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एक थी बेगम चौदह एपीसोड में जुर्म के दुनिया के बादशाहों के बीच में एक बेगम की कहानी है। जो एक-एक करके सारे बादशाहों को मात देती जाती है।
एम मैक्स प्लेयर पर क्राइम कंटेट पर, भौकाल क्राइम सीरीज के बाद ,जो उत्तर प्रदेश के क्राइम पर आधारित थी, मुबंई के क्राइम पर आधारित एक सीरीज़ दो दिन पहले रिलीज हुई है एक थी बेगम। मुंबई जुर्म की कहानी सुनाती यह क्राइम सीरीज चौदह एपीसोड में जुर्म के दुनिया के बादशाहों के बीच में एक बेगम की कहानी है। जो एक-एक करके सारे बादशाहों को मात देती जाती है और सारे बादशाह एक-दूसरे से पूछते है, कौन है यह बेगम?
सचिन दारेकर के निर्देशन में इस बेव सीरिज की कहानी शुरू होती है ज़हीर(अंकित मोहन से) जो मकसूद भाई का बागी गैंगस्टर है, जो मुम्बई में ड्रग्स का कारोबार रोकने के लिए एक अलग गैंग बनाता है। जहीर के हाथों मकसूद भाई का काम देख रहे नाना(राजेंद्र शिष्टाकर) के भाई रघु को मार देता है। पहले पुलिस अधिकारी ताबड़े(अभीजीत च्वहाण) से ज़हीर को उठवाता है। ज़हीर अदालत से छूट जाता है और उसके बाद मकसूद भाई के कहने पर नाना और ताबड़े ज़हीर को मार देते हैं।
ज़हीर की पत्नी अशरफ(अनुजा साठे) पुलिस में रिपोर्ट से लेकर मीडिया तक सब जगह चली जाती है लेकिन उसके जाने का कोई फायदा नहीं होता है। अशरफ उसके बाद खुद बदला लेने का फैसला करती है। वह एक डांस बार में काम करने लगती है और जाल बिछाती है कि एक-एक कर सबको मौत के घाट उतार देती है।
मुम्बई जुर्म की दुनिया के इर्द-गिर्द एक नहीं कई कहानीयाँ कही जा चुकी हैं, पर उसमें न भूलने वाली कहानी कम ही है। उसमें किसी महिला को केंद्र में रखकर जो न भूलने वाली कहानी है वह मधुर भंडारकर कि फ़िल्म चांदनी बार जिसमें तब्बु की एक्टिंग को हमेशा याद किया जायेगा। उसके बाद हाल में रिलीज हुई हसीना पारकर, जो दशर्को के जेहन में है। एक थी बेगम की कहानी चांदनी बार के आस-पास नज़र आती है।
किरदारों का चयन इस सीरिज़ को देखने लायक बना सकता है। अगर सीरिज में मुबंई के भाषा पर मेहनत की जाती, तब शायद सारे किरदार कहानी के और करीब हो जाती। ज़हीर के किरदार में अंकित मोहन और नाना के किरदार में शिष्टाकर ने जो भूमिका निभाई है काबिले तारीफ है। तावड़े के किरदार में अभीजीत च्वाहण जो भी कमाल का काम किया है। इन सब के बीच अशरफ के किरदार में अनुजा साठे जो टीवी सीरियल बाजीराव से जाना पहचाना नाम है की अदाकारी थीड़ी निराश करती है।
14 एपीसोड में अशरफ के साथ कहीं भी आप इमोशनली अटैच नहीं कर पाते हैं। इसकी सबसे बड़ी वज़ह पटकथा और अशरश का अभिनय कहा जा सकता है। लेखक ने अशरफ का सफर को बहुत आसान कर दिया है। कहानी यह दावा करता है कि वह किसी सच्ची घटना पर आधारित है उसके बाद भी लेखक बेगम के रूप में अशरफ की कहानी कहने में डगममा जाते है।
सीरीज में एक मीडिया हाऊस को भी दिखाया गया है। एक पत्रकार जो कि पुलिस वालों के ख़िलाफ लिख रही है उसका कहना है कि वो अपने भाई का बदला ले रही है जिसका सीरीज में कुछ खास काम देखना को नहीं मिलता है। निर्देशक ने दुबई से लेकर मुम्बई की अच्छी लोकेशन का चुनाव किया है। कुछ सीन तो इतने असली लगते हैं कि फ़िल्म सत्या की याद दिला देते हैं।
एक थी बेगम की कहानी अपने पूरे कहानी में दो महिला पात्रों के साथ आगे आती है अशरफ और महिला पत्रकार, पर दोनों की बेगमों की कहानी कहने में डगमगा जाती है। यह कह सकते है कि एक थी बेगम की कहानी में भले ही बेगम बादशाहों की किले ध्वस्त कर देती है पर पूरी कहानी अपने महिला किरदारों के साथ वह न्याय नहीं कर पाती है जिसकी उम्मीद कहानी के शीषर्क से है।
मूल चित्र : YouTube
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