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क्या लॉकडाउन का मतलब ये है कि आप वायरस से तो बच जाएँ लेकिन घरेलु हिंसा से मर जाएँ?

लॉकडाउन में कहने को तो कहा जा रहा है स्टे होम, स्टे सेफ पर शायद समाज के एक तबक़े के लिए स्टे होम इस नॉट ऑलवेज़ स्टे सेफ, और वो हैं महिलाएं।  

लॉकडाउन में कहने को तो कहा जा रहा हैस्टे होम, स्टे सेफ पर शायद समाज के एक तबक़े के लिएस्टे होम इस नॉट ऑलवेज़ स्टे सेफ, और वो हैं महिलाएं।  

पूरा देश तो लॉकडाउन में है ही लेकिन साथ में कई ऐसी चीज़े हैं जिन पर अभी भी शायद लॉकडाउन होने की सख़्त ज़रूरत है। कहने को तो कहा जा रहा हैस्टे होम, स्टे सेफ पर शायद इस सब में हम भूल गए कि समाज के एक तबक़े के लिए स्टे होम इस नॉट ऑलवेज स्टे सेफ मतलब घर पर रहने में हमेशा सुरक्षा नहीं है और वो बेशक महिला ही है।

देश में लॉकडाउन के पहले सप्ताह में, जहां कई लोगों की नौकरियां गयी, वहीं रोज़मर्रा की ज़िंदगी चलना मुश्किल हो गया, जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं के खिलाफ हिंसा में वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी करी है, जिसके मुताबिक़ मार्च के अंत में जेंडर-बेस्ड वायलेंस/हिंसा के केस दोगुने हुए हैं।

आंकड़ों की बात करें तो मार्च के पहले सप्ताह (2-8 मार्च) में 116 केस दर्ज़ हुए थे, जो कि आखिरी सप्ताह (23-1अप्रैल ) में बढ़कर 257 हो गये। जिसमें रेप के केस 2 से 13 हुए हैं और डोमेस्टिक वायलेंस यानि कि घऱेलू हिंसा के केस 30 से बढ़कर 69 हुए हैं। ये केस सबसे ज्यादा उत्तर भारत के पाये गए हैं। और ये तो सिर्फ आंकड़े हैं, न जाने कितनी ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने रिपोर्ट ही नहीं करा होगा।

कई महिलाएं, जिन्होंने अभी तक कुछ रिपोर्ट नहीं किया, उन्हें डर है या तो पुलिस अभी उनके केस पर ध्यान नहीं देगी और अगर ध्यान दिया भी और हस्बैंड को ले गए तो ससुराल वाले उसे परेशान करेंगे। पहले तो वो घर जा सकती थी लेकिन अभी तो वो भी मुमकिन नहीं है। लॉकडाउन की वजह से पूरा परिवार घर पर ही रहता है, तो वेसे ही महिलाओं का कंप्लेंट करना मुश्किल सा हो गया है।

राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) के पास पूरे देश से शिकायतें आती हैं, जिनमें से कुछ ई-मेल के ज़रिये आती हैं, तो कुछ पोस्ट ऑफिस के ज़रिये। और अगर हम अभी के हालातों को देखें तो पोस्ट पहुंच पाना मुश्किल है। ऐसे में तो इंटरनेट ही एकमात्र विकल्प नज़र आता है। लेकिन फिर वही, रूरल इंडिया में तो महिलाओं को इंटरनेट के बारे में पता भी नहीं होगा। तो ऐसे बहुत सी कम्प्लेंट्स होंगी जो शायद रिकॉर्ड ही नहीं हो रही होंगी। पता नहीं रोज़ देश भर में कितनी महिलाएं डोमेस्टिक वायलेंस के भयावह दर्द को सहन कर रही होंगी। और दुःख की बात ये है कि वो अभी शायद अपनी दर्द की दवा लेने भी नहीं पहुंच सकतीं।

अगर गवर्नमेंट ने लॉकडाउन की घोषणा यूँ रातों-रात नहीं करी होती तो शायद कई महिलायें अपने आप को बचाने के लिए एक सुरक्षित जगह ही चली जातीं या उसके कुछ इंतज़ाम कर लेतीं। यह स्तिथि महिलाओं के लिए बहुत ख़राब हो चुकी है। खैर, अभी भी दो हफ़्ते का लॉकडाउन बाकी है। अगर हम चाहें तो अभी भी बहुत कुछ बचा सकते हैं। इसमें सबसे बड़ा कर्तव्य सरकार को निभाना होगा। इसके लिए पब्लिक अवेयरनेस कैंपेन चलाये जा सकते हैं, जिसमें ये सुनिश्चित करा जाये कि डोमेस्टिक वोइलेंस विक्टिम्स के लिए सभी सुविधाएँ उपलब्ध हों और वो अपनी शिकायत दर्ज करा सकें।

कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों ने ऑनलाइन एजुकेशन शुरु करी है, तो उसके जरिये भी हम मॉनिटर कर सकते हैं कि कितनी लड़कियाँ और महिलाएं उसमें हिस्सा ले रही हैं और अगर आंकड़ों में गिरावट आती है तो सही कदम उठाये जा सकते हैं।

ये तो बात हो गयी सरकारी तौर-तरीकों की, लेकिन इन सबके के बीच आपका और हमारा भी तो कुछ फ़र्ज़ बनता है ना? आप और हम भी इन महिलाओं की मदद के लिए अपना योगदान दे सकते हैं। अगर आप या आपके आसपास कोई भी डोमेस्टिक वायलेंस (घरेलू हिंसा) से जूझ रहा है तो अपने लोकल एडमिनिस्ट्रेशन में शिकायत दर्ज करें। हम किसी एन. जी. ओ. से भी जुड़ सकते हैं। देश में लॉकडाउन के बीच हमारी महिलाएं कई परेशानी से गुज़र रही हैं तो आप हमे बताइएं की हम कैसे ज़्यादा से ज़्यादा उन महिलाओं तक पहुंच सकें और उनकी मदद कर सकें।

मूल चित्र : Canva

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About the Author

Shagun Mangal

A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...

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