर्ल्ड टीबी डे है और हम बात करने जा रहे हैं उन महिलाओं के बारे में, जो इस बीमारी से पीड़ित हैं और उन्हें किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
आज 24 मार्च, आज का दिन विश्व क्षय रोग दिवस, यानी TB दिवस के रूप में जाना जाता है। यह बीमारी एक घातक बीमारी है जो छुआछूत से फैलती है। वर्ष 1882 24, मार्च के दिन ही बर्लिन विश्वविद्यालय के के डॉ रोबर्ट कोच ने स्वछता संस्थान में वैज्ञानिकों की एक छोटी सी बैठक की और सबके सामने घोषणा की के उन्होंने तपेदिक(टीबी) बीमारी के कारण की खोज कर ली।
उस समय यूरोप और अमेरिका में हर सात लोगों में से एक टीबी का मरीज था और उसकी मृत्यु निश्चित थी क्योंकि इसका कोई इलाज नहीं था। मगर कोच की खोज ने तपेदिक के निदान और इलाज की ओर रास्ता खोल दिया। यह पूरे विश्व के लिए एक बहुत बड़ा योगदान था।
प्रत्येक विश्व टीबी दिवस एक अलग विषय को संबोधित करता है। हर वर्ष इसकी अलग अलग थीम्स होती हैं और लोगों को जागरूक किया जाता है। आईये जानते हैं ऐसे कुछ पहलुओं को कि क्या वजह है टी.बी को फैलने की और उसकी रोकथाम कैसे की जा सकती है-
अगर हम बात करें वर्ष 2018 की तो पूरे विश्व में कुल मिलाकर 1.5 मिलियन लगभग 15 लाख लोग टीबी के कारण मृत्यु लोक में समाहित हुए। जिसमें 251000 हज़ार HIV से पीड़ित थे।
वर्ष 2018 में, अनुमानित 10 मिलियन लोग दुनिया भर में तपेदिक (टीबी) से बीमार पड़ गए। जिसमें, 5.7 मिलियन पुरुष, 3.2 मिलियन महिलाएं और 1.1 मिलियन बच्चे थे।
वर्ष 2018 में, 30 मुख्य टीबी वाले देशों में टीबी के नए मामलों का 87% हिस्सा था। इस लिस्ट में भारत भी आगे रहा। अग्रणी देशों में भारत,चीन, इंडोनेशिया, फिलीपींस, पाकिस्तान, नाइजीरिया, बांग्लादेश और दक्षिण अफ्रीका के साथ कुल दो तिहाई हिस्सा है।
विश्व स्तर पर, टीबी की घटना प्रति वर्ष लगभग 2% घट रही है। अंत टीबी रणनीति के 2020 के मील के पत्थर तक पहुंचने के लिए इसे 4-5% वार्षिक गिरावट में तेजी लाने की आवश्यकता है। वर्ष 2000 से 2018 के बीच अनुमानित निदान और उपचार के माध्यम से 58 मिलियन लोगों की जान बचाई गई। 2030 तक टीबी की महामारी को समाप्त करना सतत विकास लक्ष्यों के स्वास्थ्य लक्ष्य के बीच है।
टीबी (क्षयरोग) के लक्षण :
विश्व भर में महिलाओं की मृत्यु का एक कारण टीबी भी है, जो संक्रामक है। यह बीमारी महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत संवेदनशील है। घरेलू हिंसा, गरीबी, HIV की बीमारी के कारण महिलाओं पर इस बीमारी से बोझ और बढ़ता जा रहा है। प्रसूति के समय यह ख़तरा और बढ़ जाता है।
पुरुषों की तुलना में अगर किसी महिला को टीबी की बीमारी हो जाती है तो उसके साथ ऐसा बर्ताव किया जाता है जैसे वह कोई भेड़ बकरियों की तरह हो। वैसे ही समाज में महिलाओं को अछूत और कमतर माना जाता है और अगर उसको कोई संक्रामक बीमारी हो जाए तो पूछिये मत, ऐसी दयनीय दुर्दशा की जाती है जिससे दिल सिहर उठता है। टीबी महिलाओं के लिए एक प्रमुख मुद्दा रहा है।
कई बार देखा गया है कि महिलाएं अपने रिश्ते बचाने के लिए इस बीमारी का ज़िक्र तक नही करती और न कोई सलाह लेती, जिस वजह से उनके ऊपर इन संक्रमित बीमारी का बोझ और बढ़ जाता है। इस बीमारी के रहते आज भी स्त्रियों को छोड़ दिया जाता है, उनका सही तरीके से इलाज नहीं कराया जाता।
महिलाओं को इस बीमारी से निकालने के लिए लोगों को जागरूक होने की ज़रूरत है। आवश्यकता है परिवार वाले जागरूक हों और महिलाओं को सपोर्ट करें। इस बीमारी का इलाज संभव है और लोग इस से डरने की बजाए इसके लिए सावधानियां बरतें। अगर पुरुष सही इलाज से ठीक हो सकते हैं तो महिलाओं का भी इलाज पर उतना ही हक़ है। इस बीमारी में ज़रुरत है समय रहते सही इलाज की और पूरे आराम की जो हर महिला को मिलना मुश्किल है। आज भी बात करें तो परिवार की देखभाल का ज़्यादातर ज़िम्मा औरतों का ही है, ऐसे में अगर औरत की देखभाल कौन करता है?
अगर हम बात करें पूरे विश्व की तो हम देख सकते हैं हर सेकंड में एक व्यक्ति क्षयरोग के शिकंजे में फँस रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व की कुल आबादी में से एक तिहाई जनंसख्या क्षयरोग के संक्रमण की चपेट में है। HIV एड्स के बाद सबसे बड़ी जानलेवा बीमारी क्षयरोग ही है।इससे जागरूकता और बचाव ही एकमात्र साधन है जो इस रोग को पूरी तरह से खत्म कर सकता है।
संदर्भ: आंकड़े- https://www.who.int/news-room/fact-sheets/detail/tuberculosis
मूल चित्र : Canva
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