कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

अपनी बेटी को एक अनचाहा रिश्ता निभाने पर मजबूर ना करें …

लाखों लड़किया सिर्फ इसलिए ही ना चाहते हुये भी अपनी शादी निभाती हैं और जुल्म सहती रहती हैं क्योंकि मायके से उन्हें आपका सहारा नहीं मिलता।

लाखों लड़किया सिर्फ इसलिए ही ना चाहते हुये भी अपनी शादी निभाती हैं और जुल्म सहती रहती हैं क्योंकि मायके से उन्हें आपका सहारा नहीं मिलता।

बडे़ ही अरमानों से गुड़िया की तरह सजाकर दुल्हन बनाकर विदा किया था सरोज ने अपनी बेटी शालू को।  अच्छा परिवार सभ्य और सुशील लड़का जानकर ब्याह दिया था शालू को शेखर के साथ। सरोज के भाई ने रिश्ता करवाया था।

ज्यादातर घरों में लड़के के अवगुणों को छुपा लिया जाता है

देखने में जितने सीधे लग रहे थे, शादी के बाद उतने ही तेज, मतलबी और दुष्ट निकले शालू के घरवाले। जैसे हमारे देश में ज्यादातर घरों में लड़के के अवगुणों को छुपा लिया जाता है, उसी तरह शेखर के अवगुणों पर पर्दा डालकर बहुत ही सभ्य और समझदार लड़का बनाकर पेश किया गया। लेकिन शादी के कुछ ही महीनों में सब साफ हो गया।

घर वालों को सच बताया

दहेज के लालची और मतलबी लोगों के बीच फंसी शालू, सास-ननद के ताने तो सह लेती, लेकिन शेखर शराब पीकर जो नाटक करता, गाली-गलौच और विरोध करने पर मारपीट पर उतर आता, उसे ज्यादा दिन तक सह नहीं पाई शालू और अपनी मां को उसने सब कुछ सच-सच बता दिया।

सरोज ने जब बेटी की आंखों में छिपे आँसुओं के समुन्दर को देखा, उसके दिल में छिपे अपार दुःख को देखा, तो टूटने की बजाय, उन्होंने अपने आप को और भी ज्यादा मजबूत बनाया और ले आईं अपनी बेटी को इस नर्क से निकालकर, जहां नौकरानी से बढ़कर कुछ नहीं थी उनकी फूल सी बच्ची।

बेटी को घर ले आयी माँ

हंसती-खेलती चुलबुली शालू की रंगीन दुनिया को कैसे बेरंग कर दिया था उसके ससुराल वालों ने मिलकर, इसे भली-भाँति समझ रही थी सरोज। अगर पति साथ देता और अच्छा व्यक्ति होता तो छोड़ आती उसे वहां लेकिन पति तो और भी ज्यादा दुष्ट निकला। ना उन लोगों के रिश्ते में प्यार था ना एक दूसरे के प्रति निष्ठा, बस शालू ही निभा रही थी। वो भी दिल से नहीं, मजबूरी में।

बेटी घर लाने के फैसले पर सबने विरोध किया

शालू को हमेशा के लिए घर लाने के फैसले पर सरोज की बडी़ बहु ने विरोध किया और कहा, “मांजी आप शालू को हमेशा के लिए घर ले आई हैं। अभी सालभर हुआ है उसकी शादी को। थोड़ा समय तो दीजिए, हो सकता है वो लोग बदल जाएँ। इस तरह घर ले आना तो कोई सोल्यूशन नहीं है ना। क्या इज्जत रह जायेगी समाज में हमारी? लोग तरह तरह की बातें बनायेगें और क्या करेगी ये अपने जीवन में? जानती हो ना एक तलाकशुदा लड़की का समाज में जीना कितना दुश्वार होता है? आप इतनी समझदार होकर भी इतना गलत फैसला कैसे ले सकती हैं? मुझे लगता है हमें शेखर और उसके परिवार से बात करनी चाहिए।”

लोग क्या सोचेंगे?

