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महिलाएं और कोविड-19 : कैसे इस युद्ध में भी आपकी रक्षा कर रही हैं ये महिलाएं?

महिलाएं और कोविड-19 से मेरा तात्पर्य है उन महिलाओं से जो लॉकडाउन के बावजूद कई क्षेत्रों में बढ़-चढ़ कर अपना योगदान दे रही हैं, अपने बारे में सोचे बिना।    

महिलाएं और कोविड-19 से मेरा तात्पर्य है उन महिलाओं से जो लॉकडाउन के बावजूद कई क्षेत्रों में बढ़-चढ़ कर अपना योगदान दे रही हैं, अपने बारे में सोचे बिना।    

जब भी कोई युद्ध हुआ, अकाल आया हो या महामारी आयी हो, वो हर वर्ग पर अलग-अलग तरीके से अपनी छाप छोड़ता है। अगर हम इनमें से कुछ पहले हुए इन्सिडेन्ट्स पर नज़र डालें तो पता चलेगा की इसमें सबसे ज़्यादा महिलाओं को झेलना पड़ा है, अब चाहे वो महामारी के समय हो या उसके बाद हुए नुकसान में।महिलाओं का कोविड-19 में भी कुछ यही हाल है।

महिलाएं और कोविड-19

कोरोना की लड़ाई के असली वारियर्स तो हमारे हेल्थ वर्कर्स हैं और आपको बता दूँ  कि हेल्थ केयर इंडस्ट्री में महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा है। इंडिया में कुल 1.9 करोड़ हेल्थ वर्कर्स हैं और इसमें से 77% महिलायें हैं। तो इसका सीधे-सीधे शब्दों में मतलब है की हमारी इस लड़ाई को सफल बनाने में सबसे बड़ा योगदान महिलायों का ही है। तो क्या आप उनमे से हैं, जो अभी भी महिलायों को लेकर संशय में हैं। ये तो मैंने आपको सिर्फ हैल्थकेयर सर्विस के आंकड़े बतायें हैं। और भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां महिलायों बढ़ चढ़ कर अपना योगदान दे रही है।

महिलाएं, हेल्थ केयर सेक्टर और कोविड-19

इन दिनों हम कई महिलायों की चर्चा सुन रहे हैं। कई प्रग्नेंट महिलाएं तो कहीं अपने नवजात बच्चें के साथ महिलाएं काम कर रही है। इनके हिम्मत और ज़ज़्बात को हम सभी सलाम करते है, लेकिन इन सबके के बीच एक चीज़ हम सबसे एक चीज़ छूट गयी और वो हैं की क्या हमने गौर किया की 77% महिलायें इसमें काम कर रही हैं, तो इसका मतलब ये हुआ की कोरोना से संक्रमित होने वाले हेल्थ केयर वर्कर्स में से सबसे ज्यादा महिलायें ही होंगी। दिन-रात हॉस्पिटल में रहकर ये महिलाएं अपने जान जोखिम में डाल कर हमारे लिए लड़ रही है। लेकिन अभी तक इनके लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया है।

कोविड-19 में आशा वर्कर्स और आंगनवाड़ी वर्कर्स

इन दिनों कई राज्यों सरकारों ने सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) और आंगनवाड़ी की महिलाओं को ड्यूटी पर लगा रखा है। ये महिलाएं अपने क्षेत्र में घर घर जाकर लोगो का चेक अप कर रहीं है। वो देखती है की कौन बाहर से आया है और क्या किसी को कोई लक्षण तो नहीं है। लगभग एक मिलियन महिलायें आशा कार्यकर्ता हैं और 1.4 मिलियन महिलाएँ आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं में शामिल हैं। तो देखा जायें तो इन्हें सबसे ज्यादा संक्रमित होने का डर है।

इसके अलावा भी कई क्षेत्र है जहां महिलायें बड़े दर्जे पर अपना योगदान दे रहीं है

महत्वपूर्ण क्षेत्रों में महिलायें की हिस्सेदारी 52% है। इसके अलावा सोशल वर्कर में 78% महिलाएं ही काम कर रही है। मेडिकल सप्लाई में 46% योगदान महिलाओं का हैं। फ़ूड प्रोसेसिंग सेक्टर में 39% महिलाएं है। आईटी और फ़ाइनेंस में भी लगभग 28 % महिलाओं का योगदान है। और भी न जाने कितने क्षेत्र है जिसके आंकड़े हमारे पास मौजूद ही नहीं है। अब आप सोच रहे होंगे की इसमें दिक्कत क्या है, अगर वो खुद बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही हैं तो।

तो इसमें दिक्कत क्या है?

