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लौकडाउन और ये अजीब सा छलता दौर सच्ची बात कही, यह दौर एक अजीब सी आब-ओ-हवा लेकर आया है, कुछ तो है जो प्राकृतिक के विलोम में हुआ।
छलता दौर कितनी ही उम्मीदें ,कितने ही वादे इरादें लेकर आया था 2020 पर क्या पता था पल में ही छल देगा 2020 बरसों की तैयारी में रोज अपना आज खोते हैं कल की कल देखेंगे और सच्चाई से रोज मुंह मोड़ कर सोते हैं … कितना कुछ जीना है, यह वहम हम सबने पाल रखा है, यहां पल भर का भरोसा नहीं,अगला ,पिछला जन्म हमने ज़हन में डाल रखा है….
इस लॉकडाउन ने कितना कुछ सिखा दिया , जिन्दगी का वास्तविक जीवन से परिचय करवा दिया.. पर… जब ये सब कुछ खत्म हो जाएगा .. तब हम सब फिर से राहत की सांसें ढूंढेंगे.. संडे के इंतजार में पूरे हफ्ते को कोसेगे ..
ढलते हुए सूरज को उन दिनों रोज छत से देखना.. फिर किसी छुट्टी पर सनसेट को अपने फोन में कैद करना…
परिवार के साथ जो वक्त मिला वो वेब सीरीज़ देखने में ज़ाया कर दिया … फिर किसी वीकेंड परफैमिली से फैमिली का फोटो खींच कर अभिनंदन जाहिर कर दिया ..
घर में सब साथ काम करें यही लॉकडाउन का नारा है .. फिर एक दिन आई कैन हैंडल माइसेल्फ खुद ही सबको दूर भगाना है..
सोशल डिस्टन्सिंग ने लोगों को दूरी का मतलब समझाया।
कितने ही लोग इस दौर में दुनिया से यूंही चलें गए… एक आखरी बार भी अपनो को देख न पाए बस यूंही बिछड़ गए … कितना कुछ पाने को है इस लॉकडाऊन में फिर भी हम खोते जा रहे हैं …. आने वाले कल के इंतजार बस हम आज को ही नहीं जी पा रहें हैं।
मूल चित्र : Canva
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