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हमारी दुनिया में कई तरह की सोच वाले प्राणी रहते हैं, जिनको यह विचार अखर सकते हैं, लेकिन यहां कोशिश सिर्फ लिव इन रिलेशनशिप के सकारात्मक पहलू को पेश करने की है।
वैसे तो हम एक सभ्य समाज में रहते हैं। ज़्यादातर सब धर्म, नियम व कानून के तहत जीवन जीते हैं, यह बातें कितनी अच्छी लगती हैं, हैं न? किताबों में और फिल्मों में हम सभ्य समाज के बहुत अच्छे अच्छे और प्रभावशाली रूप को देखते हैं। मगर क्या हम जानते हैं कि यह जो सभ्य समाज है, क्या वास्तविकता में सभ्य है? या महज एक मिथ?
धर्म हो या संवैधानिक नियम हर स्थान पर महिलाओं की स्तिथि को ऐसे दर्शाया जाता है, जैसे हमारे यहां जेंडर के नाम पर विभाजन का नामोनिशान नहीं। लेकिन बेटी के पैदा होने पर आज भी कई परिवारों में खुशियां नहीं मनाई जातीं। ऐसा क्यों है?
यहां किसी भी समाज की अवहेलना नहीं की जा रही। हाँ ! मगर याद दिलाया जा रहा है कि यदि हम धर्म और समाज के मापदंडों को तो मानते हैं, और उस पर अमल भी करते हैं फिर महिलाओं की जो स्तिथि है वह इतनी दयनीय क्यों है?
महिला अगर किसी भी तरह का शोषण झेल रही है, तो समाज उसको सपोर्ट करने के बजाए उसकी कमियां निकालने लगते हैं। और शुरू से ही पुरूष समाज की गलतियों पर पर्दा डालने की कोशिश की जाती रही है। अगर किसी का तलाक़ हुआ तो उसमें महिला की गलती, अगर किसी महिला का रेप हुआ तो भी उसी महिला की गलती।
समाज में कई प्रकार की भ्रांतिया फैली हुई हैं जैसे कि शादी से पहले साथ रहने को पाप समझा जाता है, और कई समाज इसको हराम नाम का तमगा दे देते हैं। ये सवाल उन पाखंडियों से है जो शादी के बाद कहीं गायब हो जाते हैं। शादी के बाद जब महिला किसी पुरुष की प्रताड़ना झेल रही होती है तो उसको सपोर्ट करने के लिए कोई आगे नहीं आता, तो शादी से पहले रिश्ते को बनाने की आज़ादी आप लोग तय नहीं करेंगे। बिल्कुल भी नहीं।
इशारा आज यहाँ लिव इन रिलेशनशिप की तरफ है और कई लोग इसको बिल्कुल भी गलत नहीं मानते। आज मैं इसका उल्लेख करूँगा और इसके फायदे भी लिखना चाहूंगा कि ऐसे सम्बन्ध जीवन में उपयोगी साबित होते हैं।
अक्सर देखा जाता है, शादी से पहले कई पुरुष बहुत प्यारी प्यारी बातें करते हैं, और चूँकि ज़्यादातर महिलाएं व्यवहारिक और मानसिक तौर पर भावुक होती हैं, वे पुरुष की बातों में अपनी संवेदना व्यक्त करने लगती हैं। वहीं अगर शादी के बाद कि बात करें तो हर दूसरे दिन हिंसा की बातें सुनने को मिलती हैं, “तुझे छोड़ दूंगा, तलाक दे दूंगा, घर से निकाल दूंगा।” बहरहाल! लिव- इन रिश्ते में ऐसी किसी भी निरर्थक बात की कोई जगह नहीं होती।
ऐसे रिश्तों में ना तो पुरूष खुद को जकड़ा हुआ महसूस करता है, और ना ही महिलाएं। एक शादीशुदा जिंदगी में हमने देखा है अक्सर युगल आर्थिक समस्याओं से गुजरते हैं और झगड़े होते हैं, घरेलू हिंसा होती है, मगर बात की जाए लिव इन रिलेशनशिप के लिए तो इसमें ऐसी कोई भी सीमा या बन्धन नहीं होता के आप अपने ऊपर कितना खर्चा कर रहे हैं, या कितना योगदान दे रहे हैं, ऐसे सम्बन्धों में बराबरी की हिस्सेदारी होती है।