जेठानी की बात सुनकर छोटी बहु ने भी यही कहा, ” मम्मी जी मुझे भी यही लगता है, हमें अभी इस बारे में और सोचना चाहिए। एक साल के रिश्ते में तलाक? लोग क्या सोचेगें।”

दोनों बहुओं की बातें सुनकर सरोज ने कहा, “समाज क्या कहता है, क्या सोचता है, ये तुम लोग ही सोचो। मुझे केवल मेरी बेटी के बारे में सोचना है। वो लोग सुधर जायेगें महज इस उम्मीद में मैं अपनी हंसती-मुस्कराती  गुड़िया को वहां छोड़ दूं, मुरझाने के लिए? हरगिज नहीं। उन दुष्टों के साथ एक दिन भी नहीं रहेगी शालू। मेरी बेटी बोझ नहीं है, जिम्मेदारी है, मेेरे जिगर का टुकड़ा है और उतनी ही ज़रूरी है, जितना तुम सब।”

एक बेटी के साथ उसकी मां खड़़ी हैं

“और सुनो, मेरी बेटी की जिम्मेदारी के लिए तुम लोगोंं को परेशान होने की जरूरत नहीं है। उसके पापा की पेंशन मिलती है मुझे। और वह खुद नौकरी करेगी पूरे आत्मसम्मान के साथ अपना जीवन जियेगी और मरते दम तक उसकी मां उसके साथ खड़ी रहेगी। तुम लोगों को साथ देना है दो, नहीं देना है मत दो। और रही बात तलाकशुदा बेेेेटी केे समाज में जीने की, तो सुन लो मेरी बात, अगर एक बेटी के साथ उसकी मां खड़़ी हो उसका परिवार हो तो कोई परेशानी नहीं होती उसे।”

अपनी मां के आत्मविश्वास भरे शब्दों को सुन सरोज के दोनों बेटों ने कहा, “मां हम आपके साथ हैं। हमारी शालू कहीं नहीं जायेगी। जैसे पहले यहां रहती थी, वैसे ही रहेगी और भविष्य में वह जो करना चाहेगी, हम उसके साथ हैं, लेकिन उस दुष्ट के साथ हम उसे नहीं रहने देगें। आप ठीक कह रही हैं, शालू नौकरी कर लेगी और आगे पढ़ना चाहेगी तो हम पढा़ लेगें, लेकिन इस तरह घुटने के लिए नहीं छोडे़गे।”

शादी के बाद भी बेटी को खुश रहने का अधिकार है

सरोज ने गोद में सिर रख कर लेटी शालू के सिर पर हाथ फेरा और अपने आप से वायदा किया कि अब कभी नहीं रोयेगी उनकी बेटी। उसे खुश होने का अधिकार है और उसे सारी खुशियां मिलेगीं। अपने परिवार के एक गलत फैसले की वजह से सारी उम्र कष्ट नहीं भोगेगी वो। पूरे आत्मसम्मान के साथ अपना जीवन निर्वाह करेगी।

मां-बाप के लिए बेटी बोझ नहीं होती

दोस्तों, सरोज जी की हिम्मत और जज्बे ने शालू को उस नर्कभरी जिंदगी से बाहर निकालकर समाज के सामने एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया और ये दिखा दिया कि मां-बाप के लिए बेटी बोझ नहीं होती, एक जिम्मेदारी होती है, जिगर का टुकड़ा होती है जिसे उन्हें उम्र भर अपनाना चाहिए। न कि ये सोचकर पीछा छुड़ा लेना चाहिए कि हमने तो शादी कर दी और मुक्त हो गये जिम्मेदारी से।

क्यों शादी के बाद लड़कियों को मायके से सहारा नहीं मिलता?

लाखों लड़किया सिर्फ इसलिए ही ना चाहते हुये भी अपनी शादी निभाती हैं और जुल्म सहती रहती हैं क्योंकि मायके से उन्हें सहारा नहीं मिलता। समाज और परिवार की इज्जत की ख़ातिर अपना जीवन खुद बरबाद कर लेती हैं और कभी गलत का विरोध करने की हिम्मत नहीं कर पातीं।

हम मांओ को, खासकर बेटियों की माँओं को अपने आप से ये प्रण करना चाहिए कि हर हाल में हम अपनी बेटियों के साथ रहेगें, शादी के बाद भी और अनचाहा रिश्ता निभाने के लिए उन्हें कभी मजबूर नहीं करेगें। और, उन्हें ये यकीन दिलायेगें कि वे हम पर बोझ नहीं हैं, हमारी ही जिम्मेदारी हैं और हम उसको उम्र भर निभाने को तैयार रहेंगे।

मूल चित्र : Canva

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

13 Posts | 239,858 Views
All Categories