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प्यार या प्रेम , कभी भी केवल मन निर्धारित नहीं करता , इसमें आत्मा भी शामिल होती है, ऐसा होने से मन का प्रेम दीर्घायु रहेगा।
जब मन में प्रेम भर जाता है, तब क्यों अचानक एक दिन प्रेम से मन भर जाता है?
जब मन भर प्रेम किया तब नहीं सोचा? फिर अब अचानक क्यों प्रेम से मनभर लिया? मन की सुनना अच्छी बात है, लेकिन मन के चक्कर में पड़कर क्यों प्रेम कर लिया?
और जब कर ही लिया था फिर मन क्यों भर लिया ? मन भर प्रेम करने के बाद उससे मन कभी न भरने देना!
मूल चित्र : Pexels
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