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अब पुरुषों को भी सोचना चाहिए कि क्या घर का काम करना, जैसे झाड़ू लगाना, बर्तन धोना, कपड़े धोना, खाना बनाना सब उनकी माँ या पत्नी का ही काम है?
हम लॉकडाउन के इन दिनों को कभी भूल नहीं पाएंगे। क्योंकि हममें से कई लोगों ने इतनी लंबी छुट्टियां बस घर में रहकर बिताई। कहीं बाहर जाना नहीं और किसी का घर में आना नहीं। लेकिन क्या महिलाओं के लिए भी ये छुट्टियों जैसा समय है। ज्यादातर का जवाब होगा नहीं, पर क्यों? क्योंकि जब सब घर में तो काम भर-भर के।
घर की औरतें सुबह से लेकर शाम तक काम समेटने में लगी हुई हैं। जिनके बच्चे छोटे हैं उनके लिए तो लॉकडाउन के दिन आफ़त लेकर आए हैं। अब बच्चों के लिए प्लेग्राउंड भी घर का फर्श और दीवारें ही हैं। लेकिन बेचारी मम्मी की तकलीफ़ किसी को नहीं दिखती। घर कितना भी साफ़ कर लो शाम तक फिर वैसे का वैसा ही हो जाता है। अब ऐसे में कोई झुंझलाए ना तो क्या करे।
कहीं-कहीं तो पति लोग भी पत्नियों के सर पर अचानक आए इस काम के बोझ को कम करने की बजाए बढ़ाने का ही काम कर रहे हैं। ज़रा उन्हें कोई ये समझाए कि जनाब आपकी पत्नी भी इंसान है और उनका भी आपकी तरह ही आराम करने का मन करता होगा लेकिन घर पर काम इतने हैं कि दिन ख़त्म हो जाता है लेकिन काम खत्म होने का नाम नहीं लेते। सोफे पर टांगे पसारकर खाने में ‘ये बना दो, वो बना दो’ का ऑर्डर देने की बजाए ज़रा बाहर निकलकर देखिए कि काम का कितना अंबार है।
हम यहां सभी पतियों को नहीं कोस रहे, कुछ ऐसे भी हैं जो समझदारी से अपनी पत्नियों का भरपूर हाथ बंटा रहे हैं। कुछ नहीं भी आता तो सीखने की कोशिश कर रहे हैं। आख़िर घर परिवार के प्रति उनकी भी तो उतनी ही ज़िम्मेदारी बनती है जितनी उनकी पत्नी की। कितना सही है, एक तरफ़ आपकी पत्नी आपके लिए और घरवालों के लिए खाना बनाए तो आप बर्तन धो दें। वो कपड़े धोएं तो आप सूखा दें। वो झाड़ू लगाएं तो आप एक्सरसाइज़ समझकर ज़रा पोछा लगा दें। वो कहे मैं थक गई हूं तो आप चाय बना दें। बस ऐसे ही तो कटती है ज़िंदगी वर्ना तो किसी एक के लिए बोझ बन जाती है।
जिन पत्नियों के पति आजकल उनकी मदद कर रहे हैं वो अपनी ख़ुशी सोशल मीडिया के ज़रिए ज़ाहिर कर रही हैं। क्या फेसबुक, क्या ट्विटर और टिक-टॉक तो सबसे आगे। घरवाली अपने घरवाले से इतनी ख़ुश है कि उनकी काम करते हुए की वीडियो पोस्ट कर रही हैं। कोई महाशय बर्तन साफ़ कर रहे हैं, कोई कपड़े धो रहे हैं तो कोई शेफ़ बने हुए हैं। लेकिन ये बात सोचने की है कि पत्नियां कितने प्यार से अपने पति का किया छोटे से छोटा काम भी सराहती हैं, लेकिन जब वो रोज़ ये सब करती हैं तो क्या आप उन्हें सराहते हैं?
हम इस सोच के साथ बड़े होते हैं कि घर का काम करना, जैसे झाड़ू लगाना, बर्तन धोना, कपड़े धोना, खाना बनाना सब मम्मी या पत्नी का ही काम होता है। जो सरासर ग़लत है। आजकल के परिवेश में तो बिल्कुल ही ग़लत। क्योंकि अब आपकी पत्नी आपकी तरह काम पर जाती है और फिर घर आकर भी काम करती है तो आपको उसकी ज्यादा मदद करनी चाहिए। एक गृहिणी भी घर को जिस तरह संवारकर रखती है, वो भी आपके ऑफिस के काम से कई गुणा ज्यादा होता है।
अंदाज़ा मत लगाइए बस वादा कीजिए ख़ुद से कि आप अपनी पत्नी के काम में हाथ बंटाएंगे। पत्नियों से भी निवेदन हैं कि पति महाशय को आलसी ना बनाएं और स्वयं भी उन्हें काम करने के लिए कह दें। शरीर को तोड़कर घर का सारा काम ख़ुद करने की ज़रूरत नहीं है।
मैंने यहां पति महोदय की तीन तरह की कैटेगरी में बांटा है। एक वो जो लॉकडाउन में ये भली भांति समझ गए हैं कि उनकी जुझारू पत्नियां कितना काम करती हैं और वो आगे भी इसी श्रद्धा के साथ पत्नियों के काम में अपनी सेवाएं देते रहेंगे।
दूसरे वो जिन्हें सिर्फ लॉकडाउन में ही काम करने का नया शौक चढ़ा है क्योंकि या तो वो बोर हो रहे हैं या वो काम करने के बाद बखान करने वाले हैं। आपने मदद की वैरी गुड, कुछ दिन और हैं तो समझ जाइए। पत्नी के काम में हाथ बंटाने को अपना रूटीन बनाइए।
अब हैं तीसरी श्रेणी के पति जो ना पहले काम करते थे, ना ही अब कर रहे हैं और आगे तो क्या ही करेंगे। उनके लिए बस एक ही बात कहना चाहती हूं कि भगवान आपको सद्बुद्धि दे।
ना कम ना ज्यादा, सब कुछ आधा-आधा
मूल चित्र : Canva
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