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इतने ध्यान से रामायण देखने वालों क्या अपने बच्चों को इतना नहीं सीखा पाए रावण की तरह एक स्त्री की इज़्ज़त करें या आप कभी खुद एक स्त्री की इज़्ज़त नहीं कर पाए?
राम से तो बहुत कुछ सीखा हमने पर क्या रावण से भी कुछ सीखा? इतना बड़ा ज्ञानी, इतना बड़ा विद्वान्, क्या उससे सिखने को कुछ नहीं था? कुछ तो होगा।
आज कल रावण के मर्यादा की बात बोली जाती है जो की बिलकुल सही है क्यूंकि रावण जैसा पराकर्मी शूरवीर इतने दिनों तक किस चीज़ का इंतज़ार कर रहा था? वह चाहता तो जिस तरह वो ज़बरदस्ती सीता को लाया वैसे ही कुछ भी कर सकता था। लेकिन उसे अपनी मर्यादा पता थी। और वो सिर्फ तन से नहीं बल्कि मन से भी सीता को अपनाना चाहता था, जो आज का पुरुष भूल गया है। उसके अहं को ठेस पहुँचती है अगर कोई स्त्री या उसकी पत्नी उसे मना कर देती है या अगर कोई लड़की किसी लड़के को मना कर दे तो (वैसे तो कई बार लड़कियों की भी गलती होती है)। इतने ध्यान से रामायण देखने वालों क्या अपने बच्चों को इतना नहीं सीखा पाए कि एक स्त्री की इज़्ज़त करें या कभी खुद एक स्त्री की इज़्ज़त नहीं कर पाए? क्यूंकि आज भी कई पुरुष ऐसे घिनौनी हरकत करते हैं।
जब भी कुछ बुरी घटना होती है हम तुरंत ही किसी बलि के बकरे को ढूंढ लेते हैं चाहे समाज का कोई भी वर्ग हो छोटा, बड़ा , अमीर, गरीब, आम इंसान या फिर राजनेता। उस बलि के बकरे को आगे कर के हम अपना पलड़ा झाड़ लेते हैं। लेकिन पूरी रामायण में क्या कभी किसी ने रावण को ये बोलते सुना कि नहीं मेरी बहन शूर्पणखा के साथ ऐसा हुआ इसलिए मैं सीता को ज़बरदस्ती उठा कर ले आया? नहीं कभी नहीं। वो अपनी बहन के बोलने पर ही वहां गया था, पर उसने कभी इस बात का ज़िकर भी नहीं किया कभी। रावण अपना सब कुछ हार गया लेकिन कभी उसने अपनी बहन को बलि का बकरा नहीं बनाया। जो आज कल लोग करते हैं। चाहे अभी कोरोना संकट हो या घर परिवार के मसले हर कोई बस एक बलि का बकरा ढूंढता है।
रावण जैसा विद्वान क्या उसे नहीं पता था कि राम कौन है लेकिन फिर भी उसने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया।अपने भाई बेटे सब को उसने खो दिया। वो बेटा जिसने इंद्र को भी जीत लिया था उसको भी उसने खो दिया। रावण को तो ये बहुत पहले ही समझ आ गया था की उसकी मौत होने वाली है लेकिन जिस रास्ते पर वो निकल चुका था उसने कभी उससे मुँह नहीं मोड़ा। उसने अपने कर्मों को अपनाया कि हाँ मैं सीता को ज़बरदस्ती उठा कर लाया इसलिए यह सब कुछ हुआ मेरे साथ। उसने सही गलत जो कुछ भी किया तो जहाँ उसने अपनी अच्छाइयों को अपनाया वहीं अपने बुरे कर्मों को भी उसी अपनेपन से अपनाया।
लेकिन वहीं अगर हम अयोध्या के राम राज की बात करें तो हम लोग ये कहना नहीं भूलते कि एक धोबी के कारण राम ने सीता को त्याग दिया। लेकिन अगर इसका मूल कारण देखा जाए तो समझ आएगा कि ना सीता लक्ष्मण रेखा पार करती और ना यह सब होता। या फिर ना सीता राम को उस हिरन के पीछे जाने बोलती और ना यह सब होता। अरे राम-सीता से तो रावण अच्छा जिसने अपने कर्मों को अपनाया और कभी अपनी बहन को इसका कारण नहीं बताया। उसने यही कहा की हाँ जो मैंने किया उसे मैं बदल नहीं सकता और अब बस लड़ाई ही एक मात्र उपाय है। शायद इसलिए बोला जाता है की हर मनुष्य को अपने कर्मों का ही फल मिलता है। बस सिर्फ कोई एक जरिया बन जाता है, नहीं तो हर कोई यहाँ अपने कर्मों के हिसाब से ही फल भोगता है। और जो यह बोलता की हमने कोई गलती ही नहीं की है वो सबसे बड़ा झूठ है क्यूंकि जब भगवान् राम गलती कर सकते हैं, जो खुद मर्यादा पुरुषोत्तम थे तो हम तो इंसान हैं हम तो हज़ारों गलतियां करेंगे। लेकिन बस हमें उन गलतियों से सीखना चाहिए और रावण की तरह उन गलतियों के फल को भोगने के लिए तैयार भी रहना चाहिए।
क्या फायदा ऐसे मर्यादा को मानने का, क्या फायदा ऐसे धर्म को मानने का जो बस आपको अंत में दुःख दे। शायद इसलिए रामायण में ही स्वयं भगवान् राम ने कहा है की धर्म कोई पत्थर की लकीर नहीं है, वो तो एक इंसान की तरह है जो हमेशा ही आगे बढ़ता रहता है, जो समय के साथ बदलता रहता है। और अगर कभी ऐसे परिस्तिथि आ जाये कि उसे अपने धर्म और अपने कर्म के बीच चुनना पड़े तो उसे अपने आत्मा की बात सुननी चाहिए क्यूंकि आत्मा सब कुछ जानती है कि तुम्हारे लिए क्या सही क्या गलत है। नहीं तो गलतियां तो भगवान् श्री राम से भी हुई थी और सीखने को तो रावण से भी बहुत कुछ मिलता है। निर्भर आप पर करता की आप क्या सीखना चाहते क्यूंकि हर इंसान आपको कुछ ना कुछ सिखाता ही है।
मूल चित्र : Ramayan Series YouTube
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