इसमें में भी आपसे सहमत हूं। उनका भी देश के लिए, यहां के लोगो के प्रति उतना ही कर्तव्य बनता है जितना की एक आम पुरुष का। इसमें हमें ना कोई शक़ है ना दिक्कत। मैं भी बिना जेंडर बायस्ड हुए उस हर व्यक्ति को धन्यवाद देती हूं जो हमारे लिए लड़ रहें हैं। तो अब आप सोच रहें होंगे की फिर मैंने इसकी चर्चा ही क्यों करी। तो चलिए इसकी पीछे की हक़ीक़त से मैं आपको रूबरू करवाती हूं।

महिलाएं और कोविड-19 – उनके हित में सुरक्षित कदम?

जैसा की मैंने ऊपर भी कहा – 77%  महिलायें हेल्थ केयर सर्विसेज़ में काम कर रहीं है, तो इसका मतलब ये हुआ की कोरोना से संक्रमित होने वाले हेल्थ केयर वर्कर्स में से सबसे ज्यादा महिलायें ही होंगी। इसका प्रूफ हाल ही में आयी एक रिपोर्ट है, जिसमे सामने आया है की कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले हैल्थवर्कर्स में 73% महिलायें ही हैं।

ख़ैर ये तो अभी बस एक क्षेत्र की रिपोर्ट आयी है, अभी तो न जाने ऐसी कितने और क्षेत्र हैं जहां का कोई अता पता ही नहीं है। और ऐसी कितनी महिलायें है जिनकी हेल्थ पर कोई ध्यान भी नहीं देता। अगर रूरल इंडिया की बात करे तो जब वहां लड़की की पढ़ाई पर पैसे खर्च नहीं करते लोग, तो हेल्थ पर क्यों ही करेंगे। और ये तो बात हुई सिर्फ महामारी के वक़्त की, लेकिन इसके बाद क्या? सबसे ज़्यादा इसमें महिलायों को ही सहना पड़ता है।

महिलाओं के साथ आखिर ये कब तक चलेगा? कोविड-19 के साथ इसका भी कहीं तो अंत होगा ना?

सरकार ने इसके लिए कोई बड़े कदम नहीं उठाये हैं। हालांकि, रिपोर्टों के अनुसार, आशा महिलाओं ने उन्हें पर्याप्त उपकरण प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार से संपर्क किया है। उम्मीद है इनकी कमियाँ जल्द ही पूरी करेगी जाएगी। भारत में अक्सर इन चीज़ों को नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है। लेकिन हम हर चीज़ की ज़िम्मेदारी सरकार पर भी तो नहीं छोड़ सकते ना।

हां मैं मानती हूं, अगर वैश्विक स्तर पर इसके लिए बड़े कदम उठाये जायें तो इससे हम कई हद तक लड़ सकते है। लेकिन आपका और हमारा भी कुछ फ़र्ज़ बनता है। आये दिन हम डोमेस्टिक वायलेंस के केसेस देख रहे है। उनका क्या? उसमे तो आप और हम ही कुछ की सकते हैं ना? 

अगर हम सब मिलकर इन महिलाओं का साथ दें, इन्हें हर मुश्किल से लड़ने में हिम्मत दें, इनसे इनके अधिकार नहीं छींने, इन्हें और इनके काम को भी उतनी ही इज़्ज़त दें जितनी हम पुरुष वर्ग के काम को देते हैं, तो हो सकता है इनके लिए ये मुश्किल सफ़र थोड़ा आसान हो जाएं। इसकी शुरुवात आप घर से ही करें और आज से ही हर अथक प्रयास करें जिससे की हमारे देश को आने वाली चुनौतियों से बचा सकें।

मूल चित्र : Canva 

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About the Author

Shagun Mangal

A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...

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