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बेटियाँ बोझ नहीं होतीं, फिर भी हमारा समाज उनको एक अभिशाप मानता है…ऐसा क्यों?

समझ लीजिये अच्छे से कि बेटियाँ बोझ नहीं, पर समाज आज भी असमानता की सीढ़ीओं पर विराजमान है, वह पितृसत्ता की सोच में बंधा हुआ क़ैदी है।  

समझ लीजिये अच्छे से कि बेटियाँ बोझ नहीं, पर समाज आज भी असमानता की सीढ़ीओं पर विराजमान है, वह पितृसत्ता की सोच में बंधा हुआ क़ैदी है।  

“सर! कांग्रचुलेशन आपकी बेटी हुई है, माँ और बच्ची दोनों स्वस्थ हैं अभी हम 1 घण्टे में उनको जनरल वार्ड में शिफ्ट कर देंगे।”

यह सुनकर रवि की आँखों में आँसू आ गए। सुनिए तो! आँसू ख़ुशी के नहीं दर्द के थे। ख़ैर! रवि साहब मन ही मन में किरण को कोसने लगे।

‘मैंने उस से कहा था बेटा ही होना चाहिए, अब माँ को मैं क्या मुँह दिखाऊंगा? सारे दोस्त मज़ाक उड़ाएंगे मेरा, यहाँ तक कि मैंने तो उसका नाम ‘भानु’ रखने का भी बोल दिया था।’

क्या औरत डिसाइड करती है कि बेटा होगा या बेटी?

वाह! अब क्या किरण डिसाइड करती कि बेटा होगा और बेटी होगी? है न शर्मनाक बात?

रवि ने घर फ़ोन किया और अपनी माँ को ख़बर सुनाने के लिए जैसे ही माँने फोन उठाया उधर से आवाज़ आती है, “देख रवि! अगर पोता हुआ होगा तो ही घर प्रवेश करने दूंगी वरना यहाँ नहीं आए अपनी माँ के यहाँ चली जाए।”

“माँ, ऐसे कैसे कह दूं? बेटी ही हुई है। मेरा तो मन ही नहीं कि मैं उसकी शक्ल देखूँ।”

“तो ठीक है, कोई बहाना लगा और उसके भाई को बुला ले और तू घर आजा।”

“ठीक है माँ। यही करता हूँ। मुझे पता होता कि लड़की होने वाली है तो मैं गर्भपात करवा देता, यह दिन तो नहीं देखने को मिलता। मैं नहीं जा रहा उसके पास, मैं घर आ रहा हूँ वापस।”

क्यों बेटियों को बोझ समझ कर लोग भ्रूण हत्या करवा देते हैं?

यह संवाद कहीं न कहीं हर मानवतावादी मनुष्य के दिल को चीर कर रख देने का दम रखते हैं। अक्सर लोग कन्या भ्रूण हत्या करवा देते हैं। उनको ज़रा भी डर नहीं लगता? क्या वह किसी को जन्म देने का अधिकार रखते हैं? जो किसी को भी मार दें।

जिस बच्चे को आप मरवाते हैं, उसकी हत्या करवाते हैं, क्या आपको पता है उनमें जान आ चुकी होती है, उसका ह्रदय बन चुका होता है वह पोषण ग्रहण करने लगती हैं, और हाथों की उंगलियाँ हरकत करने लगती हैं? जब पता लगता है, वह बेटी है तो लोग भागे-भागे गर्भपात करवाने के लिए भाग जाते हैं, और इतने वीभत्स तरीके से इस कुकर्म को अंजाम देते हैं जिसका हम सोच भी नहीं सकते। उस अभागे बच्चे को तो वह दुनिया में आने भी नहीं देते और हत्यारे बन जाते हैं।

बेटी है तो क्या हुआ?

बेटी है तो क्या हुआ? आपको मारने के लिए या बर्बाद करने के लिए तो पैदा नहीं हुई। वह तो बेटी है और बड़ी होकर जननी बनेगी। कई लोगों की ज़िंदगी का सहारा बनेगी। आपसे कुछ छीनने नहीं बल्कि आपको कुछ देने आई है। छोटे छोटे हाथों की उंगलियां, और वह छोटे छोटे पैर आगे चलकर शायद तुम्हारा सहारा बनेंगे। तुम्हारे लिए अवतार बनेंगे। जब तुम गर्मियों में प्यास के साथ सूखे गले से घर में प्रवेश करोगे तो शायद यही हाथ तुम्हारी प्यास बुझाने को आगे आएंगे और कोमलता से बोलेंगे, “पापा पानी पी लो।” उन छोटे छोटे पैरों में पहनी हुई पाज़ेब की झंकार से क्या आपका मन प्रफुल्लित नहीं होगा? जब उसकी कोमल और छोटे से चेहरे पर हँसी की छटा बिखरेगी तो क्या आपका चेहरा उदासी भरा रहेगा? ज़रा सा इस दृश्य को अपनी आँखें बंद कर के सोचो तो सही। उसने आपके घर में जन्म लिया है, ईश्वर ने उसको आपके घर भेजा है, कोई न कोई तो मंशा होगी उसकी जो उसने उसको आपके घर भेजा।

बेटियाँ बोझ नहीं होतीं

बेटियाँ बोझ नहीं होती। ये दहेज़ प्रथा तो आपकी ही बनायी है। अब इसको रोकना भी आपको ही होगा। और ये आपको कहा ही किसने है कि लड़की ब्याहने के लिए पैदा होती है? क्या आप अपने लड़के का ब्याह नहीं करते? आजकल क्या लड़के और क्या लडकियां? दोनों माँ-बाप का सहारा होते हैं। बेटियों को सहारे की ज़रूरत नहीं अपनेपन की ज़रूरत होती है। उनको आपके पैसों से नहीं आपके एहसास चाहिए होते हैं। वह मज़बूत तो होती हैं मगर आत्मा से उतनी ही कोमल। उनको नीचा और कमतर दिखाने के बजाय उनको समझिये। उनको मौका दीजिये, फिर देखिये वे किस ऊँचे मुकाम पर पहुंचती हैं।

जीवन एक बुलबुले की भांति है, वह बुलबुल कभी भी फूट सकता है। ज़रा सा सोचिए और पितृसत्ता को ख़त्म करने में योगदान दीजिए। आप ख़ुद को उनकी जगह पर रख कर देखिए, क्या आपको लगता नहीं के आप कितना क़ैद महसूस के रहे हैं। सबको सबका स्थान दें। अपनी बेटियों को आकाश में उड़ने दें। उनके पर मत काटिए, उनको पिंजड़े में रखने के बजाए एक खुला और नीला आसमान दें, जहाँ वह परवाज़ कर सकें।

क्यूंकि बेटियाँ बोझ नहीं  बेटियाँ दिल का क़रार हैं,

देख भी लो और समझ भी लो सबसे वफादार हैं।

मूल चित्र : Canva

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