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हिमालय जिसको हम पर्वतों का राजा मानते हैं, पाँच देशों की रखवाली के लिए खड़ा यह न कभी थकता है और ना हार मानता है।
दुश्मनों की ताक में ,
पुरातनकाल से जाग रही है इसकी आँखें ,
देश की सुरक्षा में कोई विपदा ना आए ,
इसीलिए हो खड़ा पहरेदार सा ,
हर वादा कर रहा है अदा यह।
आँधियों को बाँहों में लिए ,
तूफानों से रोज है खेलता ,
मौसम का रुख भी यह बदल दे ,
बादलों को भी चीर पानी में बदल दे।
अंशुमन की पहली किरण करे नमन इसका ,
सांझ भी ढलने से पहले करे मनन इसका ,
गुनवाण है ये गुणों से भरा ,
इसीलिए शीश झुकाए करता अंबर भी गुनगाण इसका।
देश की है शान यह ,
आन यह पहचान यह ,
पर्वतों का सरताज यह ,
अधिराज यह अभिराज यह ,
पहने हुए अंबर का ताज यह ,
धरती पर खड़ा अचल अडिग अभिचल हिमालय यह।
देखो ना !
बिन बाँधे ,
खींचा चला आऊँ इस ओर ,
कैसी है यह डोर ,
क्या रोचक नज़ारा है ,
इन वादियों ने आज फिर पुकारा है।
यहाँ की हवा में एक सोंधी सी महक है ,
दिल जाए तेजी से धड़क ऐसी इस की एक झलक है ,
फ़लक पर जब सजता इसकी चोटी पर मयंक है ,
चमक उठे ये दो नयन है।
इसकी सुंदरता का बखान ,
शब्दों में ना पिरोया जा सके ,
ना कर सके इसकी खूबसूरती को कोई भी बयां ,
उदय और अस्त ,
दोनों मदमस्त यहाँ।
एक अनोखी सी शांति है इन फ़िज़ाओं में ,
जो दिल को है छू जाती ,
अंतर्मन से जा मिलाती ,
डर है खो ना दूँ खुद को यहाँ ,
पर फिर लगता यक़ीन सा है ,
खोकर खुद को भी पा लूँगी जन्नत का नूर यहाँ।
चल शिखर पर कर एक चढ़ान ,
कर दे तू भी यह ऐलान ,
गूँज जाए तेरी पहचान।
पीछे रह जाएँ कदमों के निशान।
मूल चित्र : Pexels
Founder of 'Soch aur Saaj' | An awarded Poet | A featured Podcaster | Author of 'Be Wild Again' and 'Alfaaz - Chand shabdon ki gahrai' Rashmi Jain is an explorer by heart who has started on a voyage read more...
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