आजकल तो एक चलन चल गया है के शादी के समय लड़के और लड़कियों को पहले मिलवा दिया जाता है, मगर यह भी कोई संतुष्टि करने वाला समय नहीं होता, ज़्यादा से ज़्यादा 1-2 महीने? इस समय अवधि में तो आप दोनों ही खुद को अच्छा दिखाने की कोशिश करेंगे कि आप बहुत सभ्य हैं, निष्ठावान हैं, आदि। इसके बाद परिवार वाले भी संतुष्ट और लड़का लड़की भी। बात शादी तक तो ठीक चलती है, उसके बाद असली कहानी शुरू होती है, रिश्ते की, शादीशुदा जीवन में मुख्य रूप से इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है ■ आर्थिक समस्या ■सोच का न मिलना ■ व्यसन आदि की लत ■पार्टनर की रूढ़िवादी सोच
आप देख सकते हैं उपरोक्त समस्या हर दूसरे परिवार को होती ही होती है। इस से बचने के लिए तो बस एक ही रास्ता है अपने पार्टनर के साथ कुछ ज़्यादा समय व्यतीत करो और पहचानो कि वह आपके क़ाबिल है भी या नहीं। ऐसा लिव इन रिलेशनशिप में संभव है।
हम में से कई लोग संस्कृति, परंपरा और नैतिकता के चादर ओढ़े हुए हैं, जिसमें असली में नैतिकता अब नाम के बराबर रह गयी, मगर कभी कभी यह बातें दम घोटने का काम करती हैं, ऐसा लगता है हम पिंजड़े में बंद हैं, या कोई क़ैदी। शादी के बाद लड़कियों से न जाने कौन कौन सी उम्मीद लगा ली जाती है और अगर लड़की के घरवालों के अनुसार कोई कार्य नहीं हो पाया तो बस! फिर प्रताड़ना शुरू। और जीवन के महत्वपूर्ण क्षण बर्बाद। लिव-इन रिश्तों में ज़्यादातर ऐसी तो कोई बात नहीं नज़र आती न देखने को मिलती।
लिव इन रिलेशनशिप की एक अन्य खूबी यह भी है के इसमें काम बांटे नहीं गए होते, कि खाना पत्नी को ही बनाना है, घर की सफाई आदि। यहाँ पर ज़्यादातर दोनों पर एक जैसी जिम्मेदारी होती है, और इन बातों पर कोई नोक झोंक भी नहीं। लिव इन रिलेशनशिप में आपसी सहमति भी होती है, अगर हम बात करें शारीरिक सम्बंध की तो इसमें भी कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नही की जा सकती, जिस तरह से वैवाहिक जीवन में अक्सर महिलाओं को बलि का बकरा बनना पड़ता है, चाहे वह किसी भी स्तिथि से गुज़र रही हों।
हमारी दुनिया में कई प्रकार के और कई तरह की सोच वाले प्राणी रहते हैं, जिनको मेरे यह विचार अखर सकते हैं, लेकिन मेरी कोशिश सिर्फ लिव इन रिलेशनशिप का एक सकरात्मक पहलू पेश करने की है। लिव इन रिलेशनशिप का मतलब यह तो बिल्कुल भी नहीं होता के शादी से पहले सेक्स करना ऐसे रिश्तों की प्राथमिकता है। यह बिल्कुल गलत अवधारणा है, ऐसे रिश्तों से जीवन को सुकून से और प्यार से बिताने के रास्ते खुलते हैं। जीवन की समस्याएं आसान हो जाती हैं।
मूल चित्र : Canva
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