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भंवरी देवी को न्यायिक प्रणाली के माध्यम से कभी न्याय नहीं मिला लेकिन उनके इस साहस ने भारत की हर महिला को, विशाखा गाइडलाइन्स से, सुरक्षा के कवच में बांध लिया।
राजस्थान शुरू से ही औरतों के साथ दुर्व्यवहार, जैसे भ्रूण हत्या, दहेज़ और बाल विवाह के लिए जाना जाता है। कई लोग तो इसे बर्दाश्त कर लेते हैं और कई लोग इसके खिलाफ आवाज़ उठाते हैं और उन्हीं में से एक हैं, भंवरी देवी।
भंवरी देवी राजस्थान के एक छोटे से गांव भटेरी जो राजधानी जयपुर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है की रहने वाली है। जब वो 5-6 साल की थी तब उनकी शादी हो गयी थी। उनकी शादी जिस गांव में हुई थी वहां गुर्जर समाज का बोलबाला था (इन्हें ऊंची जाति का समझा जाता था) और भंवरी देवी कुम्हार समाज (इसे पिछड़ी जाति समझा जाता था) से थीं।
उन्होंने 1985 में राजस्थान सरकार की साथिन योजना से जुड़ने का निर्णय लिया। इसमें ये गांव की महिलाओं की समस्याओं को दूर करने के लिए काम करती थीं। कह सकते हैं एक औरत होने के नाते वे इससे बहुत जुड़ाव महसूस करती थीं। इसके अंतर्गत भंवरी देवी गांव के हर घर में जाकर सामाजिक बुराइयों के खिलाफ़ जागरूक करती थीं और महिलाओं को साफ-सफाई, परिवार नियोजन और लड़कियों को स्कूल भेजने के फ़ायदों के बारे में बताती थीं। लेकिन जब वो इतना अच्छा काम करती थीं तो आखिर उनके साथ ऐसा क्या हुआ जो उन्हें इतनी लंबी लड़ाई की और खींच लाया?
आज से तक़रीबन 28 साल पहले की बात है। वो राजस्थान सरकार के बाल विवाह के खिलाफ चल रहे प्रोजेक्ट के लिए काम कर रहीं थी और इसी के चलते उन्होंने अपने गांव के गुर्जर समाज में हो रही 9 महीने की बच्ची की शादी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठायी। भंवरी देवी ने लोगों को समझाया और उनके नहीं मानने पर पुलिस में इसकी शिकायत दर्ज़ करवाई। इसके बाद वहां के उप-विभागीय अधिकारी (एसडीओ) और पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) ने सख़्ती दिखाई और शादी तय तारीख पर नहीं हुई। लेकिन जिन लोगों के दिमाग में कचरा भरा होता है, उन्हें कुछ समझ नहीं आता। उन्होंने अगले दिन 2 बजे उस मासूम बच्ची की शादी कर दी। इसके ख़िलाफ़ किसी ने कोई कारवाही भी नहीं करी क्यूँकि वो ऊँचे समाज के अमीरजादे जो थे। जहां एक तरफ़ शादी ख़त्म हुई वहीं दूसरी तरफ़ भंवरी देवी की जिंदगी की नई लड़ाई शुरू हुई।
22 सितंबर 1992 की शाम की बात है। भंवरी देवी अपने पति के साथ खेत में काम रहीं थी और तभी उसी गुर्जर समाज के 5 लोग खेत में घुस गए और उनके पति को मारने लगे और जैसे ही वो उन्हें बचाने गयीं, उन निर्लज दरिंदो ने उनके साथ ज़बरदस्ती करी और वो गैंगरेप (सामूहिक बलात्कार) का शिकार बन गयी।
लेकिन इसमें सबसे अच्छी बात यह हुई कि भंवरी देवी और उनके पति ने इसके खिलाफ आवाज़ उठायी। जब आज भी लोग रेप की बात खुलकर नहीं करते हैं, तो हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उस समय में इसके लिए सामने आकर लड़ना कितनी हिम्मत वाली बात रही होगी। और शायद उन्हें भी इस बात का अंदाज़ा नहीं होगा कि उनकी ये एक छोटी सी पहल पूरे देश की महिलाओं के लिए ताक़त बन जाएगी।
इसके लिए उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज़ करवाई। लेकिन कहते हैं ना ग़रीब की कोई नहीं सुनता, कुछ ऐसा ही भंवरी देवी के साथ हुआ। वो कहती हैं कि 8 बार उन्होंने अपनी सच्चाई का सबूत दिया। डॉक्टर, पुलिस और यहां तक की न्यायालय ने भी उनका साथ नहीं दिया था। शुरुवात में पुलिस ने शिकायत दर्ज़ करने से मना कर दिया और उनसे पूछने लगे कि क्या तुम्हें रेप (बलात्कार) का मतलब भी पता है? सुनकर मैं भी अचंभित सी हो गयी तो सोचिये उस महिला पर क्या बीती होगी जो इस दर्द से गुज़री है? लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और घटिया राजनीति के सामने डट कर खड़ी रहीं। उनकी मेडिकल जांच 52 घंटे बाद की गई जबकि ये 24 घंटे के भीतर किया जाना चाहिए था क्यूँकि मजिस्ट्रेट ने जाँच के आर्डर देने से मना कर दिया था।
