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इस बार जो बच पाओ तो हर हाल में जिंदा रखना, दिलों में इंसानियत कि हैवान भी, तुम पर नज़र डाले तो शर्मिंदा न हो पाए!
इस बार जो बच पाओ तो बचा लेना हरी शाख को, कि वह फिर ठूंठ न बन पाए!
इस बार जो बच पाओ तो कान धर कर सुन लेना, जब पंछी, चहचहाते हुए लेने आएं, अपने हिस्से का दाना-पानी !
इस बार जो बच पाओ तो दे देना मछलियों को , सागर का किनारा , कि कहीं वे तड़पकर कांच के घर में ही न मर जाएं!
इस बार जो बच पाओ तो, पतंग को छोड़ देना खुले आसमान में, कि गल्ती से कहीं मांझे से ही न बंधी रह जाए!
इस बार जो बच पाओ तो हर हाल में जिंदा रखना दिलों में इंसानियत, कि हैवान भी, तुम पर नज़र डाले तो शर्मिंदा न हो पाए!
इस बार जो बच पाओ तो तितली को पकड़ने की कोशिश हरगिज़ न करना, कि कहीं हाथ पर लगे पंखों के रंग फिर, छूट ही न पाएं !
इस बार जो बच पाओ तो हर जीव को उसके हिस्से की ज़मीन सौंप देना, कि अपने हिस्से की मिट्टी में सो सको तुम भी एक दिन चैन से!
इस बार जो बच पाओ तो चुका देना हर कर्ज धरा का, कि तुम्हें इंसान समझकर उसने न जाने कितनी ही नायाब नेमतें तुम पर बिन मांगे ही न्यौछावर कर डाली थीं!
बस, इस बार जो बच पाओ तो….
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Video : Author’s facebook
मूल चित्र : Canva
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