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बात-बात पर दुःखी होना क्यों तेरी आदत बन गयी है?

तूने भी तो यही माँगा था कि घर बैठ कर परिवार के साथ वक़्त बिताये, आज ये परिवार के साथ रहना बुरा लग रहा? आज ये बोला जा रहा 'मानो ज़िन्दगी गई?'

तूने भी तो यही माँगा था कि घर बैठ कर परिवार के साथ वक़्त बिताये, आज ये परिवार के साथ रहना बुरा लग रहा? आज ये बोला जा रहा ‘मानो ज़िन्दगी गई?’

आज ये शांति बुरी लग रही है
आज ये घर बैठ कर चाय पीना बुरा लग रहा है
आज ये परिवार के साथ रहना बुरा लग रहा
आज ये बोला जा रहा ‘मानो ज़िन्दगी थम गई हो’

पर तूने भी तो कभी ये चाहा ही था
तूने भी तो कभी ये माँगा ही था
तूने भी तो कभी यह सोचा ही था की काश घर बैठ कर चाय पिए
तूने भी तो कभी बोला ही था काश परिवार के साथ वक़्त बिताये
तूने भी तो कभी बोला ही था ‘ज़िन्दगी भाग रही’

आज जब ज़िन्दगी थम गई तो क्यों तू घबरा रहा
आज जब घर पर चाय पी रहा तो क्यों, “चाय भी अब बोर हो गई”
आज जब शांति है तो तू क्यों अशांत हो रहा है
आखिर क्यों तू हर वक़्त किसी चीज़ के पीछे भागता
आखिर क्यों तू अपनी ख़ुशी बाहर ढूंढता
आखिर क्यों नहीं तू उस पल को खुल कर जीता

किसी की जीत तो किसी की हार
किसी का फायदा तो किसी का नुकसान
किसी की ख़ुशी तो किसी को दर्द
किसी का प्यार तो किसी का नफरत
यही तो इस संसार का चक्र है
यही तो इस संसार का नियम है

आखिर कब तक तू किसी के पीछे भागेगा
आखिर कब तक तू अपना नहीं दूसरों का सोचेगा

हे मनुष्य, वक़्त है ठहर जा
वक़्त है संभल जा
उठ जा एक बार फिर तू
तोड़ कर इन सांसारिक बंधनों को
झाँक अपने अंदर, पहचान अपनी ख़ुशी को
पहचान तू खुद को
है कितनी शक्ति तुझमें
है कितना हौसला तुझमें

अपनी शक्तियों को अपनी पहचान बना
अपने हौसले को अपनी ताक़त बना

बीत जायेगा ये वक़्त भी
होगा नया दिन और होगी नयी सुबह
मत घबरा इन परस्थितियों से
ये तो बना रही हैं तुझे और मज़बूत
चाहे मैं तू या कोई और
हर कोई लड़ रहा यहाँ अपनी लड़ाई

बहुत हुआ ये रोना
ध्यान दे बस अपनी अच्छाइयों पर
क्यूंकि, आखिर क्यों तू फिर भागना चाह रहा?
आखिर क्यों तू दूसरों सा बनना चाह रहा?

मूल चित्र : Canva 

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