जब 25 सितंबर 1992 को पहली बार राजस्थान के लोकल न्यूज़ पेपर ने इसे कवर किया तब जयपुर के NGOs मदद के लिए आगे आये और यहीं से भंवरी देवी को अपनी लड़ाई लड़ने की शक्ति मिली। केस चला और 1995 में जयपुर के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने इस केस को खारिज कर दिया और बयान दिया की भंवरी के पति अपनी आँखों के सामने उनका बलात्कार नहीं होने दे सकते। साथ ही सभी दोषियों को बाइज़्ज़त छोड़ दिया गया। और आपको बता दूँ कि इस फ़ैसले में 5 बार न्यायाधीश बदले गए थे और छठे न्यायाधीश ने आख़िरकार ये फ़ैसला सुनाया था। यह साफ साफ़ इस बात का सबूत है की सच्चाई के साथ किस प्रकार खिलवाड़ किया गया है।
इन सबके बाद महिला संगठन आगे आये और इस फ़ैसले के खिलाफ जमकर विरोध किया गया और सरकार ने विवश होकर इस फ़ैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी। लेकिन कहते हैं न मजबूरी में किया गया काम न करने से बेहतर है। और 2007 तक, 15 साल में सिर्फ 1 बार केस के लिए सुनवाई हुई और तब तक 2 मुज़रिम दुनिया से जा चुके थे और उसके बाद भी कोई सुनवाई नहीं हुई।
अगर कोर्ट से भी इस प्रकार की बातें सामने निकल कर आती हैं, तो मुझे अब ख़ेद है की वो अभी तक भी महिलाओं के साथ हो रही दरिंदता का अंदाज़ा नहीं लगा पाए हैं और आज भी भंवरी देवी को इंसाफ नहीं मिला है। लगता है इस बार भी सच्चाई के आगे गंदी राजनीति का पलड़ा भारी है।
लेकिन इन सबके बीच एक चीज़ ऐसी हुई की जिसने सभी महिलाओं की जिंदगी में जैसे रौशनी की किरण ला दी हो। चलिए आपको आपके ही कुछ हक़ों से रूबरू करवाती हूँ और जानते है कैसे इस एक रेप केस ने लाखों औरतों को आवाज़ दी है।
जब भंवरी देवी का ये केस चल रहा तो उसी बीच जयपुर और दिल्ली स्थित गैर-सरकारी संगठनों ( NGOs ) के कार्यकर्ताओं और महिला समूहों ने इसके खिलाफ आवाज़ उठायी और विशाखा नाम के सामूहिक मंच से सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की। उन्होंने मांग की कि कार्यस्थलों को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाया जाना चाहिए और नियोक्ता को कर्मचारियों की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए, खासकर महिलाओं की चिंताओं और सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करके। इस आंदोलन ने अंततः कार्य स्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 की परिभाषा को लागू किया, जिसे आमतौर पर विशाखा दिशा निर्देश के रूप में जाना जाता है। अगस्त 1997 के इस फैसले ने कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न की मूल परिभाषा प्रदान की और इससे निपटने के लिए दिशा-निर्देश प्रदान किए। इसे भारत में महिला समूहों के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी जीत के रूप में देखा जाता है।
पिछले वर्षों में, उन्हे विभिन्न संगठनों द्वारा उनके साहस के लिए सम्मानित किया जा चुका है। दिल्ली महिला आयोग ने 8 मार्च, 2017 को उनके साहस को नवाज़ा । 1994 में, उन्हें नीरजा भनोट मेमोरियल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यद्यपि उन्हें न्यायिक प्रणाली के माध्यम से कभी न्याय नहीं मिला और दोषियों को बरी कर दिया गया, लेकिन उनके इस साहस ने भारत की हर महिला को सुरक्षा के कवच में बांध लिया और सबसे बड़ी बात उन्होंने रेप जिसे आज भी टैबू समझा जाता है, उसके बारे में खुलकर बात करी। भंवरी देवी की बात करें तो वो आज भी उसी गांव में रहती हैं और महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाती हैं।
तो इसी कारण हमने भारतीय इतिहास के ऐसे वाक़य से आपको रूबरू करवाया जिसने हमें एक नई आवाज़ दी। आशा करते हैं आप भी चुप नहीं रहेगी और अगर आप के साथ या आपके किसी भी साथी के साथ ऐसा कुछ होता है तो तुरंत शिकायत दर्ज करें। हमेशा याद रखें कि एक के आवाज़ उठाने से बहुत लोगों को हिम्मत मिलती है।
मूल चित्र : बीबीसी / विविधा
A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...
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