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लहरों की पुकार:कुछ कहती हुई,और चट्टानों से लड़ती हुई। बेबाक सी लहरें।

सच्ची लहरें कितनी कठोर होती हैं,और अचल।  पहाड़ों और किनारों से टकराती हैं और अपना आत्मविश्वाश बिलकुल भी डगमगाने नहीं देती। इनसे हमको सीख लेनीलेनी चाहिए।

सच्ची लहरें कितनी कठोर होती हैं,और अचल। पहाड़ों और किनारों से टकराती हैं और अपना आत्मविश्वाश बिलकुल भी डगमगाने नहीं देती। इनसे हमको सीख लेनी चाहिए। 

लहरों की पुकार सुन , 

इसके एक इशारे पर ,

खींची चली आती हूँ आज भी इसकी ओर ,

बैठ कभी घड़ी दो घड़ी लहरों की गिनती में , 

खो जाती हूँ यादों के मेले में ,

दूर तक कश्तियों को निहारते हुए ,

पता ही नहीं चलता कब वक्त निकल जाए , 

रिश्ता बड़ा पुराना इससे ,

मानो साँसों का जुड़ा हो कोई बँधन इससे ,

ठंडी शीतल हवा के झोंके, 

मन को सुकून सा दे जाते ,

जब लहरों के छींटे भीगोते दामन मेरा , 

एक नई ऊर्जा का अनुभव दे जाते! 

जिंदगी एक सुहाना सफ़र है।  

कानो में धीमे से कह जाते। 

देख सागर की लहरों को , 

हर बार उठता मन में एक विचार , 

वक्त गुजर जाए ,

पहर बदल जाए ,

यह ना रुकती ना थमती है ,

कुछ इस क़दर खास है मंज़िल को पाने की प्यास ,

कभी ना छोड़ती किनारों से मिलने की आस ,

मौजों की रवानी तो देखो !

शाम ढले रफ्तार बढ़े।  

छूने को आकाश में बैठा चाँद।  

लहरों से सीखो जीने का सलीका , 

राहों में आए मुश्किलों से ना डरना ,

करना सामना डटकर तूफानों का ,

कुछ ना कहना ,

बस अपनी ही मौज में बहना ,

छींटे तो उड़ेंगे ही ,

पर नए किनारों से मिलने पर कैसा यह डरना ,

जिंदगी के बदलते हुए रुख़ को है यह बतलाती  ,

जीवन के उतार-चढ़ाव को है यह दिखलाती  ,

वक्त बदलता पड़ाव है ,

पर बदलते वक्त के संग भी ,

रहती यह अपनी धुन में मगन है ,

आज भी जब दिल घबराए !

बैठ जाती हूँ जाकर इसकी पहलू में।  

खुद को खोकर पा लेती हूँ थोड़ा सा सुकून यहाँ।  

आज़ फिर सागर की लहरों पर हो सवार ,

चली है एक क़श्ती उस पार ,

मौजों संग झूमती ,

हर लहर को चुमती ,

कर मन में यह दृढ़ निश्चय ,

होकर के निर्भय !

उसकी पतवार की हर धार बोले।  

छोड़ जाऊंगी सागर की गहराइयों में अपना परिचय। 

मूल चित्र : Pexels 

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Rashmi Jain

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